त्राटक की रीति और लाभ

August 1941

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(लेखक-योगीराज श्री उमेशवंद्र जी, संचालक श्री रामतीर्थ योगाश्रम, बम्बई-4)

विशाल विश्व की विलक्षण वाटिका में बढ़िया फूल भी हैं और नुकीले काँटे भी। मनुष्य को कर्म की पूरी स्वतंत्रता है, वह सुमनों का हार गूँथे या काँटों से शरीर बिंधवाये। सुमन की शौकीनी में काँटों का चुभ जाना स्वाभाविक है। इससे यदि डरकर, चीख कर भाग निकला तो उसके भाग्य में सुगंधित का रसास्वादन है ही नहीं। संसार में करने, बढ़ने और डटने वालों को ही कुछ मिलता है। आप में परमात्मा का अंश, आत्मा मौजूद है। चाहे आप उसे प्रभाकर की तरह प्रकाशित करें या मृत्तिका पिंड की भाँति निस्तेज !

योग विधान आपके सामने है। आप प्राचीन ऋषियों की इस पूँजी से लाभ उठावें, जिसे जीवन में उतार कर आज पश्चिम सम्पन्न बन रहा है।

योग शास्त्राँतर्गत छै (6) प्रकार के कर्म हैं। जिसका नाम नेति, धोति, नौलि, बस्ति, त्राटक और कपालभाति है। ब्रह्मदातण, कुँजल क्रिया आदि कर्म हैं। वह षट्कर्म के अर्न्तगत है। स्थूल शरीर में रोगोत्पादन करने वाला मल है। बात, पित्त और कफ की अधिकता और विकार ही रोगों का कारण है और उसके साथ सप्त धातुओं का विकार भी। स्थूल और सूक्ष्म ऐसे दो प्रकार के मल हैं। छोटी आँत, बड़ी आँत, अमाशय कोष, किडनी आदि अवयवों में स्थूल मल उत्पन्न होता है और ज्ञानेन्द्रियों के साथ संपर्क रखने वाली रक्त वाहिनी नाड़ियाँ तथा सारे शरीर में रहने वाली वायु वाहिनी नाड़ियों, स्वादुग्रन्थियों, रस ग्रन्थियों में सूक्ष्म मल उत्पन्न होता है। त्राटक कर्म और कपाल भांति कर्म, वे सूक्ष्म मल का नाश करते हैं।

त्राटक की बनावट।

एक फुट चौरस कागज का गत्ता (Card Board) लीजिये और उस पर सफेद कागज चिपका दीजिये। उसके बीच में आधा इंच गोल काला निशान कर दीजिये और उसके इर्द-गिर्द चारों ओर किरणों के समान रेखायें खींच लो। बनाने में नहीं समझो तो किसी योगाश्रम से त्राटक चार्ट खरीद लो। उसकी कीमत चार आना है। कम से कम 5 वर्ष तक चार्ट को उपयोग में ला सकते हैं।

त्राटक चार्ट ठीक आँख के सामने (अधिक ऊंचा व नीचा न हो) दीवाल पर टाँग दो और उससे तीन फीट दूर पद्यासन व स्वस्तिकासन लगाकर बैठ जाइये। उस काले निशान की तरफ देखना आरम्भ (शुरू) करो। प्रथम दिन एक मिनट तक बिना आँख बन्द किये एकटक देखते रहो। दूसरे दिन डेढ़ मिनट, तीसरे दिन दो मिनट तक। इस क्रम से आधा मिनट का अभ्यास नित्य बढ़ाते जाइये। जब चार मिनट तक बैठने लगो तब चार मिनट आँखें बन्द कर बैठ जाइये। जो कि कदावत् तीन मिनट के ही अभ्यास से त्राटक चार्ट के मध्य काले निशान और किरणें प्रकाशित हो जायगी यानी काली नहीं दीखेगी। बाद में आँख बन्द कर लेने पर दोनों भौओं (Eye-Brow) के बीच में दृष्टि स्थिर करो। जो प्रकाश त्राटक चार्ट में दीखता, वही अन्दर भी दीखेगा (दिव्य चक्षु में)।

अब यह प्रकाश त्राटक चार्ट का नहीं है, यह तो तुम्हारा है। कारण त्राटक चार्ट जड़ है इस में त्राटक कहाँ से आ सकता है। अब इसी प्रकार अभ्यास आगे बढ़ाते जाइये और तेरह दिन तक बिना नागा लगातार करने रहते के पश्चात् दूसरा कोर्स आरम्भ (शुरू) होगा।

बैठते समय सिर तक सारा शरीर दीख पड़े, ऐसा शीशा चाहिये। उसे अपने सामने रखकर बैठ जाओ और अपनी दोनों भौओं के मध्य (आज्ञा चक्र में आधा इंच का गोल काला निशान करो और काँच के प्रतिबिम्ब में देखना शुरू करो। पहिले दिन दो मिनट देखो और इसी तरह प्रति दिन एक मिनट बढ़ाते जाओ। आधे घण्टे तक बराबर बढ़ाते रहो।

जब तक कर्म चालू हो भारी भोजन मत खाओ। त्राटक करते समय आँखों को तानों या अधिक फाड़ो नहीं, मध्य स्थिति में रखो। जैसे किसी मनुष्य की तरफ देखते हो। हमेशा एक ही आसन से बैठो। कर्म करते समय आसन बदला-बदली नहीं करना चाहिये और विचार पवित्र रहना चाहिये। एक चित्त से अपने उपासना देव या ॐ का मन में उच्चारण करते रहना चाहिये।

यदि तन्दुरुस्ती चाहते हो तो वही इच्छा करनी चाहिये। इसके सिवाय दूसरे विचार नहीं आने पावे। उसका ध्यान रखना चाहिये। त्राटक कर्म के पश्चात् ठण्डे जल से आँखें धो डालिये।

लाभ

आधा घण्टा अभ्यास हो जाने पर त्राटक सिद्ध होता है। इससे चित्त प्रसन्न रहता है। अन्तर आलोकित होता है। मन स्थिर रहता है। मस्तिष्क शाँत रहता है। स्वास्थ्य और सौंदर्य में वृद्धि होती है। निद्रा अच्छी आती है। आँखों की ज्योति बढ़ती है। कमजोर निगाह वालों को त्राटक हरे पानादि के पत्ते पर करना अधिक लाभप्रद है। शरीर में सात्विक गुण बढ़ता है। रजो गुण और तमो गुण सामान्य रूप से रहता है। चश्मा का उपयोग करने वाले अवश्यमेव त्राटक कर्म करें। हिप्नोटिज्म, मेस्मेरिज्म आदि विद्या सीखने वाले को प्रथम त्राटक कर्म में पारंगत होना पड़ता है। स्मरण शक्ति बहुत बढ़ती है। अर्थात् हाई स्कूल, कालेज में पढ़ने वाले विद्यार्थी एवं विद्यार्थिनियों को त्राटक कर्म सीखना अत्यंत लाभप्रद है। त्राटक कर्म के लाभ से परीक्षा में अवश्यमेव उत्तीर्ण होवेंगे। 10 वर्ष उम्र से 200 वर्ष उम्र तक के स्त्री, पुरुष, रोगी, निरोगी एवं सर्व स्त्री पुरुष त्राटक कर्म को कर सकते हैं। त्राटक करने का उत्तम समय प्रातः काल सूर्य उदय होने के पश्चात् 9 बजे तक।


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