फरीशी और अध्यापक एक ओर बैठे-बैठे कुड़कुड़ा रहे थे। हम लोग धर्म कार्यों में अपना जीवन खपा रहे हैं, तप करते हैं, उपदेश देते हैं, भजन करते हैं, और आज्ञाओं का पालन करते हैं फिर भी हमारी उतनी परवाह नहीं की जाती जितनी कि पापियों और भटके हुओं की।
यीशु के हर एक शिष्य के मन में ऐसे संदेह शिकायत के विचार उठ रहे थे। अजनबी पापी और विरोधियों की इतनी चिन्ता क्यों की जाय जब कि वह उल्टे घृणा करते हैं और दूर भागते हैं।
यीशु ने उनके मन को पहचाना और संदेह निवारण का उपाय किया। ईसा अपने सब शिष्यों को लेकर आगे चल दिया। रास्ते में एक गड़रिये की झोंपड़ी पर उन्हें ठहरना पड़ा। थोड़ी देर ठहरने पर घर का मालिक गड़रिया आया उसके कंधों पर एक भेड़ बंधी हुई थी। उसने बड़े प्यार से उस भेड़ को कंधे पर से उतारा और खूब नहला धुला कर उसके बाल सुनहरी रंगे और हरी घास खिलाई। खुशी के मारे उसका चेहरा खिला जा रहा था। अंत में उसने अपने प्रिय जनों को बुलाया और खुशी में मुँह मीठा कराया।
यीशु ने उस गड़रिये से पूछा इस भेड़ के लिए इतनी खुशी तुम क्यों मना रहे हो।
गड़रिये ने कहा मेरे पास सौ भेड़ हैं उनमें से यह एक भटक गई थी। मुझे बड़ी चिन्ता हुई। अपनी निन्यानवे भेड़ों की रखवाली का भार किसी पर ज्यों का त्यों डालकर इस एक की तलाश में निकला और बड़ी कठिनाई से इसे दूर जंगल में पाया चूँकि इसका स्वभाव खराब हो चला था और उसे मैं सुधारना चाहता हूँ। इसलिए इसे कंधे पर धर कर लाया हूँ। हरी घास खिला रहा हूँ और प्यार कर रहा हूँ। भटके हुए को ठीक राह पर लाकर मुझे बड़ी खुशी हो रही है।
यीशु ने अपने शिष्यों से कहा क्यों न हम सब इस गड़रिये का अनुसरण करें? जो भूले भटके हैं, जो गुमराह हो रहे हैं, जिन्हें धर्म का मार्ग सूझ नहीं पड़ता, उन्हें सच्चे मार्ग पर लाकर हम सब स्वर्गीय आनन्द प्राप्त कर सकते हैं।