अप्रिय बात प्रकट करना

January 1952

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समाज में दूसरों से व्यवहार करते समय अनेक बार आपको अनेक कटु सत्यों का उद्घाटन करने के अवसर प्राप्त होते हैं। आप अफसर हैं, आपका मातहत काम नहीं करता है। आपको उसकी ताड़ना करनी है। आपका नौकर ठीक समय पर नहीं आता या काम से जी चुराता है। डाट फटकार करने से उसके भाग जाने का भी डर लगा है। आप दुकानदार हैं; ग्राहक उधार माँगता है उधार के कारण आपकी पूँजी व्यर्थ ही नष्ट होती जा रही है। ग्राहक से पुराने रुपयों का तकाजा या वसूल बाकी करनी है; नया उधार नहीं देना है। किस प्रकार यह अप्रिय बात प्रकट करें? आपका बड़ा पुत्र, पुत्री, पत्नि, माता या पिता कोई अनुचित बात करता है। उसे बिना नाराज किये आपको रोकना है। किस प्रकार की बातें करें कि वे अपनी आदत भी छोड़ दें, और आपके पारस्परिक सम्बन्ध भी मृदु बने रहें? आप अध्यापक या व्याख्याता हैं। आपको अपने शिष्यों की ताड़ना करनी है; श्रोताओं पर क्रोध प्रकट करना; वह भी उस ढंग से कि वे नाराज न हो जायं। आप मातहत हैं आपका अफसर आपके ऊपर अत्याचार करता है। आप अपने ऊपर होने वाले इस अत्याचार को कैसे प्रकट करें?

मनुष्य नाराज तब होता है, जब उसकी मान हानि हो; या जब वह यह समझे कि आपने उसकी “अहं” भावना पर अनुचित दबाव डाला है। “अहं” को ऊँचा रखना, आत्म-प्रतिष्ठा बनाये रखना प्रत्येक मानव का सहज स्वभाव है।

जब आप दूसरे को डाटें फटकारें, तो इस ढंग से अपने व्यवहार तथा शब्दों को व्यवहार में लाइये कि “अहं” भाव को न्यूनतम ठेस पहुँचे। एक फटकार सुनाकर फिर उसके अहं को धीरे धीरे उभार दें। अथवा पहले दूसरे व्यक्ति के शील गुण या योग्यताओं की प्रशंसा कर चतुराई से यह सुझा दे कि इस प्रकार की गलती करना उसके जैसे महान् व्यक्ति के लिए उचित नहीं है। यदि आप उसे ऊँचा उठाकर उसकी निर्बलताएँ दिखाएँगे तो दूसरा व्यक्ति बुरा न मानेगा।

यदि आपको दूसरे से कुछ काम निकालना है, तो यकायक अपना अभिप्राय न कह बैठिये, वरन् बातचीत का प्रारम्भ मित्रता से कीजिए। जब दूसरा व्यक्ति प्रसन्न मुद्रा में हो तब आप अपनी माँग पेश कर सकते हैं। दूसरे की परिस्थिति का ध्यान रखिए। किसी के सामने ऐसी माँग पेश न कर बैठिये जिसे वह पूर्ण न कर सके और अपनी आत्महीनता समझें।

बच्चों को ताड़ते समय ऐसे संकेतों का प्रयोग कीजिए जिसमें नकारात्मक या ध्वंसात्मक आलोचना न हो वरन् जिसके प्रत्येक शब्द से यह प्रतीत हो कि आप उसे बहुत ऊँचा समझते हैं। वह आपके द्वारा विज्ञापित स्तर तक उठाने के लिये जमीन आसमान एक कर डालेगा।

आप अफसर हैं; मातहत से काम निकालना है तो उसे इस प्रकार धमका दीजिए कि वह आपके संकेतों को समझ ले। उदाहरणार्थ आप कहिए, “मिस्टर शर्मा, आप तो इतना अच्छा टाइप करते हैं, आपका ड्राफ्ट इतना अच्छा होता है कि मुझे कलम लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। फिर आज कैसे यह गलतियाँ, यह गन्दगी, यह जल्द बाजी दीखती है। नहीं, आपको अपनी उत्कृष्टता से नीचे नहीं आना चाहिए। मैं समझता हूँ आप ऐसा कर ही नहीं सकते। यह काम आपका नहीं किसी दूसरे का हो सकता है, आदि।”

उधार माँगने वाले से दुकानदार को कहना चाहिए, “बाबूजी हाथ तंग है। नकद पैसों से काम चलता है। थोड़ी पूँजी से काम चलाते हैं। आपके लिए तो यह साधारण सी बात है। नकद पैसे देंगे, तो हमारे दस काम चलेंगे। कुछ ग्राहक कर्जे के पैसे देने में बड़ा तंग करते हैं। हमारा मतलब यह है कि बड़ी मुश्किल से देते हैं। अब सब के लिए यही नियम कर दिया कि नकद लेन देन चले” आदि।

पत्नि की ताड़ना में विशेष सतर्क रहिए, क्योंकि स्त्रियाँ अधिक अधिक संवेदनशील होती हैं। उनकी संवेदन शीलता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। एक कटु बात के साथ एक मृदु बात करनी चाहिए, कटु मृदु का सम्मिलित रूप उन्हें ग्राह्य हो सकता है। उनकी ताड़ना का स्वरूप कुछ इस प्रकार का हो सकता है-

“आप के कारण घर बड़ा सुव्यवस्थित रहता है। प्रत्येक वस्तु ठीक स्थान पर, झाडू बुहारी सब लगा हुआ। बच्चे साफ सुथरे पर अगर तुम स्वयं भी सलीके से कपड़े पहने रहो, तो क्या ही उत्तम रहे। तुम घर तो साफ रखती ही हो, यदि जरा रसोई घर भी साफ रहा करे, तो बड़ा मजा आये। पूजा पाठ पड़ोसिन से बातचीत में तुम्हारा समय जाता है। वह ठीक है। इन में समय करना चाहिए पर यदि तुम घंटा भर अध्ययन पठन पाठन भी कर लिया करो, तो तुम्हारी बराबरी करने वाला दूसरा कोई न होगा।” आदि।

अप्रिय बात एक दम मत पुकार कर बैठिये, वरन् उसके लिए प्रस्तावना बाँध कर धीरे-धीरे कौतुक से प्रकट कीजिए। जितने क्रम-2 से आप अग्रसर होंगे, उतनी ही दूसरों को मानसिक वेदना कम होगी।

क्या आपके परिवार में कलह, झगड़े और नाना प्रकार के बुरा मनव्वल होते रहते हैं? क्या कभी ऐसे समय आते हैं, जब आप एक दूसरे से नहीं बोलना पसन्द नहीं करते? या जब परिवार के किसी व्यक्ति पर आपको क्रोध हो आता है? क्या आपका परिवार आपको समझ नहीं पाता है?

यह स्मरण रखिये, कि आयु में कमी या अधिकता कार्य तथा दृष्टिकोण का अन्तर अनेक बार झगड़ो तथा कलह का प्रधान केन्द्र बन जाता है। अतः परिवार के हर व्यक्ति को अपने आपको प्रसन्नतापूर्वक या अप्रसन्नता से परिवार में ढालना या फिट करना होता है। कुछ आप अपनी स्वतन्त्रता छोड़िये कुछ दूसरे त्याग की भावना से काम लें, तो परिवार में स्वर्ग की सृष्टि हो सकती है। संभव है, जब आप यह समझते हैं कि आपके परिवार वाले आपको नहीं समझते हैं, स्वयं आप ही उनके लिए एक कठिन बन गये हों? यदि ऐसा है तो आपको अपनी आदतें सुधारनी होंगी।

मनुष्य का स्वभाव ही दूसरे में दोष निकालना है। इस प्रकार प्रत्येक अपनी बड़प्पन की भावना प्रदर्शित करना चाहता है। अतः दूसरों को क्षमा करते चलिए। उनके स्वभाव तथा परिस्थितियों को परखिये, और आयु, परिस्थिति के अनुसार उनसे कार्य की आशा रखिए। अप्रिय आलोचनाओं में सबके लिए प्रशंसा का मधु भी मिश्रित किया कीजिए।


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