महान कार्यों का रहस्य

August 1941

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(श्री स्वेड मार्टन)

थामस ऐडीसन से किसी ने पूछा-”महाशय आपने इतने आविष्कार किये हैं क्या आप रात-दिन इन्हीं के लिये लगे रहते हैं? ऐडीसन ने कहा-मेरे सब आविष्कार लगातार प्रयत्न करने के फल मात्र हैं। जो काम मुझे करना होता है उसके पीछे जी जान से पड़ जाता हूँ।” धीरे-धीरे चलने वाला घोड़ा, घुड़दौड़ की कोतल से ज्यादा लम्बा सफ़र कर लेता है।

बाइबल का एक मंत्र है-”जो आपत्तियों का मुकाबला करता है उसके लिये मैं अपने तख्त पर जगह देता हूँ। जीवन संग्राम की सफलता, मित्रों की सहायता अथवा सुनहले अवसर की अपेक्षा निरन्तर प्रयत्न करने पर अधिक निर्भर रहती है। सडनी स्मिथ कहता है-”महापुरुषों का जीवन अत्यंत अविरल परिश्रम वाला होता है, उनकी जिन्दगी का पहला आधा भाग बड़े परिश्रम और कष्टों के बीच होकर गुजरता है।” जिस समय संसार ऐश आराम में मस्त होता है तब वे कठोर परिश्रम में जुटे होते हैं।

एक चीनी विद्यार्थी जब बराबर फेल होता रहा तो उसे बड़ी निराशा हुई और उसने पुस्तकों का बस्ता उठा कर एक कोने में पटक दिया। एक दिन उसने देखा कि एक वृद्धा स्त्री सुई बनाने के लिये एक लोहे के टुकड़े को पत्थर पर घिस रही थी, उसका धैर्य देख कर विद्यार्थी ने अपना नवीन निश्चय किया और चीन के तीन प्रसिद्ध विद्वानों में उसकी गिनती हुई। कालिदास की कथा सब जानते हैं। विवाह होने के बाद जवानी में उन्होंने पढ़ना आरम्भ किया और संस्कृत के प्रतिभाशाली विद्वान हो गये। एक मंद बुद्धि विद्यार्थी अपनी असफलताओं पर ऊब कर कहीं चले जाने की सोचने लगा। वह एक कुँए के पास जा निकला और देखा कि रस्सी की रगड़ से पत्थर घिस गया है। उसने सोचा कि जब रस्सी से पत्थर घिस सकता है तो क्या उद्योग से मेरी मंद बुद्धि नहीं घिस सकती। उसने उत्साहपूर्वक अध्ययन आरम्भ किया और अंततः एक बड़ा विद्वान कहलाया।

शेरीडन ने जब पार्लिआमेंट में पहला भाषण दिया तो लोगों ने उसका मजाक उड़ाया। एक सज्जन ने तो यहाँ तक कह दिया कि महोदय! यह कार्य आपकी सामर्थ्य से बाहर है। शेरीडन कुछ देर चुप रहे फिर उन्होंने कटाक्ष करने वाले से कहा-आप शीघ्र देखेंगे कि यह कार्य मेरी सामर्थ्य के भीतर है। कुछ दिनों में ही उन्होंने भाषण देने की अद्भुत योग्यता प्राप्त कर ली। उनकी एक वक्तृता को सुन कर विद्वान फाक्स ने कहा-ऐसा भाषण आज तक इस हाउस आफ कामन्स में नहीं हुआ। कारलाईन कहता है- ‘हर एक अच्छा काम पहले असम्भव प्रतीत होता है।’ जैरमी कोलयर का कहना है कि-’विश्वास के साथ आगे बढ़ते रहने से कठिनाइयाँ दूर हो जाती हैं।’ महाशय टरनर ने अपनी सफलताओं का रहस्य बताते हुए कहा था-सफलता की कुँजी निरंतर कठिन परिश्रम करने की आदत डाल लेना है। केनाल्ड कहते हैं-’यदि तुम सफल बनना चाहते हो तो आवश्यक है कि अपने ध्येय में तन्मय हो जाओ, सारी शक्तियाँ उसमें लगा दो और सोते समय तक में उसी का विचार करो।’

उचित धैर्य और निरंतर अध्यवसाय से बड़े-बड़े कठिन काम पूरे होते हैं। विपरीत परिस्थितियों का विरोध करने से नवीन शक्ति उत्पन्न होती है। एक बाधा को दूर करने पर उससे बड़ी दूसरी बाधाओं को हटा देने की योग्यता प्राप्त हो जाती है। इतिहासकार गिविन बीस वर्ष तक एक पुस्तक को लिखने में लगा रहा तब कहीं उसे पूरी कर सका। अंग्रेजी का एक बड़ा कोष तैयार करने में वेब्स्टर 26 वर्ष तक जुटा रहा। जार्जबेंक्राफ्ट ने प्राचीन राष्ट्रों के वंश परम्परा पर एक ग्रन्थ लिखा था। वह लिखता, परंतु लिखने के बाद वह अधूरा मालूम पड़ता। इस प्रकार उसने पन्द्रह बार उस पुस्तक को लिखा तब कहीं वह पूरी हुई। इस कार्य में उसे 26 वर्ष लगाने पड़े। टिटन ने अपनी एक पुस्तक सात वर्ष में तैयार की। रेलगाड़ी बनाने वाला स्टीफनसन ने रेलगाड़ी की अपूर्णताओं को दूर करने में पन्द्रह साल लगाये तब कहीं वह कुछ काम लायक हुई। भाप से चलने वाले इंजन को रोज बनाने-बिगाड़ने में वाट ने अपने वर्ष लगा कर थोड़ी सी सफलता पाई थी। कोलम्बस ने अमेरिका को तलाश करने में अपने को मृत्यु के मुख में ही डाल दिया था।

एक विद्वान कहता है-असफलता का कारण यह है कि लोग बार-बार अपने इरादों को बदलते हैं अपने निर्धारित लक्ष में दिलचस्पी कम कर देते हैं। वुलकर का मत है-विजेता का साहस धैर्य है। इस गुण में ऐसी दैवी शक्ति है कि दुर्भाग्य को सौभाग्य में पलट सकता है। वर्क ने कहा है-कभी निराश मत होओ, यदि कभी निराशा का सामना करना पड़े तो भी अपना काम बंद मत करो।

कथा-


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