मेहमान की अनुदारता :- एक कटु सत्य

January 1952

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मान लीजिए, आपके यहाँ कोई मेहमान आता है, और आपकी प्रेरणा से या स्वयं अनाधिकार चेष्टा से वह आपके यहाँ ठहरता है, अथवा कोई निकट सम्बन्धी स्थायी रूप से आपके यहाँ टिकता है, या किसी मित्र, सम्बन्धी के बच्चे को पढ़ाने, या नौकरी कराने के लिये आप कुछ समय के लिए अपने यहाँ रख लेते हैं। इस परिस्थिति में दूसरे का व्यक्ति, या मेहमान आपके विषय में क्या सोचता है।

नये वातावरण में फिट न होना :- मेहमान आपके घर तथा व्यवस्था को अपनी रुचि एवं आदतों के मापदंड, स्वभाव, मानसिक स्तर, तथा पारिवारिक स्टेंडर्ड से देखता है। उसका दृष्टिकोण स्वयं उसके घरेलू वातावरण तथा आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक स्थितियों से विनिर्मित होता है।

उसे अपने घर में रख कर आप उस पर अपनी विचारधारा या नियंत्रण में रह जाय; किन्तु उस नियंत्रण के हटते ही, आपके विरुद्ध अनेक शिकायतें उसके मानसिक क्षितिज पर उदित होंगी।

आप अपनी ओर से मेहमान तथा दूसरों के बच्चों को अधिक से अधिक प्रेम, सहानुभूति, सेवा, सहयोग देते हैं, पर यदि उसका “अहं” संतुष्ट नहीं है, तो उस पर किये गये अनेक अहसान व्यर्थ होंगे।

अहं—मानव की एक कमजोरी :- जो माता पिता, अक्सर अपने बच्चों या मातहतों पर अधिक नियंत्रण रखते हैं, वे उनके “अहं” स्वाभिमान को कुचलते हैं। मानव मात्र का यह स्वभाव है कि वह आजादी चाहता है; स्वतंत्रता उसे सबसे प्रिय है। किसी से दबने में उसकी आजादी में फर्क आता है। वह जब उन्मुक्त वायु में विचरण करना चाहता है, जब उसकी इच्छाएँ तथा मधुर कल्पनाएँ व्योम में विहार करती हैं, तब आप अपने कठोर अनुशासन, शुष्क प्रतिबन्ध, अथवा दमन द्वारा उसकी आजादी को कुचल डालते हैं। उसकी आकाँक्षायें अपूर्ण रह जाती हैं। आपके अनुशासन में निरन्तर उसका दमन होता है। यह दमन उसके अंतर्मन में अनेक गुप्त ग्रन्थियाँ निर्मित करता है। वह कुछ दिन आपकी प्रतिष्ठा की वजह से कुछ नहीं कहता किंतु अवसर पा कर उसकी स्वातन्त्र्य भावना विद्रोह कर बैठती है। इस विस्फोट से अनेक पुराने सम्बन्ध चूर-चूर हो जाते हैं।

दूसरे के बच्चों को पढ़ाने के लिये आप लाते हैं, बड़ी-2 आशायें बाँधते हैं। आप समझते हैं कि आपके संपर्क में रहकर बच्चा पढ़ लिख जायेगा किन्तु आपकी कल्पनाएं निर्बल साबित होती हैं। क्यों?

क्योंकि बच्चा अपने पुराने घर के वातावरण में आजाद था। माता पिता के प्यार ने उसे कोमल, काम से भागने वाला, आनन्दी स्वभाव, मस्त, “खाओ, पिओ, मौज उड़ाओ” वाली उक्ति को चरितार्थ करने वाला बना दिया था। अपने घर में कोई उसकी देखभाल न करता था; पढ़ने लिखने के सम्बन्ध में कोई सतर्क न था, उसकी “आवारागर्दी” को प्रेम की मिठास से दबा दिया जाता था। आपके घर में पदार्पण करने पर उसे ज्ञान होता है कि यहाँ वातावरण सर्वथा भिन्न है। यहाँ उसकी आजादी में फर्क पड़ता है, वह न बाहर इच्छानुसार घूम फिर सकता है, न मित्रों में हँसी ठट्ठा कर सकता है, सिनेमा, सैर सपाटा, रामलीला आदि के लिए भी उसे आपका मुहताज बनना पड़ता है। उसका पृथक कोई अस्तित्व नहीं है। यह परावलंबन की भावना ही उसके लिए अप्रिय है।

गुणों का प्रोत्साहन समस्या का एक मात्र हल :-

पुरानी परिस्थितियों में ढालना, पुरानी आदतें छोड़कर नई परिस्थितियों के अनुसार व्यक्तित्व को चलाना उसके लिए आसानी से संभव नहीं होता। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह उसके बने बनाये व्यक्तित्व के लिए आसानी से संभव नहीं होता। अतः आप दूसरों को मेहमान की तरह कितनी ही अच्छी तरह रखिये, उनके बच्चों को सबसे निष्कपट प्रेम दीजिए, किन्तु वे कभी संतुष्ट नहीं होते। उनके “अहं” की तुष्टि न होने से वे नये घर तथा वहाँ के रहने वालों से प्रेम नहीं कर पाते। किसी व्यक्ति को पूर्ण तृप्त करने का साधन उसके “अहं” भाव को संतुष्ट करना है। किसी मेहमान को इस तरह सम्हालना कि उसकी अहं भावना संतुष्ट रह सके, उसे प्रसन्न करने का सबसे प्रधान साधन है। मेहमानों के गुणों की प्रशंसा तथा प्रोत्साहित कर हम मेहमानों को प्रसन्न रख सकते हैं। इस मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण को व्यवहार में लाने का प्रयत्न करना चाहिए। समाज में पारस्परिक सम्बन्धों में मधुरता लाने के लिये इस दृष्टिकोण की विशेष आवश्यकता है। उत्तम यही है कि दूसरों को अधिक काल के लिये अपने घर का मेहमान न बनाया जाय। दूसरों के बच्चों को नौकरी या पढ़ने लिखने के लिए अपने घर में न ठहराया जाय। इससे वह स्नेह भी नष्ट हो जाता है, जो दूर रहने के कारण पनपता है। दूरी प्रेम को बढ़ाने वाली है, अधिक दिन तक पास रहना घृणा की उत्पत्ति करता है। घर जमाई उस प्रेम को प्राप्त नहीं कर पाता जो दूर रहने और वर्ष में एक दो बार आने वाला जमाई प्राप्त करता है।

दूरी में आकर्षण है। दूर से अपने व्यक्तित्व को दिखाने वाले व्यक्ति समाज के लिए आकर्षण का केन्द्र बने रहते हैं।


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