मथुरा में गायत्री तीर्थ बनाने की योजना किसी व्यक्ति के संकल्प से नहीं वरन् माता की प्रेरणा से बनी है, यह इस युग की एक अत्यन्त उपयोगी आवश्यकता है। ब्रह्म विद्या, तपश्चर्या, संयम, सद्ज्ञान एवं शक्ति विज्ञान का गम्भीर अन्वेषण एवं विशद् प्रस्तार करने के लिए एक केन्द्रिय स्थान होना जरूरी था। कितने ही सूक्ष्म, एवं रहस्य मय कारणों से वह स्थान मथुरा चुना गया। पूर्व युगों में भी ऐसे प्रयत्न इसी पुण्य भूमि से प्रारम्भ हुए थे।
माता की प्रेरणा अपूर्ण रहे, दैवी संकल्प निष्फल हो जाय, यह संभव नहीं। यह तीर्थ तो छोटे या बड़े किसी न किसी रूप में बनेगा ही। इस यज्ञ में कौन श्रद्धालु अपनी कितनी श्रद्धा उपस्थित करता है, केवल इसका एक अवसर माता ने परीक्षा के रूप में सामने रखा है। हर्ष की बात है कि श्रद्धालु लोग इस परीक्षा में असफल नहीं हो रहे हैं और कार्य की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए समुचित श्रद्धाँजलियाँ उपस्थित कर रहे हैं।
जिनके मन में माता जितनी प्रेरणा एवं श्रद्धा उत्पन्न कर रही हों वे अपनी श्रद्धाँजलि भेज दें। मन्दिर निर्माण कार्य अधिक दिन रुका न रहेगा। माता चाहेंगी तो एक दो व्यक्ति ही इस कार्य को पूरा कर सकते हैं परन्तु उनने अपनी अपनी उदारता की परीक्षा परिचय देने का सभी को अवसर दिया है। जो चाहे इस पुण्य पर्व में सहयोग देकर अपने को, अपने धन को, धन्य बना सकते हैं।