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October 1971

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संगीत साधना में आजीवन निरत प. विष्णु दिगम्बर अपने पीछे सुयोग्य संगीत साधक छोड़ जाने के लिए प्रयत्नशील रहे। इस प्रयत्न की सफलता सन्तोषजनक नहीं दीख रही थी। इस पर उनके एक मित्र ने व्यंगपूर्वक पूछा - ‘इतनी मेहनत करके आखिर आपने कितने ‘तानसेन’ पैदा कर लिये ?’

पंडित जी गम्भीर हो गये और बोले -’तानसेन भी अपने जैसे तानसेन पैदा नहीं कर सके तो फिर मेरे जैसे तुच्छ आदमी की तो बिसात ही क्या है’ फिर मैंने तो कानसेना पैदा किये हैं और सुनने वालों में यह योग्यता जगाई है कि संगीत कैसा होना चाहिए। यह परख और जागरुकता बनी रहीं तो देर-सबेर में वैसे संगीत साधक भी बन सकेंगे जैसे कि मैं चाहता हूँ।


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