शाश्वत सुख की खोज

August 1941

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(महात्मा जेम्स ऐलन)

क्या आप उस नित्य सुख की तलाश में हैं, जिसका कभी नाश नहीं होता? क्या आप उस प्रसन्नता को ढूँढ़ रहे हैं जो स्थायी है और जिसके बाद दुख के दिन शेष नहीं रह जाते? क्या आप प्रेम, जीवन और शान्ति के स्रोतों के लिये लालायित हैं? अगर ऐसा है, तो आप तमाम बुरी तृष्णाओं और स्वार्थपूर्ण भावनाओं का परित्याग कर दीजिए क्या आप दुख के रास्तों में ठोकर खा रहे हैं? क्या आपका मार्ग कंटकाकीर्ण है? क्या आप उस विश्राम के स्थान की तलाश में हैं जहाँ क्रन्दन और रोदन बन्द हो जाता है? अगर ऐसा है, तो आपको अपने स्वार्थ का दमन करके हृदय को शीतलता देनी चाहिये।

ऐ श्रम से चूर हुए भाई ! आओ अपने समस्त संयंत्रों को छोड़ कर अनन्त अनुकम्पा के स्थायी केन्द्र परमात्मा की तलाश करो। सत्य के सरोवर को ढूंढ़ रहे हो, तो स्वार्थ की निर्जन मरु भूमि में भटकने से क्या लाभ? इस पापमय जीवन की गठरी को पीठ पर लाद कर सत्य की शोध के पथ पर भला कैसे चल सकोगे? इसलिये आओ ! वापस आओ। विश्राम करो और अपने पथ का आदि अन्त जान लो। अपना और अपनी प्रिय वस्तु का स्वरूप जान लो तब आगे बढ़ना।

तुम्हारा प्रभु न तो पर्वतों की कन्दराओं में कैद है ओर न किन्हीं नदी नालों में घुला हुआ है। जरा आँख खोल कर देखो, तुम्हारे आस-पास फैली हुई धूलि के कणों में भी मौजूद हैं। वायु के साथ मिल कर वह हर घड़ी तुम्हारे मस्तक पर हाथ फेरता रहता है।

ऐ थके हुए बन्धु! दर-दर भटकने की अपेक्षा उसकी दया को प्राप्त करो। स्वार्थ की मृग तृष्णा में भटकना छोड़ो, आओ! सत्य की शीतल सरिता में ध्यान करो और प्यास बुझाओ।


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