सफलता का श्रेय- संकल्पवानों को

October 1971

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कुयोग और सुयोग के संबंध में कोई प्रत्यक्ष तर्क तो इतना लागू नहीं होता कि अमुक वस्तु, घड़ी या घटना को किस कारण शुभ या अशुभ होना चाहिए। क्यों उसके कारण दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ घटनी चाहिए और क्यों उसकी उपस्थिति से सुखद संभावनाओं की शृंखला चल पड़ना चाहिए। फिर भी देखा यह गया है कि कभी कभी यह कुयोग-सुयोग के संयोग इस तरह वस्तुओं के साथ जुड़ जाते हैं मानों वे जुड़े न होकर चेतन हों, मानों उनकी भी बुरी या भली प्रकृति हो।

प्रख्यात कोहिनूर हीरे के संबंध में ऐसा ही घटना क्रम जुड़ा हुआ है। वह जहाँ भी, जब भी, जिसके पास भी गया है वहाँ संयोगवश ऐसी दुर्घटनाएँ घटी हैं जिसके कारण उसे बदनामी मिली और अभागा कहा गया। मिस्र के पिरामिडों के साथ भी ऐसे ही संयोगों की शृंखला है। जिनने भी उसके रहस्यों को खोदने-कुरेदने का प्रयत्न किया, वही दुर्भाग्य की चपेट में आया और बेमौत मारा गया। कई इमारतें भुतही कही जाती हैं और समझा जाता है कि जो भी उनमें रहेगा डरावने दृश्य देखेगा और मुसीबतों में फंसेगा। जिन स्थानों के साथ निर्दयता के घटनाक्रम जुड़े हैं वहाँ भी संत्रस्त आत्माएँ छाई रहती हैं और वहाँ रहने वालों का अनिष्ट करती है। श्मशानों के संबंध में विशेष रूप से ऐसा समझा जाता है। मृतात्माएँ वहाँ अपने वियोग पश्चाताप से खिन्न होकर रुदन करती रहती है। कई बार प्रतिशोध से भरे आक्रोश भी स्थान विशेष या वस्तु विशेष के साथ चिपक जाते हैं और उपयोगकर्ताओं को चैन से नहीं बैठने देते। कुयोग की जो घटनाएँ समय-समय पर सामने आती रहती हैं उनमें एक ऐसे जलयान की भी है जो जब तक जिया स्वयं त्रास पाता रहा और उपयोग कर्ताओं को कष्ट देता रहा।

सितम्बर 1872 के प्रारम्भ में न्यूयार्क के 44 नम्बर पोतघाट पर ‘मेरी सेलीस्टी’ नामक जहाज पर लगभग 1700 कामर्शियल अल्कोहल के पीपे पुर्तगाल ले जाने के लिए लादे गये थे। जहाज पर कैप्टन वेन्जामिन स्पूनर व्रिग्स, उनकी पत्नी, सरा ब्रिग्स और दो वर्षीय पुत्री सोफिया मिटल्डा के अतिरिक्त सात अन्य कर्मचारी थे। जहाज के मालिक अमेरिकी नागरिक जेम्स विचेस्टर थे।

यह जहाज जब से बना था तभी से उसके साथ अनेकों दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ जुड़ती चली गयी।यह जहाज 1861 में स्पेंसर आइलैण्ड नोवा स्कोशिया में बना, तब उसको ‘आमेजान’ नाम से रजिस्टर्ड किया गया था। सजिस्ट्री कराने वाला पहला कैप्टन 48 घण्टों में मृत्यु के मुख में चला गया। उसकी पहली यात्रा में वह ‘मायने’ के किनारे दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसकी मरम्मत के समय दूसरा कैप्टन आग लगने से मर गया। तीसरे कैप्टन से ‘डोवर की खाड़ी’ में एक अन्य दो मस्तूल वाले जहाज से टक्कर हो गई जिससे दूसरा जहाज डूब गया। चौथी यात्रा में वह ‘केप ब्रेटन द्वीप’ में जमीन में धँस गया जिससे ध्वस्त हो गया। भग्नपोत को किसी प्रकार निकलवाया गया और उसके दो-तीन मालिक बदलते बदलते जेम्स विचेस्टर के हाथ में आया।

जेम्स विचेस्टर ने जहाज की भली प्रकार मरम्मत करायी और अत्युत्तम स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया। जहाज की पुरानी शक्ल जो ब्रिटिश व्यापारी जहाज द्वारा बनायी गयी थी, उसको बदलवा दिया और नाम भी बदलकर ‘मेरी सेलीस्टी’ रख दिया।

5 नवम्बर 1872 को जब ‘मेरी सेलीस्टी’ नामक जहाज की यात्रा शुरू होने वाली थी, उसी समय उसके पास में लगे हुए एक अन्य ‘डीग्रेशिया’ नामक जहाज के कैप्टन एडवर्ड मोर हाउस के साथ बैठकर ‘मेरो सेलीस्टी’ के कैप्टन बेजामिन स्पूनर ब्रिग्स ने भोजन किया था। उसके दस दिन पश्चात 15 नवम्बर 1872 को ‘डीग्रेशिया’ वहाँ से चला था। कुछ दिन बाद उसके कैप्टन ने एजोर्स और पुर्तगाल के मध्य पुर्तगाल से लगभग 600 मील दूर एक जहाज को एक ऐसी स्थिति में पाया जिससे अनुभवी नाविक तुरन्त अनुमान लगा सकता है कि जहाज नियन्त्रण में नहीं। अतः कैप्टन मोरहाउस अपने कुल साथियों के साथ एक नाव में बैठकर उस जहाज की ओर चल दिये। समुद्री तूफान के कारण दो घण्टे के कड़े परिश्रम के पश्चात् वे कहीं उस दूरी पर पहुँच सके जहाँ से उसका नाम पढ़ा जा सका। वह जहाज ‘मेरी सेलीस्टी’ था। जहाज पर जीवित या मृत कोई भी व्यक्ति नहीं मिला, लेकिन माल सब ज्यों का त्यों था। केबिन की टेबल पर खाना आधा खाया हुआ था और बगल में स्टोव पर कुछ पकाने के लिए रखा गया था।

कैप्टन के केबिन से प्राप्त ‘लांग बुक’ में -आठ बजे प्रातः 25 नवम्बर की यह टिप्पणी थी कि ‘सान्ता मेरिया’ द्वीप समूह पार हो गया। जिस दिन ‘डीग्रेशिया’ के कैप्टन मोर हाउस ने यह देखा, 5 दिसम्बर था। ‘मेरी सेलीस्टी’ की लांग बुक की अन्तिम एन्ट्री को हुए ग्यारह दिन बीते थे और जहाज बिना किसी व्यक्ति के 600 मील चला आया था।

‘डीग्रेशिया’ नामक जहाज जिब्राल्टर 12 दिसम्बर 1872 को पहुँचा तथा ‘मेरी सेलीस्टी’ 13 दिसम्बर को प्रातः आ पहुँचा। उस जहाज को कैप्टन मोरहाउस के नेतृत्व में लाया गया था इसलिए उसने जिब्राल्टर में ‘ब्रिटिश ऐडमिरलटी प्रोक्टर’ एफ. साॉली फ्लड के पास ‘मेरी सेलीस्टी’ जहाज के सामान आदि के बारे में क्लेम दिया।

मार्च 1873 के निर्णय में ‘डीग्रेशिया’ के कैप्टन मोरहाउस को ‘मेरी सेलीस्टी’ जहाज एवं उसमें लदे सामान की कुल कीमत का पांचवां हिस्सा उसके मालिक जेम्स विंचेस्टर को देना पड़ा। साढ़े तीन माह बाद जहाज को जेनेवा में खाली करके न्यूयार्क ले जाया गया। इसको नये कैप्टन एवं नवीन कर्मचारियों द्वारा जेनेवा तक ले जाया गया। न्यूयार्क वापस पहुँचने पर विंचेस्टर ने ‘मेरी सेलीस्टी’ को तुरन्त बेंच दिया।

‘मेरी सेलीस्टी’ जहाज की बदकिस्मती की घटना के कारण कोई कैप्टन या कर्मचारी उस पर काम करने को तैयार नहीं होता था। उसके कई मालिक बदल गये और सबको कुछ न कुछ घाटा उठाना पड़ा। अन्त में 1884 में गिलमैन सी. पार्कर ने उसकी खरीद लिया और जहाज का दुर्भाग्यपूर्ण इतिहास देखते हुए उसका बीमा करा दिया। जहाज वेस्ट इण्डिज की खाड़ी में दुर्घटनाग्रस्त हो गया, किन्तु बीमा कम्पनी को यह सन्देह हो गया कि जान-बूझकर जहाज की कीमत वसूल करने के लिए ऐसा किया गया। कोर्ट में केस चला परन्तु जज ने जहाज की पूर्व की कहानी देखते हुए निलमन सी. पार्कर को रिहा कर दिया। उसके 8 महीने बाद पार्कर की मृत्यु हो गई। एक कर्मचारी पागल हो गया। एक ने आत्महत्या कर ली। ‘मेरी सेलीस्टी’ जहाज जिसके पास भी रहा उसको दुर्भाग्य के सिवा और कुछ नहीं मिला।


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