अपने मातहतों से ऐसा व्यवहार कीजिए कि......

January 1952

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मातहतों के भिन्न भिन्न प्रकार :-

आप अफसर हैं, तथा आपके नीचे 25 मातहत काम करते हैं। इन मातहतों के भिन्न-2 स्वभाव, रुचियाँ, आदतें तथा मानसिक सुझाव हैं। कोई उग्र और क्रोधी है। आपके तनिक से दबाव या डाट या फटकार से सामना करने को प्रस्तुत हो जाता है। आप जितना ही उस पर दबाव डालते हैं, उतना ही उससे आपका सम्बन्ध कटु होता जाता है।

कोई मातहत दब्बू है। आपकी डाट फटकार से वह पूँछ दबा लेता हैं, किन्तु उसके गुप्त मन में आपके दुर्व्यवहार पर वह ईर्ष्या तथा घृणा से सुलगता और वह प्रतिशोध लेने की फिक्र में हैं। आप उलझन में हैं कि क्या करें?

कोई मातहत खुशामदी है। आपके सामने मीठी मीठी प्रशंसात्मक बातें करते हैं, लेकिन ज्यों−ही आपने कमर फेरी, आपकी हजार त्रुटियों और कमजोरियों की चर्चा करना आरम्भ कर दिया। अपनी प्रशंसा सुन कर आप मिथ्या गर्व से फूल उठते हैं। ताड़ना भी नहीं कर पाते।

कुछ मातहत बदतमीज, असभ्य, असंस्कृत होते हैं, जिन्हें अफसर से कैसा व्यवहार करना चाहिये, यह भी नहीं आता। ये व्यक्ति आपसे क्रोध पर बदतमीज़ी करते हैं। आप लाख प्रयत्न करते हैं कि उसे बदतमीज़ी का अवसर न आने दें किन्तु किसी न किसी तरह से ऐसा कटु अवसर आ ही जाता है। आप अपने स्कूल, कालेज या दफ्तर से उसे निकाल भी नहीं सकते और काम भी लेना चाहते हैं। तो क्या करें? कठिन समस्या है।

कुछ मातहत कूटनीति जानने वाले, चुपचाप षड़यन्त्र करने वाले, ऊपर से सीधे सादे, भोले मीठे लेकिन अन्दर ही अन्दर विरुद्ध षड़यन्त्र कर आपकी प्रतिष्ठा तथा मान को मिट्टी में मिलाने वाले होते हैं। ये आपके आफिस के लिए खतरनाक हैं।

कुछ मातहत शेखचिल्ली टाइप के होते हैं, जो बढ़-बढ़ कर अनेक प्रकार की सच्ची झूठी बातें बनाते हैं। हवाई किले बनाने में सानी नहीं रखते। ये व्यक्ति आपके सामने बातचीत खूब करेंगे, लेकिन आपके दफ्तर का काम अपेक्षाकृत कम करेंगे।

इन्हीं भिन्न भिन्न प्रकारों में कुछ व्यक्ति सच्चे निस्पृह भी मिलेंगे, जो वास्तव में आपके मित्र, हितैषी हैं। सच्चे दिल से आपका भला चाहते हैं। ऐसे व्यक्ति प्रायः पीछे रह कर चुपचाप काम करने वाले, कम दिखावा पसन्द, सरल, बिना शान शौकत वाले होते हैं। आपसे कम मिलेंगे, लेकिन जो कुछ कहेंगे, करेंगे या सुझाव देंगे वे हृदय के गहन तल से प्रादुर्भूत होंगे और आपका सच्चा हित करेंगे।

कौशल : एक मात्र हल :-

इन सब परिस्थितियों में आपको एक गुण की आवश्यकता है। वह है कौशल या चातुर्य। अंग्रेजी में इसे ‘टैक्ट’ कहते हैं। भिन्न-2 प्रकार के व्यक्तियों से भिन्न-2 परिस्थितियों के अनुसार व्यवहार करना और उनकी योग्यता के अनुसार अधिक से अधिक कार्य निकालने की कला को कौशल या टैक्ट कहते हैं

ये भिन्न-2 प्रकार के व्यक्ति भिन्न-2 कठपुतलियाँ जो भिन्न तारों से जुड़ी हुई हैं, और उनसे काम लेने के लिए भिन्न-2 तार हिलाने पड़ते हैं।

यह कार्य निकालने का कौशल दो प्रकार को होता है। (1) जन्मजात (2) विस्तृत अनुभव और मनोवैज्ञानिक अध्ययन का परिणाम। कुछ व्यक्तियों में मूल रूप से यह प्रस्तुत रहता है। वे अपन अनुभव से इसे और विकसित कर लेते हैं, लेकिन जिनमें यह प्रतिभा नहीं होती वे हर व्यवहार में गलती करते हैं।

फिर भी, साधारण व्यक्ति चातुर्य एवं अंतःदृष्टि विकसित करता रहे और जनता की भिन्न प्रवृत्तियों का सूक्ष्म अध्ययन करता रहे, तो उसे इन व्यक्तियों की स्वभावगत रुचियों तथा कमजोरियों का ज्ञान हो जायेगा।

प्रत्येक माता-पिता, अफसर, सार्वजनिक कार्यकर्त्ता तथा अध्यापक को इस कला का अध्ययन करना चाहिए। इस दृष्टि से निम्न आवश्यक तत्वों पर ध्यान विशेष रूप से रखना चाहिए—

दूरी का आकर्षण :- अपने मातहतों, विद्यार्थियों, यहाँ तक कि बाल-बच्चों तक से कुछ दूरी अवश्य रखिये अर्थात् अधिक मत खुल जाइये। अफसर और मातहत, शिक्षक और विद्यार्थी, माता-पिता और बच्चों, सार्वजनिक और जनता के मध्य में एक फासला अर्थात् कुछ दूरी अवश्य रखनी चाहिये। दूर से प्रत्येक वस्तु हमें स्वभावतः बड़ी सुन्दर प्रतीत होती है। सिनेमा में तस्वीर दूर से सबसे आकर्षक प्रतीत होती है। समीप आने से हमें उसका खुरदरापन, कुरूपता, छोटी मोटी खराबियाँ, त्रुटियाँ बड़ी होकर स्पष्ट दीखने लगती हैं। जो बातें हम दूर से कभी न देखते, या ध्यान से न परखते वे भी पास आकर किसी भी महान् व्यक्ति के प्रति हमारे हृदय में घृणा उत्पन्न कर देती हैं।

बर्नार्ड शा नामक विख्यात साहित्यकार ने मानव मनोविज्ञान के विषय में एक बड़े मार्के की बात कही है। यह लेखकों के विषय में है, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के लिये उपयोगी है। आपने कहा कि लेखक (इसी प्रकार अफसर और अध्यापक) यदि अपनी और ख्याति चाहते हैं, तो उन्हें यथा समाज (मातहत, विद्यार्थियों, नौकरों) के सम्मुख आने से बचना चाहिये; अकसर लेखकों की बुद्धि उनकी देह से अधिक प्रतिभावान होती है, और उनके विषय में, उनकी रचनाएँ पढ़ कर जनता जो कल्पना करती है, वह लेखक (तथा अफसर, अध्यापक, नेता, प्रचारक, सुधारक, प्रोफेसर, अभिनेता, अभिनेत्री, बड़े-2 व्यक्तियों) को समीप से देखने पर नष्ट हो जाती है। यह सौभाग्य कम व्यक्ति को होता है कि उनके विचार जितने गम्भीर, मौलिक तथा ऊंचे हों, तथा वे दूर से जितने अच्छे और आकर्षक जँचते हों, उनकी देह भी उतनी ही सुगठित और तेजवान हो।

प्रत्येक की रुचि के अनुसार व्यवहार :- प्रत्येक व्यक्ति की रुचि का अध्ययन कर तदनुकूल व्यवहार करना चाहिए। सबको एक ही लाठी से हाँकना मूर्खता है। ऐसे अवसरों को कुशलता से दूर हटाइये जिनमें व्यर्थ ही मातहत, पुत्र-पुत्री,या विद्यार्थी आदि को आपका सामना करने का अवसर प्राप्त हो।

सुझाव संकेतों द्वारा ही दिया कीजिये। जो बात स्पष्ट करने में कटु और अप्रिय होती है, वही घुमा फिरा कर संकेत मात्र करने में सहन कर ली जाती है और मान भी ली जाती है।

लोगों के ‘अहं’ को कुचलने न दीजिये वरन् थोड़ी सी प्रशंसा की मिठाई देकर उसे ऊँचा रखिये। प्रारम्भ में प्रशंसा कर अपनी ओर दूसरे की भावना को उत्तेजित कर आप चाहें, तो दो चार खरी खोटी भी सुना सकते हैं। दूसरे की अच्छी भावनाओं को अपने पक्ष में उत्तेजित रखिये।

ऐसे अवसर निकालिये, जिनमें आप अपने मातहतों को आभारी तथा कृतज्ञ बना सकें। कोई प्रशंसात्मक बात का दूसरे के प्रति सहानुभूति की उक्ति आपके मातहत को आत्मीयता से भर देगी।


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