रुग्णता को आग्रहपूर्वक आमन्त्रण

October 1971

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मनुष्य की काय संरचना ऐसी है जिसे यदि तोड़ा मरोड़ा न जाय, महज गति से चलने दिया जाय तो वह लम्बे समय तक बिना लड़खड़ाये कारगर बनी रह सकती है। आरोग्य स्वाभाविक है और रोग प्रयत्नपूर्वक आमंत्रित। सृष्टि के सभी प्राणी अपनी सहज आयु का उपभोग करते हैं। मरण तो सभी का निश्चित है, पर वह जीर्णता के चरम बिन्दु पर पहुँचने के उपरान्त ही होता है। मात्र दुर्घटनाएँ ही कभी-कभी उसमें व्यवधान उत्पन्न करती है। रुग्णता का अस्तित्व उन प्राणियों में दृष्टिगोचर नहीं होता जो प्रकृति की प्रेरणा अपनाकर सहज सरल जीवन जीते हैं। मनुष्य ही इसका अपवाद है। इसी मूर्ख जीवधारी को आये दिन बीमारियों का सामना करना पड़ता है। बेमौत मरते भी वहीं देखा जाता है।

दुर्बलता, रुग्णता और असामाजिक मृत्यु कोई दैवी विपत्ति नहीं हैं। मनुष्य द्वारा अपनायी गई रहन-सहन संबंधी मूर्खता की प्रतिक्रिया मात्र है। आहार-बिहार में संयम बरता जा सके और मस्तिष्क को अनावश्यक उत्तेजनाओं से बचाये रखा जा सके तो लम्बी अवधि तक सुख पूर्वक निरोग जीवन जिया जा सकता है।

आरोग्य की उपलब्धि के लिए बहुमूल्य टानिकों या औषध-रसायनों की खोजने की तनिक भी आवश्यकता नहीं है। जो उपलब्ध है उसे बर्बाद न करने की सावधानी भर बरती जाय तो न बीमार पड़ना पड़े, न दुर्बल रहना पड़े और न असमय बेमौत मरने की आवश्यकता पड़े। चिकित्सकों का द्वार खटखटाने की अपेक्षा आरोग्यार्थी यदि रहन-सहन में सम्मिलित कुचेष्टाओं को निरस्त कर सकें तो यह उपाय उनकी मनोकामना सहज ही पूरी कर सकता है।

जिन्होंने रोगों से बचे रहकर लम्बी जिंदगी का आनन्द लिया है उनकी जीवनचर्या पर दृष्टिपात करने से इसी निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ता है कि सरल और सौम्य रीति-नीति अपनाने भर से शरीर लम्बे समय तक निरोग और सक्षम बना रह सकता है। दुर्बलता तो सामर्थ्य के अपव्यय से उत्पन्न होती है। रुग्णता प्रकृति विरोधी आचरण अपनाने का दण्ड भर है, जो जीवन सम्पदा के साथ उत्तेजनात्मक खिलवाड़ करते हैं वे ही उसे असमय होली की तरह जलाते और समय से पूर्व बेमौत मरते देखे जाते हैं।

बहुमूल्य भोजन और शाही सुविधा न पाने पर भी सामान्य जन-जीवन में निर्वाह करने वालों में भी असंख्यों दीर्घजीवी पाए गए है। इससे प्रतीत होता है कि आरोग्य प्राप्ति के लिए न गरीबी बाधक है न अशिक्षा। इसके लिए इतने भर से काम चल सकता है कि मनुष्य सहज जीवनचर्या अपनाये और विलासिता की ललक में बरती जाने वाली उच्छृंखलता से बचा रहे। दीर्घ जीवन के क्षेत्र में सफल व्यक्तियों के संबंध में जानकारी एकत्रित करने पर सरलता समर्थक तथ्य ही उभर कर आगे आते हैं।

पिछली जन-गणना के अनुसार भारत से शतायु व्यक्तियों की संख्या साठ हजार से अधिक है। इससे प्रतीत होता है कि दरिद्रता इस क्षेत्र में उतनी बाधक नहीं जितनी कि समझी जाती हैं।

फ्राँस में सौ वर्ष या उससे अधिक उम्र वाले व्यक्ति लगभग तीन सौ हैं। परन्तु करीब 10,000 ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी आयु 95 और 100 वर्ष के मध्य है। फ्राँस की सर्वाधिक आयु प्राप्त एक महिला हैं श्रीमती फैलिसी जो अब से लगभग 15 वर्ष पूर्व 108 वर्ष की थी।

अमेरिका में 1960 में 10,369 व्यक्ति शतायु थे। सन 1964 में यह संख्या 12,000 हो गयी। 1964 में वहाँ फ्लोरिडा में एक भण्डार चलाने वाले व्यक्ति थी चार्ली स्मिथ 121 वर्ष के थे। वह नीग्रो थे।

वहाँ की जनसंख्या को देखते हुए इतनी कम संख्या में दीर्घजीवियों का होना बताया है कि शिक्षा या सुविधा साधनों से नहीं दीर्घजीवन का सीधा संबंध प्रकृति अनुसरण से है।

16 अक्टूबर 1964 को आगरा में रजिस्ट्रार जनरल की एक रिपोर्ट से ज्ञात हुआ था कि उस समय देश में चालीस व्यक्ति डेढ़ सौ वर्ष की अवस्था से अधिक आयु के थे। इनमें से 35 ग्रामीण निवासी तथा शेष शहरी क्षेत्रों के निवासी थे।

भारत के सर्वाधिक उम्र के व्यक्ति रज्जा कदर का अगस्त 1964 में निधन हुआ था। वह कुलगाम गाँव का निवासी 178 वर्ष की आयु में दिवंगत हुआ। सन 1964 168 वर्ष की आयु वाले तीन व्यक्ति असम और एक पश्चिमी बंगाल में थे। 160 वर्ष की अवस्था का एक व्यक्ति मध्य प्रदेश में विद्यमान था।

भारत की वृद्ध जन सम्मान समिति ने दीर्घायु का आनन्द लेने वाले व्यक्तियों की सम्मतियाँ या सुझाव तथा निजी जीवन पद्धति का संकलन किया। उनमें से कुछ का विवरण इस प्रकार हैं-

ईरान के 191 वर्षीय श्री सैयद अबू तालेव मौसाबी का कहना हैं कि दीर्घायु का रहस्य “सुखी परिवार एवं कठोर परिश्रम” है। उनका स्वयं का खूब भरा-पूरा परिवार है तथा कुछ न कुछ श्रम अब तक भी करते रहते हैं।

रूस के 158 वर्ष की आयु वाले श्री मुस्लियोव शिराली फरजाली ने दीर्घ जीवन का रहस्य बताते हुए कहा - “मैं नित्य प्रातःकाल उठ जाता हूँ। बारहों महीने ठंडा पानी पीता हूँ। दिन में कभी नहीं सोता। दूध खूब पीता हूँ परन्तु शराब और सिगरेट कभी नहीं पीता एवं सदैव खुले में सोता हूँ।

सिंगापुर की 133 वर्षीय श्रीमती नोरिया विगते वायुमेन ने लम्बी आयु का कारण अपना ईश्वर विश्वास बताया। वह नियमित रूप से दिन में पाँच बार नमाज पढ़ती है।

अमेरिका के 122 वर्षीय श्री चार्ली स्मिथ ने भी अपनी लम्बी आयु का रहस्य ईश्वर विश्वास की दृढ़ भावना को बताया। वे अपनी नियमित जीवनचर्या में नैतिक नियमों का पूरा समावेश रखते हैं।

जापान की सर्वाधिक आयु वाली महिला श्रीमती कोवायासी यासू का कहना है कि मात्र सब्जियों के आहार और गहरी नींद ही उनकी लम्बी आयु का कारण है। उन्होंने कभी शराब या तम्बाकू को हाथ नहीं लगाया और न ही दवाइयां ली हैं। उनकी आयु 118 वर्ष है।

रूस के खरकोव विश्व विद्यालय में ऐसे व्यक्तियों का एक रिकार्ड है जो वहीं के निवासी तथा सौ वर्ष से अधिक आयु वाले है। लम्बी उम्र वाले मनुष्य वहाँ पूरे राष्ट्र के सभी भागों में होते हैं। उस रिकार्ड में शताधिक आयु वाले 40 हजार से भी अधिक लोगों के नाम दर्ज है।

सोवियत संघ में क्रान्ति से पूर्व वहाँ के लोगों की औसत आयु 32-33 वर्ष की और अब 70 वर्ष से भी अधिक हो गयी है। वहाँ बुढ़ापे के संबंध में अनेकों वैज्ञानिकों, मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षा शास्त्रियों ने शोध कार्य किया है तथा बुढ़ापा रोकने के सफल प्रयास भी हुए है। प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री इवान पावलाव ने खोज की है कि “दीर्घ जीवन के लिए किए गए प्रयासों में स्नायु प्रणाली का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है।” उन्होंने असमय बुढ़ापा आने के कारणों में स्नायु प्रणाली का ठीक से कार्य करना प्रमुख माना है। उसी से उच्च रक्तचाप, चयापचय क्रिया से संबंधित बीमारियाँ उत्पन्न होती है।

रूस के शरीर शास्त्रियों ने भोजन की अधिकता को रोग पैदा करने के लिए बहुत उत्तरदायी बताया है। उन्होंने भूख से कुछ कम खाने का परामर्श दिया है।

जीव विज्ञानी इल्यामेचनिकोव कहते हैं कि अपच ही अधिकाँश रोगों का प्रमुख कारण है और इसे आवश्यकता से अधिक खाकर लोग स्वयमेव ही उत्पन्न करते हैं। इस बुरी आदत को यदि अपने पैरा पर आप कुल्हाड़ी मारना कहा जाय तो कोई अत्युक्ति न होंगी।


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