संकल्प और आत्मबल एक ही तथ्य के दो पक्ष हैं।

June 1978

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सुखद कल्पनाओं का आनन्द सभी लेते हैं, पर उन्हें पूर्ण करने को सफलता का गौरव प्राप्त कर सकना किसी-किसी के लिए ही सम्भव होता है। कल्पना की चिड़िया इस उन्मुक्त आकाश में कितनी ही ऊँची उड़ानें उड़ सकती है। उस पर कोई रोक टोक नहीं, पर एक छोटा-सा सुनियोजित घोंसला तक बनाकर खड़ा करना हो तो बया जैसी तत्परता और तन्मयता का परिचय देना पड़ता है। प्रगति की अभीष्ट उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिए जिस सामर्थ्य की सर्वप्रथम आवश्यकता पड़ती है वह है संकल्प शक्ति।

किसी कार्य के पक्ष विपक्ष पर भली-भाँति मंथन करने के उपरान्त जो निष्कर्ष निकलता है और अपनी क्षमता का अनुमान लगाकर जिसे करने का फैसला किया जाता है ,उसे निश्चय कहते हैं। निश्चय को कार्यान्वित करने के लिए साहस चाहिए और साथ ही यथार्थतावादी विवेक भी। निश्चय को साहस का योगदान मिलने से जो दृढ़ता उत्पन्न होती है ,उसे संकल्प कहते हैं। संकल्प की शक्ति असीम है। उसके द्वारा असम्भव को सम्भव बना सकना ; शक्य न हो तो भी इतना निश्चय है कि कठिन लगने वाले कार्य सरल हो जाते हैं। ऊँचा उठने और आगे बढ़ने का श्रेय प्राप्त करने वालों में से प्रायः सभी ने संकल्पशक्ति के सहारे ही अतिमहत्वपूर्ण श्रेय सम्पादन किये हैं।

सफलताएँ कर्म- पुरुषार्थ के सहारे उपलब्ध होती हैं। दृढ़तापूर्वक अभीष्ट प्रयोजन के लिए पुरुषार्थ को नियोजित किये रहना, संकल्पशक्ति के सहारे ही सम्भव होता है। इसलिए विभिन्न क्षेत्रों की विभिन्न सफलताओं के लिए संकल्पशक्ति की आन्तरिक सामर्थ्य ही अगणित प्रकार के वरदान और चमत्कार उपस्थित करती है। सदुद्देश्य के लिए किये गये संकल्प और उन्हें पूरा करने के लिए नियोजन भावभरे पराक्रम को आत्मबल कहा जाता है। संकल्प और आत्मबल एक ही तथ्य के दो पहलू मात्र हैं।

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