सज्जनो, सद्व्यवहार महान।
सभ्यता का यह है संसार।
सुकर्मों का यह है भंडार॥
बढ़ाता जन-जन में यह प्यार।
विश्व का करता यह उपकार॥
बढ़ाता मानवता का मान।
सज्जनो, सद्व्यवहार महान॥1॥
सभी से कोमल, मृदु व्यवहार।
उच्च, प्रिय, सुन्दर, सत्य विचार॥
प्राणियों के प्रति सदा उदार।
सरलता, समता के आगार।
यही तो है इसकी पहचान।
सज्जनो, सद्व्यवहार महान॥2॥
सुखद सम्भाषण, मधुर स्वभाव।
न रहते ऊँच नीच के भाव॥
दया का सबके प्रति बर्ताव।
विरोधी से भी नहीं दुराव॥
व्यक्ति इससे पाता सम्मान।
सज्जनो, सद्व्यवहार महान॥3॥
सभ्य वाणी, आदर सत्कार।
बहा देता सुख सुरसरि धार॥
क्षणिक दुख दानव जल हों छार।
छिपी है इसमें शक्ति अपार॥
देवता बन सकता इन्सान।
सज्जनो, सद्व्यवहार महान॥4॥
(श्री भगवती प्रसाद सोनी ‘गुँजन’ लखनऊ)