जिस प्रकार गंगा की धार हमेशा अविरल गति से चलती रहती है उसी प्रकार तुम भी जीवन भर कर्तव्य की धारा बहाते रहो। बराबर काम करते रहो। क्षण भर के लिये भी आलसी बन कर मत बैठो।
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इस बात की परवाह मत करो कि लोग तुम्हें क्या कहते हैं। लोग तो अपने अपने मन की कहेंगे। वे राग, द्वेष का जैसा चश्मा चढ़ाये होंगे वैसा ही कहेंगे। उनकी प्रशंसा में भूलो मत और उनकी निन्दा से घबरा कर लक्ष्य से मत हटो।
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सुख और शाँति का सबसे प्रथम साधन ईश्वर में विश्वास करना है। यह विश्वास मनुष्य के आत्मा की चिर सम्पत्ति है।