ठहरो और प्रतीक्षा करो।

January 1952

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अधीरता बचपन की निशानी है। छोटा बालक क्षुद्र सी वस्तु के लिये रोता पीटता है। जिद कर माता-पिता के नाक में दम कर देता है; जो कुछ कार्य करता है, उसका फल तुरन्त चाहता है। उसमें परिपक्वता नहीं होती। उसका मन ललचाता रहता है। हर वस्तु के प्रति उसके मन में एक सहज आकर्षण होता है।

इस अधीरता का बड़े व्यक्तियों में होना एक कमजोरी है। जो व्यक्ति आज पेड़ लगाकर आज ही उसका फल चखना चाहता है, उसे मूर्ख कहा जायगा। संसार में सभी वस्तुओं के विकास तथा परिपक्वता के लिए एक निश्चित समय का क्रम है। उस समय का पालन प्रत्येक वस्तु तथा जीवन में होना अवश्यंभावी है। समय के पूर्व कुछ भी नहीं हो सकता। ‘ठहरो, और प्रतीक्षा करो’-इसमें गहरा तथ्य छिपा हुआ है। ठहरो का यह अभिप्राय नहीं कि आपका जीवन आलस्य या शून्यता में व्यतीत हो। ठहरने से हमारा अभिप्राय यह है कि उस काल में सतत् परिश्रम कर आप उत्तरोत्तर अपनी शक्तियाँ, योग्यताएँ, अच्छाइयाँ बढ़ाते रहें। कमजोरियों को छोड़ते रहें। एक एक सद्गुण चुन कर चरित्र रूपी उद्यान में लगावें। यह उन्नति का कार्य जितनी तीव्रता से चलेगा उतनी ही संसार में बढ़ने के लिए कम प्रतीक्षा करनी होगी।

जीवन के प्रारम्भ में हो सकता है आपको दूसरों से जली कटी बातें सुननी सहनी पड़ें। मन के घाव, दूसरों के द्वारा कही हुई कटी जली बातों के घाव समय के बहाव के अनुसार स्वयं विनष्ट हो जाते हैं। प्रतीक्षा करने से एक समय ऐसा अवश्य आता है, जब पुराना जमा हुआ मैल धुल कर साफ हो जाता है। प्रतीक्षा करने का अभिप्राय है अपने आपको बहते हुए समय, परिस्थिति तथा नई आवश्यकताओं के अनुसार ढालते चलना। प्रत्येक दिन संसार की प्रगति तेजी से होती जा रही है। जीवन में संघर्ष भी तीव्र होता जा रहा है। प्रतीक्षा काल आपके लिये अपनी योग्यताएँ बढ़ाने का समय है। संसार के अन्य देशों के उन्नतिशील व्यक्तियों, संस्थाओं, पुस्तकों से ज्ञान संग्रह करना बड़े से बड़े संघर्ष के लिए तैयारी का समय है।

प्रतीक्षा-काल कठिन परिश्रम का समय तो है ही, सतर्कता ध्यान और देखभाल का समय भी है। इस काल में आपको संसार की गति देखनी है। जन-रुचि का सचमुच अध्ययन करना है। आप जिस दिशा में उन्नति कर रहे हैं, उसका महत्व तथा मूल्य कितना घट या बढ़ रहा है, यह भी ध्यान रखना है। जो व्यक्ति समय और परिस्थितियों के प्रति सतर्क है, वह विकास-पथ का पथिक है। कूप मण्डूक की भाँति पड़े सड़ने वाले आदमी संसार में पिछड़ जाते हैं, जब कि सतर्क रहने वाले उन्नति के चरम शिखर पर आरुढ़ होते हैं। सतर्क व्यक्ति समय की मार के ऊपर हैं। वह समय की आवश्यकताओं से सदा-सर्वदा अपने को ऊँचा उठाये रहता है। जो समय चाहता है, उससे कहीं अधिक उसे देने के लिए प्रस्तुत रहता है। संसार में जितने महान् व्यक्ति हुए हैं। वे अपने ज्ञान, अनुभव तथा विद्या बुद्धि से इतने परिपूर्ण रहे कि उनकी योग्यता का स्तर कभी नीचा न हुआ। उन्होंने अपने ठहरने और प्रतीक्षा के समय इतनी योग्यताएँ इकट्ठी करली कि वे उच्च से उच्च पद पर प्रतिष्ठित हो सकें।

अंग्रेजी में एक कहावत है कि ‘कुत्ते के भी दिन फिरते है।’ अभिप्राय यह है कि हम में से प्रत्येक के जीवन में ऐसा महत्वपूर्ण लक्ष आता है, जब हमारी योग्यताएँ इतनी विकसित हो जाती हैं कि हम संसार की प्रतियोगिताओं में हिम्मत से खड़े होकर सफलता प्राप्त कर सकते हैं। यदि मनुष्य धीरे धीरे आत्मा विकास करता रहे, तो वास्तव में एक दिन वह उच्चतम पद के योग्य हो सकता है। हमारा अनुभव हमें आगे बढ़ाता है।

अनुभव का बड़ा मूल्य है। पुस्तकीय ज्ञान अपूर्ण और अधूरा-सा रहता है। संसार के विषय में जो मान्यताएँ हम स्वयं अपनी इन्द्रियों के ज्ञान से एकत्रित करते हैं, का अभिप्राय यही है कि अपना अनुभव बढ़ाइये। संसार की गति, मनुष्यों की आदतों, कूटनीतियों तथा गुप्त रहस्यों को देखिये आपको अनेक प्रचार की नई नई बातों का ज्ञान होगा। यही गुप्त रहस्य मिलकर आपका अनुभव बन जाएँगे। आपके अनुभव में अनेक ऐसी कटु अनुभूतियाँ भी सम्मिलित होंगी। आपको जहाँ ठोकर लगती है, आपका जो नुकसान होता है, वह दूसरे अर्थों में आपका अनुभव बढ़ाता है। आगे के जीवन में सतर्क रहने का आदेश देता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles