साधकों का पृष्ठ

November 1940

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(हमारी बताई हुई विधियों से अभ्यास करने वाले साधकों के अनुभव इस पृष्ठ में छापे जाते हैं।)

-सम्पादक

(1)

“मैं क्या हूँ” पुस्तक मिली। खराब छपाई और सुन्दर सामग्री को देखकर उस नारियल का ध्यान हो आया जो बाहर से अप्रिय किन्तु भीतर से अत्यन्त मधुर होता है। विधिपूर्वक साधना नहीं कर रहा हूँ परन्तु पढ़ते-पढ़ते मुझे ऐसा अनुभव होने लगता है मानो मैं आत्म स्वरूप का दर्शन कर रहा हूँ और जीवन मुक्त हो गया है। ऐसा अनुपम ज्ञान सर्वसुलभ करने के लिए निश्चय ही जिज्ञासु जन आपके चिर कृतस रहेंगे।

-बेचेलाल पुरोहित नासिक।

(2)

आपने सूर्य चिकित्सा पद्धति से इलाज करने की शिक्षा दी थी उसके अनुसार मैंने यहाँ चिकित्सालय खोल दिया है। रोगियों को आशातीत लाभ हो रहा है। इस कस्बे में कोई ग्यारह बारह डॉक्टर हैं उन सब से अधिक रोगी हमारे यहाँ आते हैं पं0 नित्यानन्द जी का सहयोग भी हमें प्राप्त है। औषधालय का नियम आपकी आज्ञानुसार ही रखा गया है। आरम्भ में कुछ नहीं लेते। अच्छा हो जाने पर जो कुछ कोई दे देता है उसे ही स्वीकार करते हैं। इस महीने में सत्ताईस रुपया मिले हैं। नये औषधालयों को देखते हुए इतना भी कम नहीं है बीमारों को बहुत फायदा हो रहा है।

-जीवन दत्त कुशवाल, करनाल।

(3)

‘प्राण चिकित्सा’ विधि से इलाज करने पर अद्भुत फल दिखाई दे रहे हैं। एक लड़का जिसके पैर बहुत ही कमजोर थे दो सप्ताह के प्रयोग के बाद खड़ा होने लगा है और दस पाँच कदम चलता भी है, एक स्त्री जिसे रोज मिरगी का दौरा होता था। तीन सप्ताह से मेरे इलाज में है इतने दिनों में सिर्फ दो दौरे उसे हुए हैं। एक गठिया का बीमार जिसे दर्द के मारे चैन नहीं पड़ता था अब पूरी नींद सोता है। गाँठों की सूजन कम हो रही है। अब हम कई साधक मिलकर एक ‘पीड़ित सेवा केन्द्र’ खोलने की तैयारी कर रहे हैं।

-श्रीराममूर्ति, त्रिचनापल्ली।

(4)

‘प्राण चिकित्सा’ का पूरा विधान आपसे आगरे सीखकर आया था। इससे किसी की कुछ सेवा करूं, यह सोचकर घर से ही इलाज शुरू किया। मेरे भतीजे के गले के पास एक भयंकर फोड़ा उठा था। सारा घर चिन्तित था कि यह बढ़ा तो गले को रोककर प्राणघातक बन सकता है। घरवालों को सान्त्वना देते हुए मैंने उपचार आरम्भ किया । तीन दिन में वह फोड़ा बैठ गया। यहीं से मेरी ख्याति फैली। बाहर से मरीज रोगी आ जाते हैं। इन्हें जादू की तरह आराम होता है। आपकी इस कृपा ........।

-मणिशंकर, सहारवर।

(5)

आपने मुझे क्रियाएं बताई हैं उन्हें नियमित रूप से कर रहा हूँ बड़ा लाभ हुआ है। वजन पाँच पौंड बढ़ गया है शरीर में फुर्ती और चैतन्यता बढ़ रही है।

-वेदप्रकाश गुप्ता, चाँदपुर।

(1) मैं क्या हूँ? (2) सूर्य चिकित्सा विज्ञान (3) प्राण चिकित्सा विज्ञान। तीनों पुस्तकों का मूल्य छः छः आना है। तीनों एक साथ लेने पर डाकखर्च हम लगा देते हैं। 2 पैसे के कम टिकट लगाते हैं। जिससे एक आने की बैरंग होकर सुरक्षित पहुँच जाती हैं।

अखण्ड-ज्योति कार्यालय, फ्रीगंज, आगरा


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