प्रतिकूलताएँ निखारती हैं, व्यक्तित्व को

September 1989

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

महापुरुषों का जीवन चरित्र पढ़ने पर ऐसा लगता है, जैसे वह कठिनाइयों का जीता-जागता इतिहास हो। दूसरे शब्दों में किसी महान लक्ष्य के लिए इनसे जूझते रहना ही महापुरुष होना है। इन विषमताओं से लड़े बिना शायद ही कोई अपने लक्ष्य को पाता है। मनीषियों का कथन है कि जिस उद्देश्य का मार्ग संघर्षों के बीच से नहीं गुजरता, उसकी महानता संदिग्ध है।

यह तो नहीं है कि संसार के सभी महापुरुष असुविधाओं में पले हों। किन्तु यह अवश्य है कि उन्होंने स्वेच्छा से कठोर जीवन का वरण करके ही अपने उद्देश्य को प्राप्त किया। बुद्ध महावीर पैदा तो राजकुल में हुए थे पर उन्होंने स्वतः काँटों से भरी कठिन राह को स्वीकार कर मानवता की प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया।

आधुनिक काल में भी महापुरुषों का जीवन कष्टों से भरा पड़ा है। बैरिस्टर गाँधी जीवन भर कष्टकारक परिस्थितियों से जूझते रहने के कारण ही महात्मा गाँधी बन सके और जन-जन के हृदय में आसीन हो पाए।

भारत माता की बेड़ियों को काटने वाले वीरों में अग्रणी योगिराज श्री अरविन्द का जीवन भी विषमताओं और संघर्षों से भरा है। किंग्स कालेज, कैम्ब्रिज के विद्यार्थी अरविन्द को कभी कभी मात्र चाय पर गुजारा करके भूखे पेट रह जाना पड़ता था। इन कष्टों का अन्त अलीपुर जेल की यातनाओं से भी नहीं हुआ। पाण्डिचेरी के तपस्यामय जीवन में भी उन्होंने अपने शिष्यों के साथ दसियों दिन बिना खाए पिए काटे। उनके जीवन की कठोरताओं तथा संघर्षों का मर्मस्पर्शी चित्रण डा. के. आर. श्रीनिवास अंयगर, नीरोदवरन, ए. बी. पुराणी ने अपनी कृतियों में विशद रूप से किया है।

विश्ववन्द्य स्वामी विवेकानन्द के जीवन में भी मुसीबतें कम नहीं आई। बचपन में राजसी सुविधाओं में पले नरेन्द्र को पिता की मृत्यु के बाद एक-एक रोटी तक के लिए तरसना पड़ा। संन्यास लेने के बाद भी इन मुसीबतों का अन्त नहीं हुआ। प्रव्रज्या काल में उन्हें कई-कई दिन भूखे रहना पड़ा, साथ ही अनेक लोगों ने तरह-तरह के विघ्न उपस्थित किए। अमेरिका इंग्लैण्ड आदि देशों में धर्म प्रचार के लिए जाने पर इन कष्टों का सिलसिला सौगुना अधिक बढ़ गया। उनके जीवन की संघर्ष मय परिस्थितियों का हृदयस्पर्शी चित्रण संकरी प्रसाद बसु, प्रो. शैलेन्द्र नाथ धर, तथा मेरी लुईस बर्क ने अपनी शोधपूर्ण कृतियों में किया है।

वस्तुतः बात यह है कि मुसीबतों के बीच से गुजरे बिना मनुष्य के व्यक्तित्व में पूर्णतया निखार नहीं आता और न सुविधाओं के बीच पाए लक्ष्य में सन्तोष होता है। संघर्षमय परिस्थितियाँ एक ऐसी खराद की तरह हैं जो मनुष्य के व्यक्तित्व को तराश कर हीरे की तरह चमका देती हैं। कष्टकारक परिस्थितियों से संघर्ष करने पर एक बहुमूल्य सम्पत्ति विकसित होती है जिसका नाम है आत्मबल। इसे पाने पर ही सन्तोष का परम सुख मिलता है। इन संघर्षों से जीवन में एक ऐसी तेजी आती है, जिससे जिन्दगी की राह के काँटे, झाड़-झंखाड़ सहज ही दूर हो जाते हैं।

कष्ट कठिनाइयाँ अन्तःकरण के कषाय- कल्मषों को गलाने के लिए भट्ठी की तरह हैं। अपने व्यक्तित्व को इसमें झोंककर ही उसे अधिकाधिक निखारा जा सकता है। सोना तप कर ही निखरता है। तपने से उसकी कान्ति और शुद्धता सौगुनी बढ़ जाती है। अपने देश में प्राचीन काल से भी राजा-महाराजाओं से लेकर ऋषि-मुनि सभी अपने को पूर्णावस्था तक पहुँचाने के लिए जीवन का एक भाग कठोर साधना तपश्चर्या में लगाते थे। भारत के हर गृहस्थ का यह अनिवार्य कर्त्तव्य रहा है कि वह जीवन के अन्तिम चरण में सभी सुख सुविधाओं को त्याग कर, कठोर जीवन क्रम को अपनाकर लोक कल्याण और आत्मकल्याण में अपने को नियोजित करे। सुख-सुविधाओं के बीच रहते मनुष्य में जो ढीला-पोलापन आ जाता था उसमें निखार कठोर जीवनचर्या से पुनः आ जाता था।

जीवन को कर्मठ बनाने के लिए कठिनाइयाँ जिस तरह आवश्यक हैं, उसी तरह इनकी उपयोगिता-चरित्र निर्माण के लिए भी है। शराब और विलासिता में डूबे रहने वाले मुँशीराम ने जिस समय से कठोर जीवन व्यतीत करने का संकल्प लिया, उसी समय से वह स्वामी श्रद्धानन्द बन कर जन-जन के श्रद्धाभाजन बन गए। राष्ट्र के लिए उनका समर्पित जीवन सबके लिए चिरस्मरणीय रहेगा। सुविधाएँ मनुष्य को आलसी निकम्मा बनाती हैं। यही कारण है कि- उत्तराधिकार में सुख-सुविधाओं की बहुलता को पाने वाले प्रायः विलासी और निठल्ले ही निकलते हैं।

कष्टों से जूझने, परिस्थितियों से टकराने और असुविधाओं को चुनौती देने वाले फौलादी व्यक्ति को फिजूल चीजों के लिए अवकाश ही नहीं रहता। वह तो मोर्चे पर डटे रहने वाले सिपाही की तरह संघर्षशील रहकर जीवन के प्रगति पथ पर आगे बढ़ता रहता है।

जिस व्यक्ति ने जीवन में स्वयं कष्टों को अनुभव किया है, वही दूसरों के दुःख दर्द को भली प्रकार समझ सकता है। अन्यथा ऐसों को तो काशिराज की महारानी करुणावती की तरह दूसरों की झोंपड़ी जलाकर आनन्द ही मिलता है। मुसीबतों को अनुभव करने वालों में सौहार्द संवेदना, जैसे दैवी गुण आ जाते हैं। वह दूसरों को सताना दुख देना कभी नहीं पसन्द करता है। उसका अहंकार गल जाता है। इसकी जगह उसमें विनम्रता प्रेम, क्षमा के भाव भर जाते हैं। संघर्षमयी परिस्थितियों की कृपा से मनुष्य में इस प्रकार के दैवी गुण विकसित होते हैं और वह मनुष्य से देवत्व के प्रगति मार्ग पर तीव्रता से बढ़ने लगता है।

विषम परिस्थितियाँ मनुष्य के लिए वरदान रूप ही होती हैं। पर इन वरदानों का लाभ वही उठा सकता है जिसमें इनको सँभालने की शक्ति हो। पुरुषार्थी और साहसी व्यक्ति ही इनको फलीभूत करके अनेक विभूतियाँ पाता है। जबकि आलसी, कायर, अकर्मण्य इनकी चपेट में आकर जीवन के सुखों से हाथ धो बैठता है। विषमताओं का मूल्य गहरा है। इन पर विजय पाने वाला ही इनसे बहुत कुछ पाता है और हार बैठने वाले को हाथ का भी गँवाना पड़ता है।

कष्ट के समय को जो लोग विवेक, धैर्य, पुरुषार्थ की कसौटी समझ कर परीक्षा देते हैं, वे जीवन के वास्तविक सुख शान्ति से लाभान्वित होते हैं। सही माने में सुखों का सूर्य दुःखों के बादलों के पीछे छिपा रहता है। जो बादलों की गर्जन-तर्जन से भय किये बिना इन्हें पार करता है। उसी को इसकी प्राप्ति होती है।

इसके अलावा दुःख कष्ट का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इनके आने पर परमात्मा का सच्चे हृदय से स्मरण हो पाता है। इसी कारण पाण्डवों की माता कुन्ती ने भगवान श्रीकृष्ण से दुःखों का वरदान माँगा था। कष्टों की तीव्रता व्यक्ति में ईश्वर की अनुभूति पैदाकर उसके पास पहुँचा देती है।

कठिनाइयों को जो दुःख देने वाला मानकर पलायन करता है, उसे वे दुःख रूप में ही पीछे लग जाती है। जो साहसी बुद्धिमान इन्हें सुख मूलक मान इनका स्वागत करता है उसे देवदूतों की तरह वरदान देने वाली होती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118