कलियुग या सतयुग

August 1941

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(ले. श्री सत्य भक्त सम्पादक ‘सतयुग‘)

कुछ समय से हमारे देश में एक नया आन्दोलन सतयुग आगमन का आरम्भ हुआ है। विभिन्न स्थानों में ऐसे दल या व्यक्ति उत्पन्न हो रहे हैं, जो कहते हैं कि अब कलियुग का अन्त बिल्कुल पास आ गया है और थोड़े ही समय में सतयुग का आविर्भाव होगा। इनमें से कितने ही लोग यह भी मानते हैं कि यह सतयुग ता. 1 अगस्त 1983 को आरम्भ होगा।

कुछ लोगों का यह ख्याल है कि यह सतयुग आन्दोलन फ़जालिका के स्वामी राज नारायण जी ने शुरू किया है, पर यह ठीक नहीं। खोज करने पर पता लगा है, कि यह कम से कम साठ सत्तर वर्ष पुराना अवश्य है। उस समय श्री बाल मुकुन्दजी नाम के भक्त ने इसका दिल्ली में प्रचार किया था। बाल मुकुन्द जी की जीवनी हाल ही में खोज कर ‘सतयुग‘ (मासिक पत्र) में प्रकाशित की गई थी। उसमें मालूम होता है कि सन् 1880 के लगभग बालमुकुन्द जी प्रेमोन्मत्त होकर बन और जंगलों में कल्कि भगवान को ढूँढ़ते फिरते थे। उन्होंने कुछ साथियों को लेकर कल्कि मंडल की स्थापना की थी जो आज तक कल्कि अवतार और सतयुग आगमन का प्रचार कर रहा है। सन् 1910 के लगभग बंगाल में स्वामी दयानन्द नामक महापुरुष ने सतयुग आगमन का संदेश सुना था। आज भी बंगाल में उनके हजारों अनुयायी मौजूद हैं, जो कीर्तन द्वारा युग-परिवर्तन की चेष्टा कर रहे हैं। इसी समय के आस-पास हरिपुर योगाश्रम के योगिराज स्वामी दयानन्द जी ने अवतार और ‘सतयुग‘ का झंडा उठाया था और ‘कल्कि पत्रिका’ नाम की एक मासिक पत्रिका भी प्रकाशित की थी। इस समय तो संसार के सैकड़ों प्रसिद्ध व्यक्ति जिनमें हमारे देश के आध्यात्म ज्ञान के विख्यात ज्ञाता श्री अरविन्द घोष तक सम्मिलित हैं, शीघ्र ही युग परिवर्तन होने का समर्थन कर रहे हैं। उनके विचार जुलाई की ‘अखण्ड ज्योति’ में ही मौजूद हैं।

इन सब बातों को लिखने से मेरा तात्पर्य यही है कि आन्दोलन केवल बालकों का खिलवाड़ नहीं है, अच्छे-अच्छे विचारशील व्यक्ति इसके समर्थक और प्रचारक हैं। खेद है कि ‘सतयुग आगमन’ के खण्डन या मण्डन करने वाले लोग इन आत्मदर्शी विद्वानों की बातों पर गौर नहीं करते और मनुस्मृति अथवा भागवत के एकाध श्लोक के अर्थ को लेकर बेकार की खींचा तानी कर रहे हैं। मैं ‘सतयुग-आगमन’ के विषय में विचार करते समय कभी कुल्लूक भट्ट या मेघातिथि के फेर में नहीं पड़ा। मुझे तो समय के प्रत्यक्ष चिन्हों और साथ ही अनेक ज्ञानी पुरुषों के कथनों से यह विश्वास होता है कि अब मौजूदा जमाना बहुत जल्द बदलेगा जो नया जमाना आयेगा वह मौजूदा जमाने से श्रेष्ठ और जन साधारण के लिये कल्याणकारी होगा।

इसीलिये हम उसे ‘सतयुग के नाम से पुकारते हैं क्योंकि शास्त्रों में सतयुग का यही प्रधान लक्षण बतलाया है कि उसमें सत्य और न्याय की अधिकता होती है और लोग धर्माचरण करते हैं, जिसका फल कल्याणजनक होता है।

यही मेरी समझ के अनुसार सतयुग की व्याख्या है। आशा है पाठकों को इसमें कोई अस्वाभाविक या रहस्यपूर्ण बात न जान पड़ेगी। कलियुग की भावना ने हिन्दू जाति का बड़ा अहित किया है इसके कारण उनमें सैकड़ों दोष पैदा हो गये हैं और सब के लिये एक बहाना पैदा कर दिया गया है कि आज कल तो कलियुग है, अगर लोग पाप करते हैं तो इसमें आश्चर्य ही क्या? इस दृष्टि से यह अधोगति का एक बहुत बड़ा कारण है। इस भावना को दूर करके सतयुग की भावना पैदा करना कौन सत्पुरुष न चाहेगा? रह गया कलियुग के समाप्त और सतयुग के आरम्भ होने का ठीक समय, वह कोई बड़े महत्व की बात नहीं है। कोई आश्चर्य नहीं जो सन् 1943 में वर्तमान समाज खण्ड-खण्ड होने लगे और नये युग की नींव पड़ जाय। उसकी वृद्धि और विकास धीरे-धीरे सौ पचास साल में होगी। यह भी सम्भव है कि अच्छा जमाना या सतयुग कुछ सौ या कुछ हजार वर्ष तक ही ठहरे और फिर समाज में दोष उत्पन्न होकर हालत बिगड़ने लगे। पर यह लम्बा किस्सा है, और आज यहीं तक लिखना काफी है।


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