तप की महिमा अपार है।

August 1941

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(ऋषि तिरुवल्लुवर)

तप की महिमा अपार है। तपस्या से मनुष्य तेजस्वी होता है, बलवान् होता है, शत्रुओं को जीत सकने में समर्थ होता है, मनचाही इच्छाओं को पूर्ण कर सकता है, स्वस्थ रहता है, ऐश्वर्य प्राप्त करता है, सोने की तरह चमकता है, स्वर्ग प्राप्त करता है और अमर तक बन जाता है।

पर यह तप है क्या-सुनो! दूसरों की भलाई के लिये अपने सूखों की परवाह न करना यही तप है। तुम्हारे उपकारों के बदले में यदि कोई प्रशंसा न करे, कृतज्ञता प्रगट न करे तो भी कुछ परवाह मत करो, यहाँ तक कि भोजन वस्त्र में भी न्यूवता आवे और सर्दी-गर्मी से बचने का भी प्रबन्ध न हो तो इन सब कष्टों को खुशी-खुशी से सहन कर लो, यह मत सोचो कि दूसरे लोग थोड़े परिश्रम से बहुत सुख पाते हैं और तुम्हें बहुत करने पर भी कुछ सुख नहीं मिलता। सच समझो उन्हें कुछ नहीं मिलता है और तुम्हें बहुत मिलने वाला है। तप परीक्षा है, यदि तुम इसमें उत्तीर्ण हो, खरे तपस्वी सिद्ध होते हो, तो वह सब विभूतियाँ तुम्हें प्राप्त होंगी जो कि तपस्वियों को प्राप्त होती रहती हैं।

हमें दुनिया में भुखमरों की पलटनें दौड़ती दिखाई पड़ती हैं, यह लोग तप का महत्व भूल गये हैं और बीज बो कर फसल तक ठहरने पर विश्वास नहीं करते। प्रभु, इन्हें बीज देता है कि इसे बोओ और सींचो ताकि हजार गुना अन्न उपजे और तुम्हारे भंडार भर जावें, किन्तु इन्हें इतना धैर्य कहाँ? आज के बीज को यह आज ही कुटक लेते हैं और खाली हाथ हिलाते फिरते हैं। तपस्या से किस प्रकार इनका पूरा पड़ेगा? तपस्वी-बुद्धिमान् किसान है, वह कष्ट सह कर खेती करता है और फसल तक के लिये विश्वासपूर्वक ठहरता है। जब पौधे पकते हैं तो वह देखता है कि उसकी मेहनत अकारथ नहीं गई। जो बीज रेत में बखेर दिया गया था वह हजार गुना होकर लौट आया है।


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