(श्री शिवनारायण गौड, लश्कर)
चाहता क्या विश्व मुझसे, क्यों मुझे आदेश देता ?
जो अनिच्छित हो, उसे भी, मान क्यों कर्तव्य लेता॥
कार्य करता रात दिन मैं, कर्म-रत रहते सभी जन ।
हित अहित और लाभहानि, जानते हैं जब सभी मन॥
नियम-तन्तु विचित्र क्यों जग, आत्म-बंधन-हेतु ताने ।
क्यों भला यदि हो नियंत्रित, हो बुरा यदि वे न माने॥
नियम हैं सब विश्व के ये, देखता जग निज दृगों से।
चाल मेरी अटपटी को, मापता जग निज डगों से॥
चाहता जग पूर्णता है, पूर्णता जब नाम केवल।
नापता जग पूर्णता से, जब नियंत्रित व्यक्ति का बल॥
छेड़ता जब गान की इक, तान सुन्दर और मनोहर।
तर्क से क्यों नापता जग, भाव का जब भार मन पर॥
वृद्ध जग क्या भावनाएँ, युवक के उल्लास जाने।
नव्य यौवन की उमंगें, नित्य-नूतन हास, गाने॥
विश्व चलता लोक पर है, मैं स्वयं पथ को बनाता।
विश्व है अब भी पुरातन, मैं नयापन साथ लाता॥