शीर्षासन के अनुभव

November 1940

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(ले.-श्री सूर्यकान्तिसिंह भटिया, रावलपिंडी)

दिन प्रति दिन नये नये आसनों का प्रयोग बराबर होता जा रहा है परन्तु जब तक आसन का अध्ययन भली भाँति न किया जाय कदापि उसका प्रयोग मत करो। कारण, कभी-कभी लाभ के लोभ में प्रायः हानि और दुख ही देखा गया है। आपने नाना प्रकार की पुस्तकें जिनमें भिन्न-भिन्न प्रकार के आसनों का प्रयोग और वर्णन किया होता है पढ़ी होगी और उन पर विचार भी किया होगा। परन्तु यह निश्चय न कर सके होंगे कि कौस का आसन उपयोगी है। मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि शीर्षासन के व्यवहार से अद्भुत लाभ हो सकता है। इस आसन के सम्बन्ध में जिन बातों को जानना आवश्यक है वह नीचे दी जाती हैं-

यह आसन सर्वदा प्रातःकाल सूर्य उदय होने से पूर्व और सायंकाल अस्त होने के पश्चात् करना उचित है। इस आसन में सबसे पहले कम से कम तीन बातों का होना परम आवश्यक है जैसे- स्थान साफ सुथरा, हवादार और चौरस हो, दूसरे किसी वस्तु का सहारा जैसे दिवाल या मनुष्य की सहायता तीसरी के नीचे को गुदगुदी वस्तु अथवा तकिया या कोई मुलायम वस्तु, जिससे सिर में दर्द व कष्ट न हो।

प्रयोग-

आसन करते समय किसी वस्तु, जैसे गद्दी या कोई अन्य वस्तु सिर के तले रखें फिर आप पृथ्वी पर उल्टे लेट जायं और दोनों हाथों को तकिये से अलग जमीन पर सटा दें, या दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में बींध दें यानी (दोनों हाथों की अंगुलियाँ एक दूसरे को आपस में पकड़ लें) अगर आसन दूसरे प्रकार से करें तो फिर दोनों हाथों को सिर के नीचे रख दें, और धीरे-धीरे पिछले पैरों का भाग जमीन से ऊपर उठाते जायं, यहाँ तक कि पैर और टाँगें बिल्कुल सीधे हो जायं। जमीन पर केवल सिर ही रहे। आपको दो चार दिन आसन करने में सिर में चक्कर से आ जायेंगे, प्रयोग करते-करते सब ठीक हो जाते हैं। आप सीधे सिर के बल खड़े भी हो सकेंगे तरकीब यह है- पैर उठाते समय पैर दिवाल पर एक दम सदा दो और फिर उनको धीरे-धीरे दिवाल के सहारे सीधा करो, अभ्यास करने के पश्चात फिर कष्ट न होगा और किसी वस्तु का सहारा लिये बिना आप सिर के बल उल्टे खड़े हो जावेंगे।

आसन प्रति दिन केवल दो ही बार सुबह और शाम करना चाहिए। पहले पाँच दिन केवल दो मिनट तक आसन करें। फिर धीरे-धीरे समय इच्छानुसार बढ़ाते जायं, अधिक से अधिक 1 घण्टा अभ्यास करें लेकिन साधारणतः आधा घण्टा करना काफी है। आसन करते समय आपको श्वांस नाक के जरिये लेनी चाहिए। जब अधिक अनुभव और अभ्यास हो जाय, तब श्वांस को धीरे-धीरे निकालो, इसी प्रकार करना चाहिये।

लाभ-

गला, छाती, हाथ, पाँव मजबूत होते हैं फेफड़े मजबूत और उचित रूप से कार्य करने लगते हैं। कब्ज सर्वदा के लिए दूर हो जाता है। खूब खुल कर और बंधा हुआ पखाना आता है, सीना चौड़ा और कठोर बन जाता है। भूख लगातार बढ़ती जाती है खून का दौरा बराबर ठीक होता है। खून शुद्ध बनने लगता है। हृदय प्रसन्न रहता है। मानसिक शक्ति बढ़ जाती है। कठिन से कठिन कार्य करने में दिल नहीं घबड़ायेगा। नेत्रों की ज्योति बढ़ जाती है। चश्मा लगाने की आवश्यकता न पड़ेगी।

शीर्षासन से वीर्य सम्बन्धी लाभ होता है। स्वप्न दोष, धातु का पतलापन आदि विकार मिट जाते हैं। एवं शरीर और मन में उत्साह मालूम होने लगता है।


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