मंगल-मिलन

December 1968

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

“आज फाँसी लगने वाली है।” भगत सिंह ने विचार किया इससे अच्छा दिन कौन-सा आयेगा। आज तो किसी महापुरुष के दर्शन करने चाहिये। कहाँ, जेल में? नहीं, वहाँ कहाँ सम्भव? “वसीयत के बहाने मुझे लेनिन की जीवनी दे जाना।” कारागार के भीतर से सरदार भगत सिंह ने अपने वकील के पास खबर भेज दी। वकील ने वह पुस्तक भगत सिंह को पहुँचा दी। उधर फाँसी की तैयारी होने लगी, इधर भगत सिंह लेनिन का जीवन वृतान्त पढ़ने में निमग्न हो गये।

जेल अधिकारी उन्हें फाँसी के लिये लेने आये, उस समय वे अन्तिम अध्याय पढ़ रहे थे। उन्होंने अपना ध्यान पन्नों पर रखे हुए हाथ उठाकर कहा- ‘‘महाशय, अभी ठहरिये, एक क्राँतिकारी दूसरे क्राँतिकारी से मिल रहा है।” अधिकारी स्तब्ध रह गये, मौत के सन्नाटे में भी जीवन की निश्चलता। जहाँ थे वहीं रुक गये। पुस्तक का अन्तिम अध्याय समाप्त कर हर्ष से उछलते भगत सिंह उठ खड़े हुए और फाँसी के लिए झूमते हुए चल पड़े। फाँसी के फन्दे में झूलने तक वीरवर भगत सिंह का मनोबल आकाश की भाँति ऊँचा ही उठा रहा।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles