चिन्तन की दृष्टि से हम प्रौढ़ बनें!

September 1989

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

लोग आयु की दृष्टि से तो बड़े तो जाते हैं, पर चिन्तन की दृष्टि से बालक जैसे अविकसित ही बने रहते हैं। पड़ोसियों का ढर्रा अपनाकर गतिविधियाँ बनती हैं और यह यथार्थता, दूरदर्शिता तथा उपयोगिता की परख करना अनावश्यक मान लिया जाता है। यह अपरिपक्वता ही मानव जीवन की आन्तरिक प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है।

बुद्धिमत्ता का अर्थ है-सुलझे हुए विचार, स्पष्ट दृष्टिकोण और उत्तरदायित्व समझने एवं निबाहने है जिसे उपलब्ध करने पर व्यक्तित्व प्रतिभाशाली बनता है और बड़ी सफलताएँ प्राप्त कर सकने की सम्भावना सुनिश्चित होती है। ओछे मनुष्य वे नहीं जो वजन लम्बाई या आयु की दृष्टि से छोटे हैं। जिनकी विचारणा तथा आकाँक्षा उथली और बचकानी हैं, जो गये-गुजरे लोगों की तरह सोचते और घटिया आकाँक्षाएँ पूरी करने के लिए ओछे हथकंडे अपनाते हैं, उन्हें कोई चतुर भले ही कहले, पर वस्तुतः वे व्यक्तित्व की दृष्टि से बौने, अपंग, लोगों की श्रेणी में ही मान जा सकेंगे।


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118