सन् 62 का अष्टग्रही योग और उसके बाद

December 1968

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माघ वदी अमावस्या, 5 फरवरी सन् 1962 को कालकूट नामक अष्टग्रही योग पड़ा था। एक स्थान पर अनेक ग्रहों का एकत्रित होना अनिष्टकारक माना जाता है, इसलिये इस घटना को लेकर देश-विदेश में तरह-तरह की भविष्य-वाणियाँ की गई थीं। पिछले महाभारत युद्ध के समय एक राशि पर सात ग्रह आने से विश्व-युद्ध जैसी विभीषिका आई थी और उससे व्यापक मार-काट और जन-धन की हानि हुई थी, इसलिये उस घटना को ही आधार मानकर दैवज्ञों ने यह आशा व्यक्त की थी कि इस, ग्रह-योग से विनाश के दृश्य उपस्थित होंगे। संसार में भीषण तोड़-फोड़, मार काट और विस्फोट होंगे और प्रलय जैसी स्थिति उत्पन्न हो जायेगी।

एक स्थान पर अनेक ग्रहों का एकत्रित होना, उसी प्रकार होता है, जिस तरह देश की आपातकालीन स्थिति के समय चोटी के नेता बैठते हैं और स्थिति को कैसे सम्भाला जाय, इस तरह का विचार विनिमय करते हैं। जो निर्णय और निष्कर्ष लिये जाते हैं, उन्हें तत्काल लागू कर दिया जाना ही न तो कोई सिद्धान्त है और न ऐसा होता ही ह। निष्कर्षों पर देर तक विचार विमर्श चलता रहता है, तब कहीं कार्यक्रम क्रियान्वित हो पाते हैं, यदि नेताओं में परस्पर भिन्न मत हों तो निर्णयों में प्रायः और भी देर होती है पर एक बात सर्वथा सत्य है कि किसी न किसी रूप में इस तरह के सम्मेलन कुछ नई तरह की हलचलें, तीव्र प्रतिक्रिया वाले निर्णय देने वाले होते हैं, उनसे कुछ न कुछ उखाड़-पछाड़ होती अवश्य है।

यह ग्रहयोग ऐसा ही था। इसे अंश योग भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि चन्द्रमा 4 फरवरी को सायं 5:35 बजे सूर्य के साथ हो लिया था। ग्रहों की बैठक में दोनों साथ-साथ आये थे, किन्तु 5 फरवरी को सांयकाल 5:48 बजे ही चन्द्रमा मकर राशि को पार कर 300 अंश आगे निकल गया। इससे वह कुम्भ का साथी हो गया और इस तरह अष्टग्रही योग सप्तग्रही योग ही रह गया।

इन दिनों निःसन्देह पृथ्वी पर पाप ताप का बोझ बहुत बढ़ गया है, बहुत समझाने-बुझाने पर भी लोग अनैतिकता का आश्रय छोड़ने को तैयार नहीं। स्वार्थ और तृष्णा, झूँठ और फरेब, जालसाजी और धोखेबाजी की प्रबलता के कारण कहीं भी शान्ति, सुव्यवस्था और सुरक्षा नहीं। खाते-पीते लोग भी आशंकित और आतंकित रहते हैं।

इस ग्रहयोग में मानवीय उच्छृंखलता को किस प्रकार सुधारा जाय, उस पर भी विचार करना था, पर चन्द्रमा का यह विचार था कि दंडनीय प्रक्रिया को सरल होना चाहिये। एकदम प्रलय से नन्हा-सा जीव डर जायेगा, इसलिये उन विभीषिकाओं को हल्का किया जाना चाहिये। जिनकी ग्रहयोग को तैयारी करनी थी। चन्द्रमा के इस भिन्न मत के कारण परिषद की शक्ति कमजोर पड़ गई।

कहते हैं कि चन्द्रमा की तरह के कुछ और ग्रह भी इस पक्ष में थे कि मानव-जाति को अभी बना रहना चाहिये, इसलिये कोई बड़ा विस्फोट न किया जाय, किन्तु उग्रवादी शक्तियाँ जोरदार थीं, इसलिये दूसरे ग्रहों ने भी चन्द्रमा की तरह ‘परिषद’ में वाक्-आउट किया। 9 फरवरी को शुक्र भी कुम्भ में चला गया, इसलिये कुल 6 ग्रह ही रह गये। 12 फरवरी की शाम 6 बजे सूर्य ने भी परिषद की सदस्यता छोड़ दी। 25 फरवरी तक शेष ग्रहों की सूक्ष्म-वार्ता बराबर जारी रही, किन्तु उस दिन रात्रि 9 बजे गुरु ने भी कुम्भ में प्रवेश करके अपने समर्थन से स्तीफा दे दिया। अब कुल 4 ग्रह ही रह गये। इसी प्रकार 3 मार्च को भौम, 10 मार्च को बुध भी न केवल अलग हो गया वरन् उसने वक्र गति भी करली। युद्ध और प्रलय की अतिशय इच्छा रखने वाले शनि और केतु दो ही रह गये। और इस तरह यह विभीषिका काफी हद तक शाँत हो गई।

किन्तु इस ग्रह-विग्रह का यह अर्थ नहीं लगाना चाहिये कि अब स्थिति ऐसी हो गई कि अनैतिकता और स्वार्थपरता की बढ़ती विभीषिका की तरफ से आँख मूँदली जायें। यद्यपि कुछ ग्रहों ने मनुष्य के सुधार के लिये सृजनात्मक दृष्टिकोण अपनाने की आशा की थी और उस पर पूर्ण सहमति न होने से ही उन्हें सदस्यता से अलग होना पड़ा था, किन्तु युद्ध और उत्पात की शक्तियाँ अभी भी काफी सशक्त हैं, उस पर दूसरे ग्रहों का आँशिक समर्थन है ही। ऐसा न होता तो थोड़े ही समय के लिये क्यों न सही सभी ग्रह क्यों एकत्रित होते? इसलिये उत्पात होंगे यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है।

सम्मेलन समाप्त हुआ था, पर कूटनीति तब से बराबर चल रही है, उस समय भी एक ही पखवाड़े में दो ग्रहण हुये थे, और अभी भी कुछ दिन पूर्व इसी आश्विन वदी अमावस्या को सूर्य ग्रहण और आश्विन शुक्ल पूर्णमासी को चन्द्र-ग्रहण- एक पखवाड़े में दो ग्रहण पड़कर चुके हैं। इस सम्बन्ध में दैवज्ञों का कथन है- “एक पाख दो गहना, राजा मरै कि सेना” अर्थात् एक पक्ष में दो ग्रहण पड़ने से या तो राजा की मृत्यु होती है अथवा भारी संख्या में सेना मारी जाती है।

उन दिनों अपना निजी अभिमत व्यक्ति करते हुए हमने लिखा था- “इस कुयोग से मानव जाति को विशेष संकट सहने पड़ेंगे। यद्यपि ऐसी आशंका कतई नहीं है कि योग के दिनों में प्रलय हो जायेगी या उसी समय एटम-बम चलेंगे। जो लोग ऐसी आशंका करते हैं, उन्हें जान लेना चाहिये कि उन दिनों भी ऐसी ही स्थिति रहेगी, जैसी कि यह पंक्तियाँ पढ़ने वाले दिन हैं। योग के 25 दिनों में कोई आश्चर्यजनक घटना न घटेगी। साधारण दिनों की भाँति ही वे दिन भी शाँति से बीतेंगे। पर सूक्ष्म जगत् में ग्रह-योग की जो प्रतिक्रिया होगी, उसके फलस्वरूप संसार के प्रत्येक भाग में और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कठिनाइयाँ बढ़ने का वातावरण बनना प्रारम्भ हो जायेगा, जैसे-जैसे समय बीतता जायेगा, वे कठिनाइयाँ सामने आती जायेंगी और आगामी दस वर्षों तक बनी रहेंगी।”

इस मान्यता के आधार पर हमें सन् 1968 में भी सन् 1962 प्रतीत हो रहा है। जिनकी कल्पना उस समय की गई थी, व अब घटित हो रही हैं। पाठक उन्हें अपनी खुली आँखों से देख सकते हैं।

अष्टग्रही योग के सम्बन्ध में श्री शरद मोझरकर 19 नवम्बर 1961 के साप्ताहिक हिन्दुस्तान में जो भविष्यवाणियाँ प्रस्तुत की थीं, उनका साराँश यह था- “हिमांचल चल की ओर से भारत पर आक्रमण की हर सम्भावना है। चीन की धमकियाँ सत्य में बदलेगी। नेहरू जी डडडड कुण्डली के मारक स्थान पर यह ग्रहयोग उपस्थित हो रहा है, जो अच्छा संकेत नहीं है। नेता, मन्त्री और ड़ड़ड़ड़ में भेदभाव उग्र होंगे। वे अपने हित के आगे देश-हित को भूल बैठेंगे। चुनाव स्थगित हो सकते हैं पर यदि हुये तो कांग्रेस विजयी रहेगी, किन्तु राजनैतिक परिवर्तन होंगे इंग्लैंड, स्पेन, बेल्जियम, अल्जीरिया और सऊदी अरब को विभिन्न हलचलों का सामना करना पड़ेगा। डडडड प्राकृतिक कोप, भूकम्प, धरती फटना आदि घटनायें डडडड होंगी। रूस और अमेरिका प्रत्यक्ष तो नहीं पर मित्र डडडड के माध्यम से युद्ध करेंगे। गुरु के समान शुभ ग्रह डडडड उपस्थित होने से उग्रता में कमी आयेगी, जो लोग ईश्वर उपासना, जप-तप, भक्ति और आचरण सुधार करेंगे, उन्हें कष्ट कम होंगे और इस अशाँति के घेरे में भी उन्हें शाँति एवं धैर्य मिलेगा।”

ज्योतिष्मती पत्रिका के ग्रीष्मांक में इस योग डडडड सम्बन्ध में श्री कालीदास घोष ने लिखा था- “इस योग का प्रभाव सन् 1994 तक रहेगा, रेल, इंजनों, परिवहन की दुर्घटनायें होंगी, आधुनिक सभ्यता के मलवे से नवीन रक्तबीज उत्पन्न होगा। युद्ध का देवता मंगल विश्वव्यापी युद्ध करेगा।” इसी पत्रिका में ज्योतिर्विद् श्री ड़ड़ड़ड़ राजू गोपालकृष्ण मूर्ति का कथन है- “सूर्य के साथ डडडड का होना युद्ध का सूचक है। सभी देशों के शासकों की रातें जागते गुजरेगी। रक्तपात होगा, विश्व शाँति बार-बार भंग होगी। सीमा विवाद चलेंगे। बड़े नेताओं की साखें गिरेंगी। फसलें नष्ट होंगी, अकाल और ड़ड़ड़ड़ बढ़ेगी, तूफान-आँधी, नाव दुर्घटना, युद्ध, मुद्रा अवमूल्य संक्रामक रोग आदि घटित होंगे।”

रमेशचंद्र शास्त्री और पं. हरदेव शर्मा ने भी जाती उत्पात, भयानक, बाढ़-भूकम्प आदि की पुष्टि की है और लिखा है कि- ‘‘सन् 62 से 72 तक आगामी दस वर्ष में भारी राज्य-क्राँतियाँ और प्राकृतिक प्रकोप होंगे।” डडडड जनवरी 1962 के साप्ताहिक हिन्दुस्तान में श्री केदार दत्त जोशी ने भी ऐसी सम्भावनाओं पर प्रकाश डालते हुए लिखा था- ‘‘विश्व के दक्षिण भाग में कोई विचित्र परिस्थिति आकर व्यापक रूप ले सकती है। चन्द्रमा मकर में होने से वायु की दिशा में आतंक होंगे। सूर्य के मकर में आने से राज्यों में परिष्कृत परिवर्तन होंगे। मंगल उच्च मकर में होने से खनिज पदार्थों के हेतु कलह उत्पात मचेंगे। विश्व में अशान्ति फैलेगी, किन्तु भारतवर्ष का नैतिक स्तर उठेगा, कुविचारों का समूलोच्छेदन करने वाली कोई शक्ति उदित होगी। उसका प्रभाव बढ़ता जायेगा, यह शक्ति रूसी संस्था के रूप में होगी, जो भारतवर्ष ही नहीं सारे संसार में विचार-क्रांति उत्पन्न करेगी। बड़े-बड़े लोग उस धार्मिक किन्तु विचारों को प्रमुखता देने वाली संस्था के झंडे के नीचे आ जायेंगे, इससे इस देश का बड़ा हित होगा। उन्नति की परिस्थितियों का तेजी से विकास होगा।”

इस तरह की अनेक भविष्य-वाणियाँ हुई हैं, जिनमें जबर्दस्त साम्य पाया गया है। प्रायः सभी ज्योतिर्विदों ने यह घोषणा की है, इस ग्रहयोग का असली प्रभाव तो तब देखने योग्य होगा, जब इसका मध्यान्तर अर्थात् सन 1967 गुजर जायेगा। उसके बाद सन् 1972 तक परिवर्तनों में व्यापक तीव्रता आयेगी।

पिछले 5 वर्षों के इतिहास और समाचारों पर एक दृष्टि दौड़ाते हैं, तो उपरोक्त सभी भविष्य-वाणियाँ सत्य प्रतीत होती हैं। कच्छ विवाद, भारत-पाकिस्तान और चीन-भारत युद्ध हममें से सबने देखा। अभी लंका के साथ ड़ड़ड़ड़ द्वीप का झगड़ा उठ खड़ा ही हुआ है। मध्यपूर्व में इजराइल ने अरबों को करारी शिकस्त दी। चेकोस्लोवाकिया में वह हुआ, जिसकी कभी आशंका भी नहीं थी।

ईरान में ऐसा भयंकर भूकम्प जैसा पिछले दिनों आया कभी नहीं आया था। बिहार, राजस्थान और गुजरात डडडड सूखे को कोई भूला नहीं सकता। नेताओं की हत्यायें, राज्यों के संविदों का आना और एक-एक करके सबका टूटकर राष्ट्रपति शासन लागू होना। अभी यह पंक्तियाँ लिखते समय सिक्किम, भूटान, दार्जिलिंग और कलकत्ता में भारी वर्षा से तबाही, बाढ़ और भूकम्प और भूस्खलन के रोमाँचकारी समाचार आ रहे हैं। भूटान के राजपरिवार को हवाई जहाज खाना पहुँचा रहे हैं। समुद्री तूफान में पिछले दिनों धनुष्कोटि पूरी तरह समा चुका है। अभी पाकिस्तान और चीन की धमकियाँ चल रही हैं, न जाने कब नया रंग लायें।

बगदाद में राज्य-क्रांति हुई। अरब में नेतृत्व के लिये भीतरी अशाँति फैली है घाना और काँगो में राज्य-क्रांति, वियतनाम में रक्तपात, तुर्की की सैनिक-क्राँति और अभी अभी पेरू और पनामा पर सैनिक सत्ता का समाचार आया है। यह सब परिवर्तन उसी ग्रहयोग की लम्बी श्रृंखला के एक अंग हैं।

पिछली भविष्य-वाणियाँ सत्य हो रही हैं और आगे के दैवयोग बनते चले जा रहे हैं। अब इस अष्ट-ग्रही नाटक उत्तरार्द्ध प्रारम्भ हो गया है, कहीं अधिक व्यापक और महत्वपूर्ण है।

अभी यह प्राकृतिक प्रकोप न केवल जारी रहेंगे, वरन् उनके घनीभूत और व्यापक होने की सम्भावना है। युद्धों का विस्तार होगा। विश्व-शाँति की शक्ति सक्रिय होने से सर्वग्राही अणु विश्व युद्ध तो नहीं होगा, किन्तु महायुद्ध हो सकते हैं और उसकी लपेट में अमेरिका, रूस सहित भारत वर्ष भी आ सकता है। उत्तरी क्षेत्र से युद्ध की सम्भावनायें विद्यमान् हैं और वे आश्चर्यजनक होंगी। कई चौंकाने वाली घटनायें होंगी। शासन में ऐसे नाम और चेहरे उदित होंगे, शायद जिनके लोग अभी नाम भी न जानते होंगे।

1947 की एक शाम ‘जिन डिम्सन’ नाम की अमरीकी ज्योतिर्विद् महिला के पति एक भोज दे रहे थे। अनेक पूर्वी देशों के राजदूत और अधिकारी उपस्थित थे। नई दिल्ली पर चर्चा चल पड़ी तो जिन डिम्सन ने कहा- “इस वर्ष भारतवर्ष स्वतन्त्र हो जायेगा, किन्तु गाँधी जी की हत्या, वह भी एक हिन्दू के हाथ, कर दी जायेगी और हिन्दुस्तान दो भागों में बंट जायेगा। एक मुसलमानों का एक हिन्दुओं का। इसी संदर्भ में उन्होंने यह भी कहा था-

भारत का भविष्य अति उज्ज्वल है। इस भूमि पर कुछ होनहार आत्मायें उदित होंगी और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विश्व का मार्ग-दर्शन करेंगी। धर्म और नैतिकता का चरम उत्कर्ष भारतवर्ष में होगा और वहाँ से ही उसकी किरणें सारी दुनिया में फैलेंगी। एक बहुत पुरानी उपासना पद्धति का जिसको भारतीय भूल गये हैं, तेजी से प्रसार होगा और भारतवर्ष दुनिया के सब देशों स ज्यादा उन्नति करेगा।” इस अवसर पर सर गिरजा शंकर बाजपेई भी उपस्थित थे, उन्होंने और एक भारतीय कर्नल ने इन तमाम बातों को मानने के लिये इनकार कर दिया था, किन्तु पाठक आधी से अधिक बातें सत्य हुई देख चुके हैं और अब इतिहास जो नई करवट ले रहा है, उसके उत्तरार्द्ध को लोग आगे देखेंगे।

यहाँ के नेता वह सफल होंगे, जो धार्मिक विचारों के होंगे। पूँजीपतियों पर प्रतिबन्ध लगेगा। अगले पाँच वर्षों में उन लोगों को अधिक संकटों का सामना करना पड़ेगा, जो व्यापार में अनैतिकता बर्तते हैं, अर्थात् मिलावट, कम तोल, कीमतें बढ़ाने की साजिशें करते हैं। बुरे लोगों पर से लोगों का विश्वास उठेगा। प्रतिष्ठा घटने से मानसिक अशाँति बढ़ेगी, तब यह अपराधी तत्व स्वतः अपना मन बदलने को विवश होंगे। इस तरह के विचार ड़ड़ड़ड़ अरविन्द, रामकृष्ण परमहंस, महर्षि रमण, सन्त ड़ड़ड़ड़ आदि सूक्ष्म-तत्वदर्शी महर्षियों ने भी बहुत पहले डडडड किये थे। महाकाल उनकी प्रतिष्ठा करने को समुद्यत रहा है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह युग की इस आकाँक्षा और होने वाले परिवर्तनों को समझें और उसके अनुरूप स्वयं भी उस मार्ग पर चलने का प्रयास करे, जिस पर चलने में सम्पूर्ण मानव-जाति का कल्याण है।

भारतीय धर्म, संस्कृति और तत्व दर्शन जिसने डडडड विश्व को प्रकाश और आत्म-ज्योति प्रदान की है वह डडडड विश्व अन्तरिक्ष पर प्रकट होना चाहती है, ग्रहयोग डडडड के सहयोग और सहायतार्थ प्रस्तुत हुआ है, जो डडडड स्वागत करने को तैयार रहेगा, वह हर व्यक्ति भाग्यशाली और समझदार माना जायेगा। प्रस्तुत परिस्थितियों डडडड आँख मूँदने वालों की दुर्दशा तो ऐसे ही होगी, डडडड शिकारी के डर से शुतुरमुर्ग बालू में मुँह घुसेड़ कर अपने को सुरक्षित अनुभव करता है।


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