स्वप्नदोष का यौगिक उपचार

August 1941

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(पं शिवनारायण शर्मा एच.एम. पाठशाला, माईथान-आगरा)

अश्विनी मुद्रा और उसका फल

आकुश्चयेद् गुद्द्वारं प्रकाशयेत् पुनः पुनः।

सा भवेदश्विनी मुद्रा शक्ति प्रबोधकारिणी॥

(उप. 3 श्लोक 82 घे सं.)

अर्थ-बार-बार गुह्य द्वार का आकुँचल प्रसारण करने को अश्विनी मुद्रा कहते हैं। यह मुद्रा शक्ति प्रबोधकारिणी कही जाती है। अश्विनी परमा मुद्रा गुह्यरोग विनाशिनी।

बल पुष्टि करी चैव अकाल मरणं हरेत।

(घे सं 3/83)

अर्थ-इस सर्वोत्कृष्ट अश्विनी मुद्रा साधन के प्रभाव से गुह्यरोग नष्ट होते हैं। यह बल और पुष्टि साधन करने वाली है और इसके प्रसाद से अकाल मृत्यु नहीं होती।

मरणं विन्दुपातेन जीवनं विन्दुधारणात।

तस्मादति प्रयत्नेन कुरुते विन्दुधारणम॥

(शिव संहिता 488)

शक्तिचालन मुद्रा और उसका फ ल

मूलाधार पक्ष में कुण्डलिनी शक्ति दृढ़ रूप से स्वयम्भूलिंग से 3॥ लपेट लगाये सोती है, धीमान् योगी अपनी वायु के सहयोग से शक्तिपूर्वक इस कुण्डलिनी देवी को आकर्षण करके ऊपर को चलावें, इसको शक्ति चालन मुद्रा कहते हैं। इसके द्वारा शक्ति प्राप्त होती है। (शिव सं 3।105) जो योगी (साधक) प्रतिदिन इसका अभ्यास करेंगे, उनके शरीर में धातु सम्बन्धी रोग न होगा और परमायु बढ़ेगी। (3।106) सिंहासन पर बैठ कर दो घड़ी रोज अभ्यास करें। इस विषय में अधिक जानना हो तो घेरंड संहिता और शिव-संहिता देखिये।

पशुओं से शिक्षा

1. अश्विनी मुद्रा क्या? अश्विनी का अर्थ है घोड़ी। घोड़ी जब पेशाब कर चुकती है, तब अपनी योनि का आकुँचन प्रसारण करती है। उसी प्रकार साधक अपने गुह्यद्वार का आकुँचन प्रसारण साधन करे।

2. पेशाब करने का साधन-भैंसा जिस प्रकार रुक-रुक कर पेशाब करता है, उस तरह रुक-रुक कर पेशाब करे। दो सेकेंड पेशाब किया, एक सेकेंड रुक गये। फिर किया, फिर रोका इससे दुर्बल नसों में शक्ति आती है।

(विजयकृष्ण गोस्वामी)

3. आप ध्यान देकर विचार कीजिये कि कोई पशु दस्त और पेशाब साथ-साथ नहीं करता। यदि साथ-साथ करे तो वह रोगी समझा जाता है, परन्तु मनुष्य प्रायः ऐसा ही करते हैं। जो साधन मनुष्यों को सीखने से आते हैं, पशुओं में प्राकृतिक हैं। इसी प्रकार धातु दौर्बल्य वाला मनुष्य यदि शौच जाने से 4/6 मिनट पहले पेशाब करके पीछे शौच जाया करे तो उसका स्वप्नदोष, धातुदौर्बल्य दूर हो।

(एक रमते राम)

4. यदि किसी की समझ में यह बातें स्पष्ट न आवें तो वह अपने धातु-रोग की उत्पत्ति का कारण, कितने दिन से है, क्या-क्या उपचार कर चुके हैं, क्या दशा है इत्यादि पूर्ण विवरण और उत्तर के लिये टिकट भेज कर सम्मति ले सकते हैं। उनका पत्र गुप्त रक्खा जायगा संकोचवश ये बीमारियाँ जड़ पकड़ जाती हैं।

5. श्री मद्भगवद्गीता या देवी माहात्म्य के किसी श्लोक की यौगिक आध्यात्मिक व्याख्या जाननी हो तो पत्र-व्यवहार कीजिये। उत्तर के लिये टिकट न आने से क्षमा प्रार्थी हूँ।

पाठकों का पृष्ठ

गत मास ऐसी विज्ञप्ति प्रकाशित की गई थी कि “अखण्ड ज्योति” में शिक्षाप्रद कथाएं और महापुरुषों के दिव्य वचन विशेष रूप से रहा करेंगे और आध्यात्मिक साधनाओं की शिक्षा पुस्तकों द्वारा दी जाया करेगी।” इस परिवर्तन का कारण यह था कि सर्व साधारण की रुचि के साथ आध्यात्मिक तत्वों को मिला देने से हमारा उद्देश्य भी पूरा होता रहेगा और पत्रिका का प्रचार भी पर्याप्त होगा। देखा जाता है कि जिस अंक में कथाएं अधिक रहती हैं, उसकी माँग बहुत बढ़ जाती है। गम्भीर आध्यात्मिक लेखों के प्रेमी कम हैं। जो हैं वे अपने प्रिय विषय की उन्नति के सम्बन्ध में बड़े उदासीन रहते हैं। ऐसी दशा में पत्रिका उन्नति नहीं कर पाती और महंगाई से युग का घाटा उसे सताता रहता है।

इस मास पाठकों के 387 पत्र ऐसे आये हैं, जिनमें गम्भीर आध्यात्मिक लेखों का समावेश रखने पर बहुत जोर दिया गया है। यह संख्या यद्यपि हमारे कथा प्रेमियों के दसवें भाग से भी कम है, तो भी उनकी भावनाओं का आदर किया जायगा। घाटे का भार ईश्वर पर छोड़ते हुए आध्यात्मिक विषय के उत्तमोत्तम लेख जुटाने का पूरा-पूरा प्रयत्न करेंगे। साथ ही थोड़ी बहुत कथाएं भी देते रहेंगे।

आशा है कि इससे प्रेमी पाठकों को संतोष होगा।

-सम्पादक।


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