सत्य की ओर (कविता)

November 1940

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(श्री. जिज्ञासु)

अब तक भूले, अब क्यों भूले, गलती क्यों दुहरावें।
जिसमें धोखा जाब रहे हैं, उसमें क्यों फंस जावें॥

क्यों प्रसाद में भटकें, क्यों आलस में समय बितावें।
चलो चलें अब बन्धन काटें आगे पैर बढ़ावें॥

पछतावें न डरें घबरावें, भ्रम न करें ललचावें।
चलें सत्य की ओर और उन को सत्-मार्ग दिखावें॥

गिरी पर चढ़ कर शंख बजावें, निद्रित विश्व जगावें।
जीवन ज्योति जगावें जग में दिव्य प्रभा फैलावें॥

***

घृणित दासता की कड़ियों को तोड़ मरोड़ धरेंगे।
सत्य; सत्य के लिये जिएंगे, उसके लिए मरेंगे॥


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