जब तक मनुष्य में कोई भी भलाई रहे तब तक उसका सत्कार करना चाहिए, पर जब मनुष्य अपना मनुष्यत्व त्याग देने का हठ करें, तब उसका त्याग करना मनुष्य मात्र का कर्त्तव्य हो जाता है।