किसी राजा को अपने सेवक के यहाँ जाना होता है तो वह उसके यहाँ कुर्सियाँ, फर्श, गलीचे आदि सजावट की आवश्यक सामग्री भेज देता है, ताकि वह उसका स्वागत कर सके। इसी प्रकार परमात्मा दर्शन देने से पहले अपने भक्त के हृदय में प्रेम, पवित्रता और श्रद्धा उत्पन्न कर देता है।
जब तक समुद्र का पानी हिलता रहता है तब तक उसमें सूर्य का प्रतिबिम्ब दिखाई नहीं पड़ता उसी प्रकार जब तक मन में वासनाओं की अस्थिरता है तब तक उसमें ईश्वर का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ सकता।
तुरन्त का पैदा हुआ बछड़ा पहले बार-बार फिसलता है और उठते ही गिर पड़ता है, उसी प्रकार धर्म मार्ग में कई बार असफलता होती है, परन्तु पीछे दृढ़ता आ जाती है।
एक छोटे पौधे के आस-पास बाढ़ खड़ी करके उसकी रक्षा करनी पड़ती है कि कहीं उसे पशु न चर जाय, किन्तु जब वह बड़ा हो जाता है, तो उसके नीचे अनेक पशु विश्राम करते रहते हैं। इसलिये आरम्भ में बुरी संगत से बचना चाहिये, किन्तु जब आत्मा महान् हो जावे तो दुर्जनों से कुछ हानि नहीं होती।
चुम्बक पत्थर वर्षों पानी में पड़ा रहे तो भी उसका अग्नि उत्पन्न करने का गुण नष्ट नहीं होता।
इसी प्रकार श्रेष्ठ पुरुष चाहे बुरे लोगों के बीच रहते रहें, पर उनके सद्गुणों में कमी नहीं आती।
एक मनुष्य को कुआँ खोदना था उसने एक जगह बीस हाथ खोदा वहाँ पानी न निकला तो दूसरी जगह खोदा, इसी तरह उसने बहुत सी जगह थोड़ा-थोड़ा खोदा पर कहीं पानी न निकला। एक विद्वान ने उससे कहा, मूर्ख! यदि एक ही स्थान पर इससे चौथाई भी मेहनत करता तो पानी निकल आता। चंचल मनुष्य धैर्य खोकर एक के बाद दूसरा काम टटोलते हैं पर यदि वे एक ही लक्ष पर स्थिर रहें तो सफल हो सकते हैं।