दैवी चेतना के बारे में कहा जाता है कि वह जब जिसमें उतरती है, उसके जीवन को बदल कर रख देती है, उसे प्रसन्नता प्रफुल्लता से भर कर प्रत्यक्ष स्वर्ग का आनन्द लाभ देती है। स्वभाव और आचरण में ऐसा परिवर्तन ला देती है, मानो मनुष्य शरीर में वह कोई देव पुरुष हो।
विश्व विख्यात कवि राबर्ट लुई स्टीवेंसन के बारे में मान्यता है कि जीवन के उत्तरार्ध में उनमें ऐसी ही चेतना का अवतरण हुआ था। इससे पूर्व वह एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिनके जीवन में ईर्ष्या, द्वेष, घृणा अविश्वास के अतिरिक्त और कुछ था ही नहीं। यही उनकी वैयक्तिक सम्पत्ति थी। जो कोई उनसे मिलने आता, उन्हें भी इसके अतिरिक्त और कुछ प्राप्त न होता। आत्मीयता दिखाना और मधुर बोलना तो जैसे उनने सीखा ही नहीं था। उनके इस व्यवहार से पड़ोसी, परिचित, मित्र ही नहीं सगे-संबंधी भी कन्नी काटने लगे थे, जिससे उनका जीवन एक तरह से नीरस, उबाऊ व एकाकी बन गया था। मन की स्थिति का शरीर पर भी प्रभाव पड़ा। शरीर-स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। इस क्रम में एक समय ऐसा आया, जब वे क्षय रोगी-से दिखाई पड़ने लगे, वजन भी कम हो गया व भूख भी गायब हो गई। पड़ोसी उनके विषय में अटकलें लगाते हुए कहते- स्टीवेंसन अब मुश्किल से कुछ महीनों का मेहमान है पता नहीं कब क्या हो जाय?
स्टीवेंसन अपनी इस स्थिति से भली−भांति परिचित थे। स्वयं को परिवर्तित करना चाहते थे, पर कर नहीं पा रहे थे और निराशा हताशा की स्थिति में जीवन गुजार रहे थे। जब उनकी यह दशा एक मनोवैज्ञानिक चिकित्सक मित्र ने देखी, तो सलाह दी कि आप कहीं अन्यत्र चले जायें और नये सिरे से नई जिन्दगी की शुरुआत करें। ईश्वर आप की सहायता अवश्य करेंगे, पर एक बात का स्मरण रखें “परम सत्ता केवल उन्हीं की सहायता करती है, जो अपनी सहायता आप करते हैं।” स्टीवेंसन को सुझाव जंच गया वह वहाँ से दूर और निताँत अपरिचित समोआ द्वीप में चले गये।
प्रथम दिन और प्रथम अभ्यास उनने वहाँ प्रेम का किया। जो कोई मिलता उसके लिए हाथ नमस्कार के लिए उठ जाता। कोई घर आ गया तो बिना चाय पिये जा नहीं सकता, भले ही वह मजदूर ही क्यों न हो। छोटे बच्चे रात बेचैनी में काटते। सबेरा होते ही उनका द्वार खटखटाते और बाहर से ही पूछते-यार लुई! तुम अब तक सोये पड़े हो। हम सब कब से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। बाहर आओ, देखो न कितने लोग आ गये हैं। स्टीवेंसन अँगड़ाई लेते बाहर आते और बच्चों से ऐसे घुल मिल जाते कि उन्हें पता भी नहीं चलता कि और भी स्त्री, पुरुष, वृद्ध वहाँ आ पहुँचे हैं। लुई उन सब को शिक्षाप्रद कहानियाँ, और महापुरुषों की जीवनियाँ सुनाते। उसका प्रभाव यह होता कि दिन भर वहाँ भीड़ जुटी रहती। स्टीवेंसन उन्हीं में व्यस्त प्रेम बाँटते रहते और अपनी कमियाँ- बुराइयों को निकालने का संकल्प दृढ़ करते। इस मध्य उनके स्वास्थ्य में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया। अब जो कोई उन्हें देखता, वह यही कहता कि यह स्वयं स्टीवेंसन नहीं उनके शरीर में किसी प्रत्यक्ष दैवी सत्ता का प्राकट्य है। स्वयं लुई का भी ऐसा ही विचार था। वे कहते जब मैं कोई कार्य आरंभ करता हूँ तो ऐसा लगता है, मानो कोई मेरी सहायता कर रहा हो। जब में किसी विषय पर सोचना आरंभ करता हूँ तो उसमें गहराई तक उतरता चला जाता हूँ। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई मेरे मस्तिष्क में तत्संबंधी विषय की क्रमबद्ध जानकारी भरता जा रहा है। वे इस बात को स्वीकार करते थे कि ज्ञान और व्यवहार में इस प्रकार की कोई विशेषता उनमें पहले नहीं थी। पता नहीं यहाँ आने के थोड़े दिन पश्चात् यह क्यों होने लगा।
वस्तुतः यह दैवी सत्ता का चमत्कार है। यह सत्य है कि जब दैवी चेतना का किसी में अवतरण होता है, तो उसके व्यक्तित्व का सर्वांगपूर्ण कायाकल्प कर देती है।