मूर्खों की उपेक्षा किया करें।

January 1952

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समाज में आपकी खिल्ली उड़ाने तथा सद्मार्ग में बाधाएँ उपस्थित करने वाले मूर्खों की कमी नहीं है। प्रत्येक बड़े से बड़े व्यक्ति को ऐसे व्यक्तियों का सामना करना पड़ता है, जो विद्या, बुद्धि, चरित्र गौरव, निष्ठा, सहानुभूति या योग्यता में आपसे छोटे हैं। इन व्यक्तियों का कुछ ऐसा स्वभाव होता है कि शुभ कार्य में बाधा पहुँचाते हैं। सज्जनों के मार्ग में अड़चनें उपस्थित करते हैं। ईर्ष्या, द्वेष या सस्ती उपहास वृत्ति के वशीभूत होकर आपका मजाक उड़ाते चलते हैं।

इनके साथ आपका व्यवहार उपेक्षा का ही होना चाहिए। आप उनकी आलोचना, टीका टिप्पणी या हँसी मखौल की और ध्यान ही न दीजिए। उन्हें अपना राक्षसी स्वभाव दिखाने दीजिए; आप अपनी साधुता, सज्जनता और शालीनता न छोड़िये। अपने रास्ते चलते रहिये। उनसे व्यर्थ झगड़ा मोल न लेना ही श्रेष्ठ है।

ईर्ष्यालु मूर्खों से प्रभावित न हों :-

“शरीफ “ लोग अक्सर सोचा करते हैं कि अमुक व्यक्ति मुझसे क्यों जलता है; मैंने तो उसका कुछ नहीं बिगाड़ा है। वे सोचते हैं, मैं तो पाक-साफ हूँ। मुझमें किसी भी व्यक्ति के लिये दुर्भावना नहीं है। बल्कि, अपने दुश्मनों के लिये भी मैं भलाई ही सोचा करता हूँ। फिर भी ये मेरे पीछे क्यों पड़े हुए हैं? मुझमें कौन से ऐसे ऐब हैं, जिन्हें दूर करके मैं इन दुष्टों को दूर कर सकता हूँ?”

ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जब इस तजुर्बे से होकर गुजरे तो उन्हें एक सूत्र कहा—‘तुम्हारी निन्दा वही करेगा, जिसकी तुमने भलाई की है।’

नीत्से जब इस कूचे से होकर निकला तब उसने जोरों का ठहाका लगाया और कहा कि ‘यार, ये तो बाजार की मक्खियाँ हैं, जो अकारण हमारे चारों ओर भिनभिनाया ही करती हैं। ये सामने प्रशंसा और पीछे निन्दा किया करते हैं। हम इनके दिमाग पर बैठे हुए हैं। ये मक्खियाँ हमें भूल नहीं सकतीं और चूँकि ये हमारे बारे में बहुत कुछ सोचा करती हैं। इसलिए ये हमसे डरती हैं और हम पर शंका भी करती हैं। ये मक्खियाँ हमें हमारे गुणों के लिए सजा देती हैं। ऐब को तो यह माफ कर देंगी, क्योंकि बड़ों के ऐब को माफ कर देने में भी एक शान है, जिस शान का स्वाद लेने को ये मक्खियाँ तरस रही हैं।”

उपरोक्त दृष्टिकोण ही उचित है ये मूर्ख, ये दुष्ट, ये शत्रु, बेचारे बड़े छोटे हैं; निम्न स्तर पर हैं, ना समझ और ईर्ष्या के शिकार हैं। इन मूर्खों की बातों की ओर तो उपेक्षा का भाव ही सर्वश्रेष्ठ है। जो इनकी ओर से चुप्पी साधे रहता है वही सफल रहता है।

इन लोगों से वचन के लिए नीत्से का उपदेश सुनिए—“बाजार की मक्खियों को छोड़कर एकान्त की ओर भागो। जो कुछ अमर तथा महान् है उसकी रचना तथा निर्माण बाजार तथा सुयश से दूर होकर ही किया जाता है। जो लोग नए मूल्यों का निर्माण करने वाले हैं, वे बाजारों में नहीं बसते, वे शोहरत के पास नहीं फटकते। जहाँ बाजार की मक्खियाँ नहीं भिनकतीं।”

“सोने वाले कुत्तों को सोने दीजिए” अँग्रेजी की इस कहावत में गहरा मर्म छिपा है। ये दुष्ट व्यक्ति कटखने कुत्तों की तरह हैं। जितनी देर सोते हैं, इन्हें सोने दीजिये। अन्यथा ये अपनी दुष्टता छोड़ने वाले नहीं हैं।

आप अपना सत् कार्य किये जाइये। दूसरों की अनुमति, प्रेरणा, प्रोत्साहन या बढ़ावा दिलाने की क्यों प्रतीक्षा करते हैं? प्रसन्न और सफल हम तभी हो सकते हैं, जब इन्हें उपेक्षित छोड़ कर इनकी आलोचना या उत्साह की परवाह न करते हुए अपनी राह चलते रहें; अपने उद्देश्य की पूर्ति में संलग्न रहें।

प्रत्येक दुष्ट के मन में अहं भाव बड़ी तीव्र मात्रा में होता है। वह उसी दर्प की पूर्ति के लिए आपको छेड़ता है। वह आपसे प्रशंसा चाहता है कभी कभी सहानुभूति के शब्द पाकर वह आपका मार्ग साफ छोड़ सकता है। इस तरीके को भी सोच समझकर अपना सकते हैं।

मूर्खों को उनके स्वर्ग में ही रहने दीजिये।


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