इक्कीसवीं सदी की नारी जाग चुकी है!

September 1989

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पिछले दिनों जापान में भूचाल सा आया व देखते-देखते महिलाओं ने पुरुषों के हाथ से राजनीति की बागडोर छीनकर अपने हाथों में लेली। इक्कीसवीं सदी का शंखनाद हुए अभी छह मास से अधिक नहीं हुए हैं, लेकिन परिवर्तन की प्रक्रिया उस राष्ट्र से ही आरंभ हो गयी है जहाँ सूर्य देवता सबसे पहले अपनी हाजिरी देते हैं। पूर्व के जापान देश से आरंभ हुई नारी-जागृति की यह क्रान्ति क्रमशः पूरे विश्व को अपने चपेट में ले लेगी, इसमें किसी को सन्देह नहीं करना चाहिए।

आइए पूरे घटनाक्रम को विस्तार से देखें। जापान विश्व का वह अग्रणी राष्ट्र है, जिसने द्वितीय विश्व युद्ध में पूरी तरह ध्वस्त होने के बाद भी अपनी साँस्कृतिक विरासत, श्रमशीलता, कर्त्तव्यपरायणता तथा नैतिकता के उच्च आदर्शों के बलबूते प्रगति के उच्चतम शिखर को छू लिया। आज सारे विश्व की आर्थिक मण्डियों पर उसका वर्चस्व है। औद्योगीकृत विकसित राष्ट्रों के साथ सदैव एक त्रासदी जुड़ी रहती है-धन लोलुपता, भोगवादी लिप्सा तथा क्रमशः राजनीति में घुसती अनैतिकता। ये बुराइयाँ घुन की तरह पूंजीवादी राष्ट्रों को खा जाती हैं किन्तु जागृत नारी समुदाय ने जापान के साथ ऐसा नहीं होने दिया। जैसे ही उनने ऐसे अंकुर फूटते देखे, तुरन्त जनशक्ति का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया व 1945 के पुनर्जागरण के बाद अब पहली बार यह खतरा सामने आ गया है कि “डायट” (जापानीपार्लियामेन्ट) में संभवतः एक या दो ही पुरुष हों शेष सभी महिलाएँ।

इस वर्ष जो ज्वालामुखी फूटा है उसने नवनिर्वाचित श्री ऊनो की सरकार को हिलाकर रख दिया है। उनकी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को पिछले दिनों “टोक्यो मेट्रोपाँलीटन असेम्बली” के चुनाव में मुँह की खानी पड़ी है व 50 में से 49 महिलाओं ने चुनाव क्षेत्र में बाजी मारी है। हर तीन वर्ष में “अपर हाउस” के चुनाव होते हैं। वे होने ही वाले हैं व अब लगता है कि “डायट” की सारी सीटें महिलाएँ ही ले जायेंगी। यदि ऐसा हो जाय तो किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिए क्योंकि इसके पीछे सशक्त कारण है।

प्रथम तो स्वयं को भोग्या बना देने वाले पुरुष समाज से वहाँ की स्त्रियाँ बड़ी रुष्ट हैं। दूसरे वैधानिक दृष्टि से वोटर की संज्ञा की तुलना में 27 लाख ज्यादा है एवं यह संख्या एक भारी उलट फेर कर सकने में पूरी तरह सक्षम है। यही कारण है कि श्रीमती मेनी क्युबोटा एवं श्रीमती डोई के नेतृत्व में 23 जुलाई के राष्ट्रीय चुनावों में सभी सीटों पर महिलाएँ लड़ रही हैं व वैसी ही जीत की वे अपेक्षा रखती हैं जो उनने टोक्यों में हासिल की थी। अधिकाँश महिलाएँ नौकरी शुदा हैं, या उद्योग समूहों का नेतृत्व कर रही हैं।

एक और मजेदार बात यह है कि बहुसंख्य महिलाएँ शादी नहीं करना चाहती क्योंकि वे इसे एक प्रवंचना मात्र मानती हैं। जो शादी शुदा हैं, वे बच्चे पैदा करना नहीं चाहतीं। जापान में अब 65000 से भी अधिक महिला इंजीनियर हैं। पत्रकारिता, चिकित्सा व भौतिकी के क्षेत्र में वे अग्रणी हैं। तीन चौथाई महिलाएँ पार्टटाइम या पूरे समय की नौकरी या व्यापार में निमग्न हैं। कई अमेरिका से प्रशिक्षित हो कर आई हैं। साराँश यह कि जापान में महिला क्रान्ति आ चुकी है व उसने सारे विश्व को एक दिशा भी दिखा दी है।

मुर्गा बाँग देता है व सूरज के आगमन की सूचना देता है। घटनाक्रम भवितव्यता की पूर्व सूचना देता है। इक्कीसवीं सदी नारी प्रधान होगी, इसका उद्घोष जापान से हो चुका है, अब बारी विश्व की शेष नारियों के जागने की है

*समाप्त*


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