विश्व में कई जातियाँ ऐसी भी है जो सभ्यता की दृष्टि से सदियों पिछड़ी हुई और उनमें नमक का प्रचलन कतई नहीं है। अल्जीरिया के मूल निवासी तथा कोलम्बिया नदी के तटवर्ती मैदानों में बसने वाले लोग नमक का बिलकुल प्रयोग नहीं करते। सहारा के बद्दू कबीले के लोग नमक को उसी प्रकार घृणास्पद तथा त्याज्य समझते हैं जैसे एक धर्मनिष्ठ भारतीय माँस और मदिरा को। मध्य अफ्रीका के लाखों आदिवासी प्रशान्त महासागर के मध्य द्वीपों में रहने वाले लोग नमक को अनावश्यक मानते हैं तथा उसका प्रयोग भी नहीं करते। साइबेरिया के मूल निवासी और नेपाल के सुदूर प्रान्तों में बसने वाले लोग भी नमक नहीं खाते। फिर भी उनका स्वास्थ्य और शरीर बल आज 20 वीं शताब्दी के सभ्य व्यक्ति से कई गुना बेहतर है।
ये उदाहरण उन व्यक्तियों की धारणा को निर्मूल सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है जो यह समझते हैं कि नमक नहीं खायेंगे तो न जाने क्या हो जायेगा? कुछ लोग तो यहाँ तक कहते पाये गये हैं कि नमक न खाने वाले व्यक्ति का शरीर विषाक्त हो जाता है उसके शरीर में कई दूषित तत्त्व आ संचित हो जाते हैं।
विज्ञान की आधुनिक गवेषणाओं के अनुसार नमक मनुष्य शरीर के लिये एकदम अनावश्यक है। स्वास्थ्य और शरीर व्यवस्था के लिए जितना नमक आवश्यक होता है वह प्राकृतिक रूप से अन्न और सब्जियों के रूप में अपने आप मिल जाता है। भारतीय योग ग्रन्थों में आहार शुद्धि का जहाँ उल्लेख आता है वहाँ प्रत्याहार साधना के अंतर्गत नमक का प्रयोग बन्द कर देने की बात भी कही गई है। भारतीय धर्मग्रन्थों में नमक के त्याग को एक व्रत के रूप में निरूपित किया गया है। धार्मिक दृष्टि से नमक त्याग का महत्त्व तो है ही विज्ञान की खोज ने भी इस नियम की पुष्टि की है। यही नहीं नमक को शरीर के लिए हानिकारक भी माना है।
रसायन शास्त्र की भाषा में नमक को सोडियम क्लोराइड कहा गया है। क्लोरीन एक जहरीली गैस है जिसका एक हल्का सा झोंका मनुष्य को 24 घण्टे तक बेहोश कर देने के लिए पर्याप्त है। थोड़ी सी अधिक मात्रा उसे दूसरे लोक भी पहुँचा सकती है। इसके योजकों को आहार रूप में लेने से आमाशय यन्त्र की श्लेष्मिक झिल्ली को हानि पहुँचती है तथा शरीर के कैल्शियम का भी क्षरण होता है जिससे शरीर में पक्षाघात और मिरगी के रोगों की सम्भावना रहती है।
सुप्रसिद्ध अमरीकी आहार विशेषज्ञ ने इस सम्बन्ध में बड़ी निष्कर्ष पूर्ण खोज की है और इसे पूर्णतया विष बताया है।
एक शंका उठना स्वाभाविक है कि नमक यदि विष है तो फिर शरीर पर उसका प्रभाव क्यों नहीं पड़ता। इसका एक बहुत बड़ा कारण है। शताब्दियों से नमक का प्रयोग करते चले आ रहे मानवजाति का शरीर और उसके कोष अभ्यस्त हो गये हैं फिर भी मनुष्य शरीर की प्रकृति इस तत्त्व की उपस्थिति सहन नहीं करती और पसीने, मूत्र आदि के रूप में यह विसर्जित होता रहता है।
फिर भी इसका प्रभाव किसी न किसी रूप में तो होना ही है और वह होता है दुःसाध्य रोगों के रूप में। रक्तविकार, हृदयरोग, आमाशय के रोग आदि कई बीमारियों का कारण नमक ही है। डाक्टर लोग रोगी की चिकित्सा करते हुए परहेज में नमक न खाने की सलाह देते हैं। इसका यही कारण है शरीर में नमक की मात्रा बढ़ते रहने पर रोग का दूर होना मुश्किल है।
कुछ वैज्ञानिकों ने नमक को अफीम, संखिया जैसी विषैले मादक द्रव्यों की श्रेणी में गिना है और वस्तुतः वह है भी। अफीम संखिया खाने के तुरन्त बाद बड़ी तेज प्यास लगती है उसी प्रकार स्वभाव से अधिक नमक खा लेने पर थोड़ी थोड़ी देर से पानी पीते रहना पड़ता है।
कुछ दिनों तक नमक का प्रयोग न करने पर शरीर से जो स्वास्थ्य शक्ति और बल का अनुभव होता है उसे देखकर फिर कभी नमक खाने की इच्छा नहीं होगी।