प्रतिभा एवं संकल्पशक्ति का उभार

September 1989

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प्रतिभावान होने का अर्थ है-विनम्र, साहसी एवं संकल्पवान बनना। इसके अभाव में मनुष्य महानता के उच्च सोपानों को प्राप्त नहीं कर सकता। सेंट आइन्स्टाइन का कहना है कि यदि आप प्रगति करना चाहते हैं, प्रतिभाशालियों की श्रेणी में अपने को खड़ा देखना चाहते हैं तो सर्वप्रथम जीवन व्यवहार में नम्रता को प्रमुखता देनी होगी। भव्य भवन को खड़ा करने के लिए पहले उसकी नींव को सुदृढ़ किया जाता है। भवन जितना ऊँचा बनाना है, उसकी नींव उतनी ही गहरी खोदनी होगी। यही बात जीन के अन्यान्य सद्गुणों के विकास के संबंध में भी लागू होती है। जीवन का सौंदर्य तभी निखरता है जब साहस और संकल्पबल के आधार पर विकास के मार्ग पर आने वाले अवरोधों से जूझते हुए चला जाय। ऐसे व्यक्तित्ववान, दृढ़संकल्पी ही समाज का कुछ हित साधन कर पाए हैं।

संसार में जितने भी प्रतिभाशाली महापुरुष हुए हैं, अत्यंत निर्धनता की स्थिति में भी वे पीड़ा और पतन निवारण के अपने कार्य से च्युत नहीं हुए। यद्यपि धन का लालच, पद का प्रलोभन भी एवं उच्चवर्ग के दबाव उन पर कम नहीं थे। फिर भी वे जीवन भर उसका साहसपूर्वक सामान करते रहे और प्रेम, सम्मान तथा चरित्र से प्रेरित होकर कार्य करते रहे। सुकरात ने अपने विचार छोड़ देने की अपेक्षा विषपान करना अधिक अच्छा समझा, वेस्टइंडीज में काम करने वाले पादरी ‘लेस केसस’ को निर्धन इंडियंस के दुख दर्दों को दूर करने से पीछे कोई नहीं हटा सका ब्रूसेल्स के महान कलाकार ‘विंर्ट्ज’ को कोई नहीं खरीद सका।

इसी तरह अंग्रेज शासक चार्ल्स द्वितीय के सांसदों में मार्वल एक ऐसा प्रतिभाशाली सदस्य था जिससे निरंकुश शासक को अपनी सत्ता छिन जाने का सतत् भय बना रहता था। जनता उसके विरुद्ध थी और उसका नेतृत्व मार्वल के हाथों में सुरक्षित था। राजा न सभी प्रमुख व्यक्तियों को कितनी काँचन का प्रलोभन देकर अपने पक्ष में कर लिया फिर भी मार्वल को वह अपनी .... में नहीं ले सका। चार्ल्स के लाखों प्रयत्न भी उसे उसके कर्तव्य पथ से डि.... नहीं सके। उसका कोषाध्यक्ष .... .... एक लाख पौण्ड लेकर साँसद के पास पहुँचा तो उसने यह कहते हुए वापस कर दिया कि “मैं यहाँ उन लोगों की सेवा करने आया हूँ जिन्होंने मुझे चुन कर भेजा है। अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए राजा और किसी मंत्री को चुन लें, मैं उनमें से नहीं हूँ”। मार्वल की सादगी और चरित्र निष्ठा आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। उसकी समाधि पर अंकित ये शब्द आज भी कितने सार्थक हैं-”अच्छे लोग उससे प्यार करते थे, बुरे लोग उससे डरते थे, कुछ लोग उसका अनुकरण करते थे परन्तु उसकी बराबरी करने वाला कोई न था।”

दूसरी शताब्दी में इटली का एक सैनिक वेसुवियस में अन्य साथी सिपाहियों के साथ अपनी ड्यूटी पर तैनात था। सहसा उस क्षेत्र में भयंकर आग लग गई। इस दृश्य से भयभीत उसके सारे साथी-सहयोगी अपने प्राण बचाकर भाग खड़े हुए। किन्तु अकेला वह उस दावानल से जूझने लगा। अग्नि प्रकोप को शाँत करने में वह तब तक लगा रहा जब तक कि स्वयं उसका काय कलेवर भस्मीभूत नहीं बन गया। नेपल्स के संग्रहालय में उस प्रतिभाशाली वीर सैनिक के अस्त्र-शस्त्र एवं लोहे के टोप आज भी संरक्षित हैं। यह संकल्प शक्ति से उपजी कर्तव्यनिष्ठा का चमत्कार है।

लन्दन के प्रख्यात विद्वान सैमुएल स्माइल ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “ड्यूटी” में लिखा है कि प्रतिभा परिवर्धन में संकल्प शक्ति की प्रखरता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऊँचे उद्देश्यों सत्कर्मों से प्रेरित संकल्पशक्ति अन्यान्यों को भी प्रेरणा और प्रोत्साहन देती है। संकल्प बल का धनी व्यक्तित्व अपने सद्विचारों की छाप दूसरों पर छोड़ता है और उनको अपने मार्ग पर घसीट ले जाता है। ऐसे दृढ़ संकल्प शक्ति वाले मनुष्य जिस भी समाज या राष्ट्र में होते हैं, उसे अभिनव शक्ति प्रदान करते और उनमें नवजीवन का प्राण फूँकते हैं।

संकल्प शक्ति की दिशा धारा-भली या बुरी कोई भी हो सकती है। इसका गहरा सम्बन्ध मनुष्य की चरित्र निष्ठा से जुड़ा हुआ है। यदि चरित्र निर्माण की दिशा गलत हो तो दृढ़ संकल्पशक्ति विनाशकारी भी हो सकती है। तब वह निष्ठुर व्यक्तियों की आततायी बनाकर उसे प्रेत-पिशाच स्तर का भी बना सकती है। उसे युद्ध विनाश या अत्याचार के लिए उभार सकती है। हिटलर, नैपोलियन, सिकन्दर आदि इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। उनमें संकल्प बल की कमी नहीं थी। प्रतिभा भी उनमें थी पर उसकी दिशाधारा सही नहीं थी। परिणाम स्वरूप उनके विनष्ट होने में देर नहीं लगी।

तृतीय श्रेणी के उन लोगों की संख्या इस संसार में सर्वाधिक है जिनकी संकल्पशक्ति या तो कमजोर होती है अथवा होती ही नहीं। ऐसे लोगों में भले या बुरे कामों के प्रति दृढ़ता का पूर्णतया अभाव होता है। वे प्रायः दब्बू किस्म के होते हैं और जिस तिस के हाथों बिकते और कठपुतली की तरह नाचते हुए दिन काटते रहते हैं। हवा के प्रवाह के अनुरूप तिनके-पत्तों की तरह उड़कर कहीं से कहीं जा गिरते हैं। उन पर कोई भी अपना प्रभाव जमा सकता है। नदी के प्रबल प्रवाह को उलटी दिशा में चीर कर मछली की तरह एकाकी आगे बढ़ सकना मात्र संकल्पबल के धनी प्रतिभावानों से ही बन पड़ता है।

सैमुएल स्माइल का कहना है कि यदि मनुष्य को प्रतिभावान बनना है तो उसे संकल्प बल एवं चरित्र निष्ठा-दोनों को ही सुदृढ़ बनाना होगा। अन्यथा इसके बिना सच्चाई निर्बल रहेगी, नैतिकता भटक जायेगी और हम किन्हीं अयोग्य एवं धूर्त व्यक्तियों के हाथों की कठपुतली बन जायेंगे। ऐसी स्थिति में समाज का-राष्ट्र का निर्माण तो दूर रहा, अपने व्यक्तित्व का विकास भी हम नहीं कर सकते। उनके अनुसार मात्र बौद्धिक विकास से चरित्र की दृढ़ता नहीं आती हैं ऐसे लोग केवल बहस कर सकते हैं, जबकि दृढ़ संकल्प वाले ठोस कार्य कर दिखाते हैं। इस संबंध में मूर्धन्य मानस विज्ञानी श्री लाँक का कहना है कि युवावस्था ही वह उपयुक्त अवसर है जिसमें व्यक्ति अपने संकल्प बल को प्रखर बना सकता है। चरित्र को गढ़ सकता है। यही वह आयु है, जब मस्तिष्क में नये विचार और अच्छे संस्कार जड़ जमा सकते हैं। इस वय में लापरवाही बरतने वालों को आजीवन पछताना पड़ेगा।

लार्ड शाफ्टबरी का कहना है कि अस्तव्यस्त एवं मूर्खतापूर्ण कार्य बुद्धि की कमी के कारण नहीं वरन् संकल्प शक्ति की कमी से होते हैं। चरित्र का गठन एवं परोपकार पूर्ण कार्य मस्तिष्कीय बौद्धिकता से नहीं, हृदय की विशालता से सम्बन्ध रखते हैं। विद्वानों ने वैज्ञानिकों ने भले ही महान सिद्धान्त खोजे या आविष्कार किये होंगे पर महान कार्यों की प्रेरणा दे पाने में वे कम ही समर्थ हुए। मानवता का उद्धार कम-पढ़े लिखे महामानवों द्वारा ही सम्पन्न हुआ है। प्रतिभा का वास्तविक उन्नयन बौद्धिक विकास से न होकर आन्तरिक विकास से सम्बन्धित है। अन्तः प्रेरणा इसका प्रमुख स्रोत है। सेंट एनसेल्म के अनुसार “अपनी बौद्धिक प्रतिभा पर अधिक विश्वास करने वालों की अपेक्षा ईश्वर उन लोगों के अधिक निकट है जो उस पर विश्वास करते और उसके विश्व उद्यान को समुन्नत बनाने में निरत रहते हैं।


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