प्रसन्नता का चुम्बकत्व

September 1989

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मनुष्य का जीवन अनुपम है। उसे स्रष्टा की सर्वोत्तम कलाकृति कहा गया है। उसमें इतना कौशल भरा पड़ा है जिसकी अन्य किसी से तुलना नहीं। उसे इतने साधन उपलब्ध हैं मानो प्रकृति ने माता की तरह सारा स्नेह उसी पर निछावर कर दिया है।

प्रश्न एक ही है कि जिसे वह मिला है वह कितना मूर्ख या बुद्धिमान है। मूर्ख इस अर्थ में कि अपनी बहुमूल्य क्षमताओं को कूड़े कचरे की तरह बिखेर दे। बुद्धिमान इस अर्थ में कि जो मिला है उसका राई रत्ती भी सदुपयोग की परिधि से बाहर न जाने दे।

जीवन को प्रगतिशील और प्रसन्नता से भरा पूरा रखने के कुछ मोटे नियम हैं। इतने मोटे और सर्वविदित कि उन्हें सीखने जानने के लिए किसी विद्यालय में प्रवेश पाने, कोई धर्मशास्त्र पढ़ने या किसी सद्गुरु के तलाशने की आवश्यकता नहीं है। इन नियमों को दुर्मतिजन्य दुर्गति से ग्रसित लोगों को देखकर, प्रसन्न और सफल लोगों के बीच पाये जाने वाले अन्तर को सहज ही समझा जा सकता है।

प्रसन्नता एक मानसिक गुण है जो थोड़े दिनों अभ्यास करने एवं आदत में समाविष्ट करने पर सहज ही एक सामान्य आदत के रूप में विकसित हो सकती है। दर्पण के सम्मुख खड़े होकर अपने मुसकाते हुए खीजते हुए और खिन्न निराश चेहरे को देखकर सहज समझा जा सकता है कि उनके बीच कितना अन्तर है।

कुरूपता या सुन्दरता चेहरे की बनावट पर निर्भर नहीं है। कोई कुरूप भी प्रसन्न स्थिति में खिले हुए फूल जैसा सुन्दर लग सकता है और कोई सुन्दर भी उदास, निराश स्थिति में ऐसा लग सकता है मानों किसी मरणासन्न को लकड़ी के ढाँचे में कसकर खड़ा कर दिया गया है।

मुसकान एक आकर्षण है जिसमें चुम्बक की तरह दूसरे का स्नेह, समर्थन और सहयोग आकर्षित कर लेने की क्षमता है। मुसकान इस बात की प्रतीक है कि व्यक्ति अंतरंग क्षेत्र में सद्गुणों का भण्डार भरें पड़ा है। ऐसे व्यक्ति की आंखें चमकती हैं और दीखते हुए दाँत उन विशेषताओं की साक्षी देते हैं जो किसी का जीवन प्रगतिशील एवं सफल होने की भविष्यवाणी करते हैं।

“दि पावर आफ पोजीटिव थिंकिंग” के लेखक विद्वान नार्मन बीसेन्ट पाँल ने कुछ छोटे किन्तु सुनहरी सूत्र बताये हैं जिन्हें अपनाकर कोई भी अपने को महत्वपूर्ण व्यक्ति बना सकता है। वे कहते हैं-”बड़ी महत्वाकाँक्षायें मत गढ़िये। ललक और लिप्सा में इतने व्यग्र मत रहिए कि बहुत कुछ पाने की लालसा में चैन ही न पड़े। सादा जीवन जिएँ। प्रगति के लिए परिश्रम करें। व्यस्त रहें। किन्तु आवेश और अशान्ति से दूर रहें। संकीर्ण नहीं उदार बनें। जीवन से प्रेम करें और सहचरों से भी, ताकि लौटकर वह प्रेम तुम्हें प्रफुल्लता में आच्छादित कर दे।”

अरस्तु कहते थे कि “प्रसन्नता और कुछ नहीं जीवन-कला का ही दूसरा नाम है। जो व्यक्ति अपने को व्यवस्थित रख सकता है और दूसरों के साथ सद्व्यवहार बरतने के सिद्धान्त जानता है वह सदा मुसकराता पाया जायेगा”।

डाक्टर मार्टिन गैमर्ट ने अपनी पुस्तक ‘दि एनाटॉमी आफ दी मिनैस’ में लिखा है कि “प्रसन्नता आसमान से नहीं टपकती, वह भले इनसान के अन्तराल में उगती है। कुचक्री और षड्यन्त्रकारी इस दैवी उपलब्धि से सदा वंचित ही रहेंगे।”

हम अपने उद्देश्य और क्रियाकलापों में शालीनता का समावेश रखें। निठल्ले न बैठें अनगढ़ व्यक्तियों को मित्र न बनायें और न उनका प्रभाव ग्रहण करें। पिछड़ों का सहारा देना एक बात है और अपने को उन्हीं के जैसा बना लेना दूसरी। दुर्गुणों को अपना लेने पर हम अपनी शान्ति, तुष्टि और प्रसन्नता को एक साथ गँवा देते हैं यह संसार नाटक नहीं है जिसमें मुखौटे बाँधकर और पोशाकें पहनकर महान बना जा सके। हमारा व्यक्तित्व ऐसा होना चाहिए जो सभी कसौटियों पर कसे जाने पर भी खरासिद्ध हो दूसरों की श्रद्धा उछलकर अपने चेहरे पर प्रफुल्लता के रूप में दर्शाती है।

ओछे विचार और हेय काम मनुष्य को भीतर ही भीतर कचोटते और खोखला करते रहते हैं। जिन्हें सफल जीवन जीना और प्रगतिशील बनना है उन्हें यह गाँठ बाँध लेना होगा कि सज्जनता और प्रसन्नता सहोदर बहिनों की तरह हैं, उन्हें एक साथ हँसते खेलते देखा जा सकता है।

जीवन को खिलाड़ी की तरह जिएँ उसी दृष्टिकोण को अपनाकर काम करें। इससे बहुत काम करने पर भी न आप पर वजन पड़ेगा न थकान आयेगी। ऐसे व्यक्ति हारने और जीतने के अभ्यस्त होते हैं और दोनों ही स्थितियों में संतुलन बनाये रहते हैं। संतुलन खोकर जीतना भी बुरा, हारना तो बुरा है ही। अपनी क्षमता से अधिक अपने हाथ में लिए हुए कामों को भारी न मानें। यदि आप उन्हें तन्मयता से करेंगे तो जीतने की ही अधिक संभावना है। जिसे अत्यधिक भारी समझें उसे आरंभ में ही तोल लें। अनावश्यक वजन से न लद मरें। जितना अपने बस में हो उतना ही हाथ में लें और जो लें उसे विश्वासपूर्वक परिपूर्ण तत्परता के साथ करें। इस प्रकार आप प्रायः सफल ही होकर रहेंगे और अपनी प्रसन्नता बनाये रहेंगे।

असफल होने पर भी खिन्न होने की आवश्यकता नहीं है। इससे तो आप भावी सफलता को भी खतरे में डाल देंगे। दुनिया मुसकराते हुए आदमी को मनस्वी, साहसी और पराक्रमी मानती है। जबकि मुँह फुलाये रहने वाले, कठिनाइयों का रोना रोने वाले के सम्बन्ध में बेसमझ अथवा कर्महीन होने की धारणा बनाते हैं। अपने आप को बदनाम करें या सफल श्रेयाधिकारी का यश लूटें यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर है कि आप अपने चेहरे को कैसा बनाये रहने के आदी हो चुके हैं।

जो उपलब्ध है, उसका सदुपयोग कीजिए। भवितव्यता के सपने न देखिए। असफलताओं में अपनी भूल का निरीक्षण करें। दूसरों पर दोष थोपने की अपेक्षा यह अच्छा है कि जहाँ इस बार अपने से चूक हुई है उसकी भविष्य में पुनरावृत्ति न होने दें। जो गुजर चुका उससे शिक्षा ग्रहण करें पर हर्ष या शोक से अपने आपको उद्विग्न न करें।

सामाजिक बनिए। सबके साथ हिलमिल कर रहने और मिल बाँट कर खाने की आदत बहुत अच्छी है। जो एकाकी रहते हैं, दूसरों से डरते या कतराते हैं उसे स्वार्थी या डरपोक समझा जाता है। अच्छा यही है कि स्वयं प्रसन्न रहा जाय और उस दैवी सम्पदा को अधिकाधिक लोगों में वितरित किया जाय। यह मान लिया जाना चाहिए कि प्रसन्नता एक ऐसा चुम्बक है जो सज्जनों, विधेयात्मक चिन्तन वालों को अपनी और खींचता रहता है।


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