एक बार जब स्वामी रामतीर्थ अमेरिका की यात्रा पर गये हुए थे तो एक अमेरिकन स्त्री उनके पास आयी आर विलाप करने लगी - ‘स्वामी जी। मेरे एकमात्र पुत्र की मृत्यु हो गयी है। मैं बड़ी दुःखी रहती हूँ। कृपया मुझे दुःख दूर करने का कोई उपाय बताइये।”
स्वामी जी ने कुछ पल विचार किया और दूसरे दिन आने की बात कही। आते ही वह बोली - ‘स्वामीजी, बताइये आपने मेरे लिए क्या उपाय सोचा है। इसमें जो भी व्यय होगा, मैं निस्संकोच करूंगी।
स्वामी जी ने एक अनाथ बालक का हाथ पकड़ाते हुए कहा -’आप इसे अपने पुत्र की भाँति पालें।’
स्त्री को इसकी तनिक भी आशा न थी। वह चौंकते हुए बोली - “पर यह तो असम्भव है कि मैं इसे अपने पुत्र की भाँति मानूँ।”
स्वामी जी ने उत्तर दिया ‘तो फिर आपके लिये दुःख दूर करना और आनन्द पाना भी सम्भव नहीं है। जो अपनी आत्मीयता का विस्तार कर लेता है, दूसरों में अपना रूप देख सकता है, उन्हें अपना बना सकता है, वही आनन्द पा सकता है।’