—किसी के गुण दोष की आलोचना मत करो। तुम्हारा काम सेवा करना है। कर्मों का निर्णय करना नहीं।
—चाहे कोई हो यदि तुम्हारी सेवा की उसे आवश्यकता है, तो अवश्य करो।
—दूसरे तुम्हें क्या कहते हैं इस पर ध्यान मत दो तुम अपनी दृष्टि में अच्छे बनो, महान् बनो।
—उदार बनो। दूसरों के विचारों को सुनो, सोचो और यदि ठीक हो तो मानने में मत हिचको।
—किसी की आपत्ति में हँसी मत करो। क्योंकि तुम पर भी आपत्ति आ सकती है।
—यदि तुम आपत्ति में दूसरों की सहायता नहीं करते, तो तुम्हें भी विपत्ति में दूसरों से सहायता पाने की आशा नहीं करनी चाहिये।
—दूसरों से जैसा व्यवहार अपने प्रति चाहते हो, वैसा ही दूसरों के साथ भी करो।
—दूसरों का सम्मान करो; पर अपने लिये सम्मान मत चाहो।
—यदि उपकार किया है तो बदले की आशा मत करो। यह तो वाणिज्य होगा।
—किसी के साथ उपकार किया है, तो उसे प्रसिद्ध करके उपकृत को लज्जित मत करो।
—स्पष्ट बोलो, जो कुछ कहना हो नितान्त स्पष्ट कह दो।