सत्संग

August 1941

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(श्री आनन्दकुार चतुर्वेदी ‘कुमार’ छिवरामऊ)

किसी जंगल में एक साधु ने दो तोते पाल रक्खे थे, जिन को नित्य वेद मंत्रों का उच्चारण करना सिखाते थे। थोड़े ही समय में दोनों तोते भली-भाँति उन मंत्रों को पढ़ने लगे और नित्य प्रातः काल साधु जी की भाँति उठ कर भजन इत्यादि करते थे।

एक दिन उस मार्ग से एक कसाई निकला इन तोतों के विषय में पहले से ही वह सब बातें सुन चुका था, चाहा कि इन तोतों में से एक भी उसे मिल जाय तो क्या ही अच्छा हो। निदान इसी हेतु वह साधु जी की कुटी पर गया और हाथ जोड़ कर विनती की कि महाराज, एक बात कहना चाहता हूँ, यदि आज्ञा हो तो निवेदन करूं, साधु जी ने कहा कि कहो क्या कहना है?

कसाई ने तब कहा कि महाराज ये तोते हमको बहुत प्रिय मालूम होते हैं, इसलिये इन में से कृपा करके एक मुझको दे दीजिये। साधु जी ने उत्तर दिया कि मैंने इनको बड़े लाड़ से पाला था, परन्तु तेरी इच्छा अधिक देख कर मैं तुझको एक दे रहा हूँ। एक बात का ध्यान रखना कि इसको कोई कष्ट न हो।”

कुछ समय पश्चात उस देश के राजा ने सारे प्राँत में ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो साधु सत्संग का अर्थ बतलायेगा जेल जाना होगा, परन्तु उत्तर प्रत्येक साधु को देना जरूरी है। अब राजा प्रत्येक साधु की खोज कराता और अपना प्रश्न करता, परन्तु सभी असफल रहने के कारण कैद कर लिये जाते।

कुछ दिन पश्चात राजा के सिपाही दैवयोग उस साधु के आश्रम में पहुँचे और सत्संग के अर्थ पूछे साधु ने नम्रतापूर्वक कहा कि मैं इस प्रश्न का उत्तर कल दूँगा। परन्तु सिपाहियों ने आग्रह तथा विनती से उनको राज दरबार चलने को कहा, साधु ने तब अपना तोता उन सिपाहियों को दिया और बोले कि इस तोते को राजा साहब को देना और मेरा एक तोता जो इसका भाई है, अमुक कसाई के यहाँ से माँग लेना। राजा साहब इन दोनों को अपने ही पास रक्खें और रात में एकान्त में इनकी बातें सुनें मैं कल 10 बजे राज दरबार में पहुँचूँगा। निदान ऐसा ही किया गया।

राजा साहब ने अपने पास शयनागार में दोनों तोतों को टाँग लिया और उनकी बातों को सुनने की उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा करने लगा। रात भर कोई तोता नहीं बोला, परन्तु प्रातः 4 बजते ही साधु का तोता जागा और सदैव की भाँति यथाविधि मंत्रों का उच्चारण करने लगा। राजा जी यह देख कर अत्यन्त प्रसन्न हुए और मन ही मन उसकी प्रशंसा करने लगे। आठ बजे पर साधु वाला तोता मौन रहा, परन्तु कसाई वाले तोते ने बोलना शुरू किया कि नौकर जल्दी जाओ, स्टेशनों से खाल की पार्सल ले आओ, यह बकरा लाओ, उसे मारो, गोश्त इतने आना सेर इत्यादि। राजा इसके वाक्यों को सुन कर अत्यन्त क्रोधित हुये और नौकरों को आज्ञा दी इसको मार डाला जाय, परन्तु इतने में ही साधु वाला तोता बोला कि-हे राजन् इसमें इसका कोई दोष नहीं है, यह सारा परिणाम इसकी संगति का है।

पहले मैं और यह जब साथ-साथ रहते थे तो मेरे ही समान यह वेद मंत्रों का उच्चारण करता था, परन्तु जब से यह कसाई के यहाँ गया तभी से इस की यह आदत पड़ गई है, क्योंकि कसाई के यहाँ सिवाय मारो काटो के दूसरी बात नहीं, और साधु जी का सत्संग होने के कारण मुझमें उनकी बातों तथा आदतों का प्रभाव पड़ा है। मनुष्य जीवन का सत्संग से पर्याप्त सम्बन्ध है, जैसी मनुष्य की संगति होगी, वैसा ही उसका भविष्य भी बन जावेगा। सत्संग की महिमा तथा उदाहरण तो बहुत से हैं, परन्तु नीचे के दो उदाहरण पाठकों के लाभार्थ दिये जाते हैं, यदि एक मनुष्य कितने ही स्वच्छ वस्त्र क्यों न पहने यदि वह किसी लोहार की दुकान पर जायगा तो उसके वस्त्र कुछ न कुछ काले अवश्य पड़ जायेंगे इसी प्रकार गुलाब के वृक्ष के फूलों की सुगन्धि स्वतः आ ही जाती है। स्वामी एकारसानन्द जी ने सच कहा है कि पुस्तक अध्ययन करना वैसा ही है, जैसे पानी के ऊपर जमी हुई काई, परन्तु सत्संग का अध्ययन करना गंगा जी के निर्मल तथा पवित्र जल के समान है।


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