सूक्ष्म जगत में विद्यमान आसुरी सत्ता का प्रवाह!

September 1989

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

....उक्ति है-”चोर-चोर मौसेरे भाई।” .... सत्य है कि समानधर्मी व्यक्तियों .... अपनी बिरादरी वालों की ओर ही .... चुम्बक सदा अपनी स्वजातियों .... अपनी ओर आकर्षित कर पाता .... धातुओं में भी जितनी सरलता से समान .... वाली परस्पर मिलन-संयोग कर पाती हैं, .... सुगमता से विपरीत प्रकृति वाली नहीं, इसी का प्रतिपादन उपरोक्त उक्ति में है। .... सत्य आज के माहौल में अधिक देखा .... और महसूस किया जा .... है। विवेकानन्द ने एक स्थान पर .... किया है कि स्थूल जगत की तरह एक .... जगत भी है और उससे हम उसी प्रकार .... रूप से संबद्ध हैं, जिस प्रकार भौतिक .... से। वे कहते हैं कि हमारे इर्द-गिर्द हर वक्त अनेकों सत्ताएँ मँडराती रहती हैं, पर हमारा संपर्क सिर्फ उन्हीं सत्ताओं से हो पाता है, जिनकी आवृत्ति से हमारी चिन्तन-चेतना की आवृत्ति मेल खाती है। आज सर्वत्र आपाधापी और विनाशकारी वातावरण दिखाई पड़ता है। अधिसंख्यक लोग अनैतिक कृत्यों में रुचि लेते दिखाई पड़ते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि चिन्तन की प्रतिकूलता एवं निषेधात्मकता के कारण सूक्ष्म जगत की आसुरी शक्तियां उन पर सवार होतीं और विनाशकारी कुचक्र रचने की प्रेरणा भरती हैं। इतिहास साक्षी है कि जिन व्यक्तियों ने मनुष्य और समाज के लिए क्रूरतम कार्य किये, उन पर सदा असुर सत्ताएँ ही छाई और अहितकर कार्य कराती रही एवं अन्ततः उनके अन्त का भी निमित्त कारण बनी।

द्वितीय विश्वयुद्ध के खलनायक हिटलर के बारे में कहा जाता है कि एक असुर आत्मा सतत् उसके संपर्क में बनी रहती थी और उसे क्रूर कर्म करने के लिए सदा बाधित करती रहती थी। इस तथ्य का उल्लेख “दि आँकल्ट राइख” नामक पुस्तक में विस्तार पूर्वक किया गया है।

अरविंद आश्रम की “श्री माँ” ने भी अपने गु.... अनुभव के आधार पर लिखा है कि हिटलर के आस-पास सदा .... .... सत्ता विद्यमान रहती थी, जो प्रकट होकर नृशंस कार्यों में उसकी सहायता और प्रेरणा दिया करती थी।

इस दानवी सत्ता के संपर्क में हिटलर सर्वप्रथम 1916 में आया, जब वह एक सामान्य सैनिक के रूप में प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा ले रहा था। एक रात जब वह मोर्चे पर था, तो उसे झपकी सी आ गई और उसने एक स्वप्न, देखा, कि एक अग्नि का गोला उसकी ओर बढ़ा आ रहा है और अब तब उस पर गिरने ही वाला है कि एक दैत्याकार व्यक्ति ने उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी और खींच कर बचा लिया। आतंकित हिटलर नींद से जागा ही था कि एक तोप का गोला उसके कन्धे को चूमता हुआ निकल गया और वह बाल-बाल बच गया। भय की स्थिति में वह खंदक को छोड़ दानवी प्रेरणा के आधार पर कठपुतले की तरह आगे बढ़ गया। अभी वह कुछ ही कदम आगे बढ़ा था कि एक अन्य गोला सनसनाता आया और वहीं गिरा, जहाँ वह पहले था। उसके सभी साथी विस्मार हो गये। अकेला हिटलर बचा रहा। इस घटना के बाद से उसका मनोबल बढ़ता गया और उसी के साथ उसकी नादिरशाही भी बढ़ती ही गई, जिसका चरमोत्कर्ष एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में सामने आया, जिसने अपनी पैशाचिकता से मानवी इतिहास को कलंकित कर दिया पर वह स्वयं भी उस दानवी सत्ता के चंगुल से नहीं बच सका। कहा जाता है कि उस सत्ता ने अन्ततः उसे इतना पागल बना दिया था कि उसने अन्य अनेकों के साथ द्वितीय विश्व युद्ध के समापन के साथ ही अपना अन्त भी कर डाला। इस सारी घटना का उल्लेख हार्थन बुक्स न्यूयार्क से प्रकाशित पुस्तक “दि अण्डरस्टैण्डिंग ऑफ ड्रीम्स एण्ड देयर इन्फ्लूएन्सेज आँन दि हिस्ट्री ऑफ मैन” में विस्तारपूर्वक किया गया है।

नेपोलियन के बारे में भी ऐसी ही मान्यता है कि उसके आस-पास सदा एक असुर सत्ता मँडराती रहती थी। आस्ट्रिया के साथ युद्ध में एक दिन जब वह मोर्चे की ओर बढ़ रहा था, तो गाड़ी में ही उसे नींद आ गई। उसने एक स्वप्न देखा, जिसमें उसके अदृश्य सहायक ने बताया कि जिस स्थान पर अभी है, वह पूरी तरह से बारूदी सुरंग से घिरा हुआ है और जल्द ही फटने वाला है। नींद खुली तो स्वप्न के तथ्य की जाँच की। सचमुच ही वहाँ सुरंगें बिछी हुई थी। उसने तुरन्त उस स्थान को छोड़ दिया। कुछ ही देर पश्चात् एक जोरदार धमाके से वह सारा क्षेत्र प्रकम्पित हो उठा। नेपोलियन की जान तो बच गई पर उस दिन से सदैव वह अशरीरी सत्ता छाया की तरह उसके साथ रहने लगी उसके क्रूर कर्मों का कारण बनी और अन्त में उसकी मृत्यु का भी श्रेय उसी को मिला। उत्तरार्ध जीवन में उसने नेपोलियन की मौत की घोषणा भी कर दी थी और सचमुच उन्हीं परिस्थितियों में वह मरा पाया गया।

जब क्रूरता का भूत किसी पर सवार होता है तो वह उसे कुछ भी कर गुजरने की प्रेरणा देता रहता है, पर अन्त में उस क्रूर प्रवाह का शिकार हुए बिना वह भी नहीं रह पाता। नादिरशाह के मामले में भी ऐसा ही हुआ। अन्ततः उसकी हत्या कर दी गई।

14 वीं सदी में नीरो नौ वर्ष तक रोम पर शासन करता रहा। इस मध्य उसने भी खूब रक्तपात मचाया। अपनी माता और पत्नी का सिर कटवा डाला। जिन लोगों से मतभेद होता, उन्हें अपने सामने ही मौत के मुँह में धकेल देता। एक बार सनक चढ़ी, तो पूरा शहर ही जलवा कर राख कर दिया और जलते शहर का दृश्य एक पहाड़ी पर बैठ कर स्वयं देखता रहा एवं उस सर्वनाश का आनन्द लेता रहा। स्वयं भी वह मित्र के विश्वासघात से मरा।

असुरता कितनी नृशंस हो सकती है, आये दिन उसके उदाहरण हमें देखने को मिलते रहते हैं। इतिहास का पन्ना तो इससे भरा पड़ा है यह बर्बरता सामूहिक रूप से बड़े पैमाने पर और मात्र सनक की पूर्ति के लिए भी की जाती रही है। छुट-पुट लड़ाई-झगड़ों से लेकर विश्व युद्धों तक में जितनी भी क्रूरताएँ हुई और विनाश लीलाएँ रची गई-इन सबके मूल में असुरता ही प्रधान रही है। इस असुरता के भी मूल में उस सूक्ष्म प्रवाह को ही जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है, जो अपने अनुकूल माध्यमों पर सवार होता और यंत्रमानव की तरह उनसे कुछ से कुछ करवाता रहता है।

अब इस तथ्य की वैज्ञानिक पुष्टि भी हो गई है कि हम जो कुछ सोचते-विचारते हैं, वह समाप्त नहीं हो जाता, वरन् मस्तिष्क के चारों ओर एक विशेष क्षेत्र-आइडियोस्फियर में इकट्ठा होता रहता है। जो जैसा भला-बुरा चिन्तन करता है उसकी ओर आइडियोस्फियर की तदनुरूप चिन्तन धारा स्वतंत्र सत्ता का रूप धारण कर आकर्षित होती और उन्हें सन्मार्ग-कुमार्ग पर ले चलने की प्रेरणा भरती है। क्रूर कृत्यों में संलग्न व्यक्तियों का चिन्तन चूँकि अन्याय और अनाचारपूर्ण होता है, अतः उनका संपर्क सदा ऐसे ही सूक्ष्म असुर प्रवाह से बना रहता है। इनसे उन्हें तब तक मुक्ति नहीं मिल पाती जब तक वे अपनी चिन्तन-चेतना को परिष्कृत - परिवर्तित नहीं कर लेते।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118