पौरुष का गौरव

August 1941

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यह नहीं कहा गया है कि विधाता नादान दुर्बलों को अपनी गोद में खिलाता है। वह हमें बुद्धि देता है, जिसका अर्थ है कि हम अपने ही ऊपर निर्भर रहें। उसने हमें यह आदेश दिया है कि हम रोते हुए जाकर उसका दरवाजा न खटखटायें। उसने अपने आपको हमारे क्षेत्र से अलग रखा है और वह निरन्तर चिंताशील माता के समान बार-बार प्रकट नहीं होता। इसके लिये उसे मैं वंदन करता हूँ। मुझे पूरी-पूरी जिम्मेवारी का अधिकार बख्श कर उसने मेरे पौरुष को सम्मानित किया है। वह कायरों को अपने हाथ का सहारा देकर नहीं चलाता, किन्तु उन्हें मृत्यु के अनुभव में से भी अकेले चलाने को मजबूर करता है ताकि वे निर्भयता से जी सकें।

माडर्न रिव्यू,

जनवरी 1940 ई. कवीन्द्र रवीन्द्र


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