आदमी-आराध्य, सेवा-साधना है आज मेरी। साधना का प्राण जन-जन की अकथ पीड़ा घनेरी।
नयन का निर्माल्य ही अन गंग-नीर पवित्र करता दूसरे की परि भरती श्वाँस में अर्जित प्रखरता।
आचमन आत्मीयता का, प्यार का चन्दन सुहाता। हर दुःखी जन के लिए स्नेह अन्तर का लुटाता।
आज माला पर दुःखों की भावना के साथ फेरी। आदमी-आराध्य, सेवा-साधना है आज मेरी।
मखमली आशीष में गुरु के-मिला लिपटा खजाना। मनुज-जीवन की सफलता-यज्ञमय जीवन बिताना।
बस तभी से जल रहा जीवन हिमानी शीत हरने। कर्म की आहुति लगी है दूसरों के घर बिखरने॥
प्रज्वलित है प्राण-तन तो अन्त में है भस्म-ढेरी। आदमी-आराध्य, सेवा-साधना है आज मेरी।
ध्यान में साकार हो उठती सभी की वेदनाएँ। और उनको ही मिटाने उमंग पड़ती प्रार्थनाएँ।
माँ! मिटा दो विश्व से कुण्ठा, निराशा और पीड़ा। विश्वमानव हो सुखी, जीवन बने शुभ रास क्रीड़ा।
शक्ति दो माता! लगाओ मत दया में आज देरी। आदमी-आराध्य, सेवा-साधना है आज मेरी।
*समाप्त*