क्या पुरानी आदतों का छूटना असम्भव है?

January 1952

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अनेक व्यक्तियों के सन्मुख जब नई व्यावहारिक योजनाएँ प्रस्तुत की जाती है, “जो आदत या स्वभाव पड़ गया है, उससे मुक्ति असम्भव है।”-यह धारणा नितान्त भ्रममूलक है। आदत को छोड़ना कठिन है किन्तु असंभव नहीं है। यदि मनोबल को दृढ़ता से आत्म-विकास एवं सुधार में लगाया जाय, और मनुष्य यह संकल्प करले कि मुझे अमुक निन्दनीय आदत से मुक्ति प्राप्त करनी है, तो वह अवश्य उसका उन्मूलन कर सकता है।

आदत क्या है? यह एक मानसिक मार्ग है। जिस प्रकार गाड़ी के पहिये के एक ही मार्ग पर जाने से एक लकीर बन जाती है, उसी प्रकार एक कार्य को पुनः करने से एक मानसिक मार्ग का निर्माण हो जाता है। यह मानसिक मार्ग हमारे कार्य करने की संख्या से उत्तरोत्तर गहरा होता है, यहाँ तक कि इससे भिन्न-2 प्रकार की आदतों का निर्माण हो जाता है। प्रत्येक आदत की जड़ें अंतर्मन में गहरी बैठी रहती हैं। जिस प्रकार धीरे धीरे एक कार्य करने से आदत बनती है, उसी प्रकार धीरे-2 उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया करने से उसका उन्मूलन होता है। प्रत्येक गन्दी आदत के विरुद्ध आप उलटा काम करें। जब मन पुनः पुरानी कुत्सित आदत की ओर जाय, तो दृढ़ता से उसका सामना किया जाय और उसकी पुनरावृत्ति न होने दी जाय। पुरानी आदत करने में आसान होती है; इसलिए उसकी ओर स्वाभाविक रुचि रहती है। नई आदत का विकास प्रारम्भ में बड़ा अड़चन पूर्ण रहता है। किन्तु पुनःपुनः उसी को करने से उसी को करने में आनन्द आने लगता है और वह स्वाभाविकता का एक अंग बन जाता है।

व्यावहारिक दृष्टिकोण से आप में जो न्यूनताएँ हैं, या जो असभ्यताएँ आ गई हैं, उनका परिष्कार दीर्घ कालीन अभ्यास तथा सतत् संकल्प शक्तियों के समन्वय से ही संभव है। प्रत्येक आत्म विश्वास का इच्छुक यदि चाहे, तो इसके द्वारा मानसिक और व्यावहारिक कायाकल्प कर सकता है।

इसके विपरीत जो शिष्टता की आदतें हमारे बचपन में बरबस अंतर्मन में प्रविष्ट कर दी जाती हैं, वे हमारे आकर्षण का विषय बन जाती हैं। छोटे बच्चों को शिष्टाचार सम्बन्धी शिक्षा न देने के कारण उनका उच्च सोसाइटी में प्रविष्ट होना कठिन हो जाता है। बच्चे निरन्तर हमारा अनुकरण किया करते हैं।

यदि हम अपने बच्चों को शिष्ट, सभ्य, आकर्षक सुन्दर और उत्तरदायित्व पूर्ण नागरिक बनाना चाहते हैं तो यह आवश्यक है कि हम स्वयं उनके सन्मुख शिष्ट व्यवहार का ऐसा नमूना प्रस्तुत करें जिसका अनुकरण उन्हें जीवन में उत्साह और प्रेरणा प्रदान कर सके। जो माँ बाप स्वयं व्यवहार में ढीले ढाले हैं, प्रातः काल शय्या त्यागने, दन्त मंजन, स्नान, पूजा पाठ या वस्त्र धारण तथा उन्हें यथास्थान रखने में नियमों का पालन नहीं करते, उनके बच्चे, जो चौबीस घंटों में 15-16 घंटे उनके साथ रहते हैं, किस प्रकार सभ्यता और शिष्टाचार का पाठ पढ़ सकते हैं?

जैसे हम हैं, वैसा ही हमारा वातावरण भी है। सभ्य व्यक्ति की प्रत्येक वस्तु आपको यथा स्थान,साफ सुथरी,आकर्षक मिलेगी। जूतों से लेकर कमीज कोट टोपी या बाल काढ़ने का कंघा तक स्वच्छ रखा मिलेगा। उसके जूतों पर न मैल होगा, न कंघे में बाल लगे हुए होंगे। उसके कोट या पतलून या धोती में शिकन न मिलेंगी। वह वस्त्रों की देखभाल,सम्हाल के कारण दूसरों से आधे वस्त्रों में भी आकर्षक प्रतीत होगा। कम खर्चे में वह अधिक तरह के सुख-प्राप्त कर सकेगा। उसे लम्बा चौड़ा बढ़िया मकान नहीं चाहिए। छोटे से मकान में,या एक कमरे का ही वह इतना उत्कृष्ट प्रयोग करेगा कि उसकी सभ्यता प्रकट हो जायगी। शिष्टाचार का अर्थ यही नहीं कि आप दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। स्वयं अपने साथ भी आपका व्यवहार उत्तम होना अनिवार्य है। यदि आप अपने साथ दुर्व्यवहार करते है तो बड़ा पाप करते हैं।

आप पूछेंगे कि हम अपने साथ किस प्रकार दुर्व्यवहार करते हैं? इसके अनेकों रूप हैं। आप जानते हैं कि ठीक समय पर उठने, व्यायाम करने टहलने, या विश्राम करने से आपका स्वास्थ्य ठीक रहता है। किन्तु शोक! आप न तो ब्रह्म मुहूर्त में उठते हैं, न व्यायाम, टहलना या विश्राम करते हैं। आप रुपये के लोभ में दिन रात तेलों के बैल की तरह पाई पाई इकट्ठी करने में मारे मारे फिरते हैं। आपके पास पर्याप्त धन है, जिसके द्वारा आप भोजन, वस्त्र, तथा अच्छे मकान का प्रबन्ध कर सकते हैं, किंतु आप कंजूसी के कारण इनमें से कोई भी काम नहीं करते। यह सब अपने प्रति दुर्व्यवहार है।

अपने शरीर की बुराई की तरह जानते बूझते आप अपने बच्चों की आदतों, या सभ्यता से गिरे हुए व्यवहार को नहीं रोकते, या उसकी गलती पर सजा नहीं देते, तो आप अन्याय करते हैं। अपनी पत्नी की असभ्यताओं को रोकना आपका एक पुनीत कर्त्तव्य हो जाता है। परिवार के और सदस्यों की खराबियों या अशिष्टताओं का आप शिष्ट रीतियों से परिष्कार कर सकते हैं, अपने मातहत,नौकरों, आदि को अशिष्टता से रोक कर आप समाज में अच्छाइयों के बीज बो सकते हैं। यदि ऐसा नहीं करते, तो यह आपका दुर्व्यवहार है।

आपकी दृष्टि कमजोर है, किन्तु फिर भी आप सिनेमा देखते हैं, मिर्च मसाले, खट्टी चीजों का व्यवहार करते हैं, यह अपने प्रति दुर्व्यवहार हुआ, अपने अन्दर किसी मादक दृव्य को लेने की आदत डाल कर विषपान करना आत्म-घात के बराबर गर्हित है।


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