अटलांटा को जूपिटर ने आशीर्वाद दिया था, तुझसे तेज कोई भी न दौड़ सकेगा, इसलिये उसने अहंकारवश यह घोषणा कर दी, “जो उसे दौड़ में परास्त करेगा, वह उसी से विवाह करेगी।”
बहुत से लोग आये पर वे अटलांटा को दौड़ में हरा न सके। एक मनुष्य ने जूपिटर (भगवान्) से प्रार्थना की, “हे प्रभु! मुझे अटलांटा से प्रेम है, किन्तु उसकी तरह दौड़ने की शक्ति नहीं है। मुझे वह शक्ति दो प्रभो! “मूर्ति बोली- ‘‘पुत्र! यह वरदान तो अटलांटा को ही मिला है, पर हाँ एक उपाय है- अहंकारी व्यक्ति को विवेक नहीं होता, तुम दौड़ के रास्ते में कुछ स्वर्ण मुद्रायें बिखेर देना फिर जीत तुम्हारी होगी।” उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया। अटलांटा दौड़ी तो पर सिक्कों के लालच में बार-बार रुकी और वह आदमी आगे निकल गया। उसने अटलांटा को भी पा लिया और स्वर्ण मुद्राओं को भी।