अपनी साख जमाइए।

January 1952

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‘साख’ से अभिप्राय आपकी वह प्रतिष्ठा है, जो समाज में आपका आचरण, व्यवहार, आर्थिक स्थिति सामाजिक लेन देन तथा पारस्परिक सद्भाव पर निर्भर है। इसमें वे समस्त तत्व सम्मिलित हैं, जो समाज में आपकी सामूहिक प्रसिद्धि के कारण बनते हैं। आपके पास बहुत उज्ज्वल चरित्र है, गहन अध्ययन मनन तथा ज्ञान-विज्ञान आदि सब कुछ है, किन्तु यदि दूसरे आपका मान नहीं करते हैं, आवश्यकता के समय आपको रुपया प्राप्त नहीं होता, या जन्म, विवाह, मृत्यु के अवसरों पर आपके चार जातीय बन्धु आकर आपका सुख-दुःख नहीं बाँटते है, तो आपका ज्ञान-विज्ञान सब व्यर्थ है।

दूसरे आपके चरित्र, धर्म, अर्थ के सम्बन्ध में क्या विचार रखते हैं, यह आपके लिए अत्यन्त महत्व पूर्ण विषय है। अपने घर में सभी राजा हैं, सबका मान होता है, किन्तु समाज के विस्तृत क्षेत्र में आपको कितनी प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, यह भी विचारणीय है। समाज की विस्तृत कर्मस्थली में समाज के अन्य सदस्यों के विचार इतने महत्वपूर्ण हैं कि उनके कारण हर प्रकार से सफल व्यक्ति भी असफल प्रतीत होते हैं।

सफलता एक सापेक्षित गुण है। इसका संबंध समाज से है। जिस समाज में आप रहते हैं, उसके सदस्य आपके विषय में जो कुछ विचार रखते हैं, उससे आपका ही नहीं, आपके परिवार का, प्रत्येक घर में रहने वाले व्यक्ति का भविष्य बनता बिगड़ता है। अपनी आंख से आप व्यापार में तो कार्य सम्पन्न करते ही हैं, धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक आदि अन्य क्षेत्रों में भी प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं।

अपनी साख बनाने के लिए आपको अपने चरित्र में सामाजिकता के तत्व की अभिवृद्धि करनी चाहिए। सामाजिकता के अंतर्गत आने वाले अनेक छोटे बड़े कार्य हैं, जो आपके चरित्र में उभरने चाहिए। सर्वप्रथम मिलनसारी की अभिवृद्धि आवश्यक है। आपका समाज में अधिक से अधिक लोगों से मिलना-जुलना, व्यवहार, लेन देन चलना चाहिये आप कितने व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं? किन किन से किस किस प्रकार का काम पड़ता है? यह तो आवश्यक है ही, आपको यह भी ध्यान में रखना है कि किन से आगे चल कर काम पड़ सकता है। मान लीजिये आपके समाज में कुछ प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं; विद्वान् हैं तथा उच्चपदाधिकारी हैं। इनमें से प्रत्येक से आपको प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कुछ न कुछ सहायता प्राप्त हो सकती है। प्रारम्भिक जान पहिचान के पश्चात् धीरे धीरे मित्रता की वृद्धि करते रहिए। उत्सव त्यौहारों के अवसरों पर मिलने जाना, छोटे मोटे उपहार भेजना, दूसरों के सामाजिक उत्सवों पर सम्मिलित होना अतीव आवश्यक है।

प्रतिष्ठित नागरिक की भाँति रहना अनिवार्य है। आपके वस्त्र वेशभूषा, आचार व्यवहार आदि ऐसे पवित्र हों कि उनका सात्विक प्रभाव आस पास के व्यक्ति पर पड़ सके। घर में आप जो कुछ चाहें खायें-पीयें; जैसे चाहें बैठें-उठें, कोई देखकर आलोचना करने वाला नहीं है। आप किस प्रकार के बाजे से मनोरंजन करते है, कैसी पोशाक में रहते हैं, यह इतना विचारणीय नहीं है, जितना कि आपका सामाजिक आचार तथा व्यवहार। समाज में आपको प्रत्येक नागरिक की रुचि, आराम आदि ध्यान रख कर कार्य करना होगा।

आपकी सज्जनता, चरित्र की निर्मलता, योग्यता और व्यवहार की मृदुता ऐसे दैवी गुण हैं, जिनका बहुत प्रभाव गुप्त रूप से आपके चारों ओर निरन्तर फैला करता है। आपका प्रत्येक कार्य गुप्त रूप से इस चरित्र रूपी सम्पदा को विकीर्ण करता है। सज्जनता आपके प्रत्येक कार्य से पुरुष के सौभाग्य की तरह निरन्तर निकला करती है। इन दैवी गुणों पर आश्रित आपकी साख स्थायी चीज है। यह साधारण वस्तु नहीं जिसकी प्राप्ति एक दो दिन में जादू के जोर से उत्पन्न की जा सके। इसका विकास क्रमिक होता है। धीरे-धीरे जैसे जैसे आप जनता के संपर्क में आते हैं, लोग आपके विषय में धारणाएँ बनाते हैं। आपका बोलना-चालना, लेन देन, दूसरों से बोलचाल सब कुछ आपके विषय में दूसरों के मस्तिष्क में धारणाएँ निर्मित किया करती हैं। अतः अपने व्यवहार में सावधान रहिए। दूसरों के सामने अपना सबसे आकर्षक पहलू रखिये, जिसे वे देखकर आकर्षित हो सकें। एक बार आकर्षित होने के पश्चात् आपके चरित्र के गुण और योग्यता उसे स्थिर रख सकेंगे।

रुपये उधार देने या लेने में बड़े सावधान रहें। जिसका जितना रुपया लिया जाय, वह ठीक समय पर, या वाजिब समय से पूर्व ही दे देने में समस्त पंडताई, योग्यता और भलमनसाहत है। समय पर रुपये की अदायगी से साख कायम रहती है। जो व्यक्ति रुपये उधार लेकर उसे अदा करना भूल जाते हैं; जो दुकानदार उधार लेकर बड़े व्यापारियों को समय पर पैसा अदा नहीं कर पाते, उनकी साख नष्ट हो जाती है। उन्हें कोई रुपया उधार नहीं देता; समाज में भी प्रतिष्ठा नष्ट हो जाती है।


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