गायत्री जयन्ती पर सभी परिजन अपनी भावभरी श्रद्धा का परिचय दें

June 1978

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                                                                    गायत्री   जयन्ती  पर सभी परिजन अपनी

                                                                             भावभरी श्रद्धा का परिचय दें

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         गायत्री भारतीय संस्कृति का बीज मन्त्र है। उस छोटे से शब्दसमुच्चय में उस ज्ञान और विज्ञान के समस्त सूत्र विद्यमान हैं जिन्हें अपनाकर भारत भूमि के तेतीस कोटि नागरिक देवमानव बने और समस्त विश्व में प्रगति के पथप्रदर्शक कहलाये। गुरु मन्त्र कहलाने का गौरव उसी को प्राप्त है। वेदमाता, विश्वमाता और देवमाता नामों से उसे सम्बोधन किये जाने में यथार्थता भी है और सार्थकता भी। उपासना करने वाले उसकी प्रतिक्रिया को देखते हुए उसे अमृत, पारस और कल्पवृक्ष कहते हैं। उसे धरती की कामधेनु कहते हैं। इस अलंकारिक प्रतिपादन में तथ्य तथा सत्य दोनों का समावेश है।

      व्यापक परिवर्तन और नवनिर्माण के लिए जिस युग शक्ति की आवश्यकता है ,वह प्रचण्ड ऊर्जा गायत्री उपासना के सामूहिक प्रयोगों से ही उत्पन्न होगी। युग निर्माण योजना के विविध क्रिया-कलापों में सामूहिक गायत्री उपासना जोड़कर रखा गया है और समय-समय पर उसके आयोजन होते रहते हैं। गायत्री जयन्ती ज्येष्ठ शुक्ल दशमी वेदमाता महाशक्ति के अवतरण का पुण्यपर्व है , यही गंगा जयन्ती भी है। वस्तुतः एक ही प्रखर पवित्रता का स्थूलरूप गंगा रूप गायत्री है। एक का अवतरण भागीरथ ने दूसरी का विश्वामित्र ने अपनी प्रचण्ड तपसाधना से सम्पन्न किया था। अब उसे ओंर सूक्ष्म रुप युगशक्ति के रूप में उभारने के लिए अपना परिवार नये सिरे से प्रयोगों के साथ सामूहिक उपासना की साधनतपश्चर्या में निरत है। उसे विश्वव्यापी विश्वमाता बनाने का अपना संकल्प है।

        इस वर्ष गायत्री जयन्ती 16 जून को है। इस पुण्यपर्व को इस प्रकार मनाया जाना चाहिए कि इस महाशक्ति के प्रति वर्तमान साधकों की निष्ठा अधिक परिपक्व हो और अपरिचितों को उसे अपनाने के लिए अभिनव प्रकाश प्राप्त हो।

             गायत्री जयन्ती यों तो अनादिकाल से मनाई जाती रही है ,पर इस पुनर्गठन वर्ष से उसे अखण्ड जप आयोजन  के साथ मनाने की परम्परा क्रियान्वित की जा रही है। उस दिन परिवार के समस्त प्रभाव क्षेत्रों में उसे इसी रूप में मनाने के लिए समग्र उत्साह के साथ तैयारी की जानी चाहिए। समय बहुत ही कम रह गया है। आयोजन वेदमाता की शान और परिजनों की प्रतिष्ठा के अनुरूप होना चाहिए। अस्तु, तैयारियाँ आरम्भ कर दी जानी चाहिए। जागृत आत्माओं के लिए सभी अग्रगामी परिजनों के लिए यह आवश्यक है कि इस सामयिक कर्तव्य का पालन करने के लिए अपना ध्यान इस दिशा में पूरी तरह नियोजित करें। सभी परिजनों को एकत्रितकर कार्यक्रम समझायें और उसके लिए, आवश्यक सहयोग प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करें। इस कार्य के लिए अग्रगामी स्तर के- टोली नायकों, जोड़ीदारों और कार्यवाहकों को एक जुट होकर बिना समय गंँवाये परिपूर्ण प्रयत्न करने चाहिए।

          गायत्री जयन्ती 16 जून की है। अखण्ड जप ता. 15 को तीसरे प्रहर 3 बजे से आरम्भ करके ता. 16 को ठीक उसी समय समाप्त किया जाना चाहिए। 24 घन्टे की साधना अखण्ड कहलाती है जप ,मौन ,मानसिक होगी। रात्रि में मानसिक जप का ही विधान है। अखण्ड जप बिना होंठ हिलाये ,मानसिक रूप से होना चाहिए। इस साधना में सम्मिलित होने के लिए सभी स्थानीय उपासकों को सम्मिलित होने के लिए अनुरोध करना चाहिए। इसके लिए उनसे सम्पर्क साधना आवश्यक है। नवरात्रियों में जिनने अनुष्ठान किये थे उन सबसे कहना चाहिए कि वे स्वयं तो सम्मिलित रहें ही। दो चार नये साथी भी तैयार करें। संख्या विदित होने पर क्रम बनाया जाय। दिन की अपेक्षा रात्रि में संख्या का घट जाना स्वाभाविक है। इसलिए अन्तर तो रहेगा, फिर भी ऐसा कार्यक्रम बनाया जाय कि दिन में अमुक संख्या में और रात्रि को- अमुक संख्या में जपकर्ताओं की संख्या का सन्तुलन ठीक बना रहे।

      जप के अतिरिक्त गायत्री चालीसा -पाठ, मन्त्र- लेखन के अतिरिक्त कार्यक्रम भी साथ-साथ चलते रह सकते हैं। सामूहिक कीर्तन के रूप में गायत्री चालीसा- पाठ उत्तम है। ‘ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ’ इस कीर्तन मन्त्र का भी मधुर स्वर से सहगान के रूप में वाद्य यन्त्रों के साथ कीर्तन किया जा सकता है। इसमें लाउडस्पीकर का प्रयोग किया जाये तो अधिक लोगों को जानकारी मिलेगी तथा अधिक लोग सम्मिलित हो सकेंगे। अखण्ड जप समाप्त होने पर तीन से सात तक का समय इस सहगान कीर्तन के लिए रखा जा सकता है।

         ता. 15 को सायंकाल तथा 16 को प्रातः सामूहिक आरती की जाय। आरती का थाल भली प्रकार सजाया जाय। उसमें 24 घृत दीपक रहें। आरती गान भाव-भरा हो। ता. 16 को आरती के उपरान्त गायत्री यज्ञ आयोजन रखा जाय। उपस्थिति को देखते हुए कुण्डों की व्यवस्था सोची जाय। यज्ञशाला आकर्षक बनाने के कितने साधन हों आदि बातों को ध्यान में रखकर भी कुण्डों अथवा वेदियों की संख्या निर्धारित की जाय। ता. 16 को सायंकाल आयोजन स्थल पर दीपावली मनाई जाय। रात्रि को ज्ञान यज्ञ का सम्मेलन आयोजन रखा जाय। गायकों और वक्ताओं को समय से पहले अपनी तैयारी कर लेने के लिए कहा जाये ताकि वे गायत्री महाशक्ति का स्वरूप और प्रयोग समझा सकें और उपस्थित लोगों को यह प्रेरणा दे सकें कि उन्हें किस प्रकार उसे विश्वव्यापी प्राणऊर्जा बनाने के लिए प्रबल प्रयास करना और योगदान देना चाहिए।

     आयोजन के स्थान का चुनाव बहुत ही सूझ-बूझ के साथ किया जाय। सबके लिए सुविधाजनक पड़े। स्वच्छता, हवा, रोशनी, पानी और पेशाब घर इन पाँचों के लिए पहले से ही उपयुक्त प्रबन्ध कर लिया जाय। बिछावन, बिजली, पण्डाल, आकर्षक सजावट का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाय। सुसज्जा में कलाकारिता और भाव - निष्ठा का परिचय मिलना चाहिए। उपेक्षापूर्वक, कुरुचि उत्पन्न करने वाला, फूहड़ वातावरण बनाने से आगन्तुकों में व्यवस्थापकों के प्रति अश्रद्धा ही उत्पन्न होते हैं। झन्डियाँ, पल्लव, बन्दनवार, केले के स्तम्भ, आदर्श वाक्य, बड़े साइज के चित्र आदि से आयोजन स्थल को अधिक आकर्षक और प्रेरणाप्रद बनाने का प्रयत्न किया जाय। यज्ञशाला ,जप स्थान से थोड़ी हटकर बनाई जाय। जपकर्ता पीले वस्त्र न सही पीले दुपट्टे तो कन्धे पर रखें ही।

    गायत्री माता की स्थापना सुसज्जित मंच पर बड़े चित्र के रूप में की जाय। कलश में गंगाजल भी उसी वेदी पर प्रतिष्ठित किया जाय। इस प्रकार गंगा जयन्ती और गायत्री जयन्ती के दोनों ही प्रतीकों की प्रतिष्ठापना हो जाती है। आयोजन का आरम्भ षट्कर्म, कलशपूजन, देवपूजन, स्वस्तिवाचन, गायत्री स्तवन, यज्ञोपवीतधारण के साथ सामूहिक रूप से किया जाय। समाप्ति-शान्ति पाठ के साथ की जाय। जहाँ सम्भव हो, वहाँ जप की समाप्ति के उपरान्त गायत्री माता की सुन्दर झाँकी बनाकर शोभा यात्रा निकाली जाय। इसी प्रकार बन पड़े, तो साधकों के सहयोग का प्रबन्ध भी किया जाय। अपने सहभोजों में चावल, दाल, खिचड़ी, दलिया आदि की ही परम्परा है। पकवान, मिष्ठान का निषेध है। प्रसाद में पंचामृत (जल, गंगा जल, तुलसीपत्र, चन्दन, शकर) इन पाँच का सम्मिश्रण ही बाँटा जाय। साहित्यबिक्री के लिए स्टॉल लगाया जाय और प्रचार साहित्य के वितरण के लिए कुछ राशि रखी जाय।

      आयोजन के स्वरूप को ध्यान में रखते हुए सामान का पहले से ही प्रबन्ध कर लिया जाय। काम की ड्यूटियाँ बाँट दी जाय। आयोजन में अधिक लोग सम्मिलित हो सकें, इसके लिए छपे निमन्त्रण पत्रों एवं व्यक्तिगत सम्पर्क साधने की बात ध्यान में रखी जाय। पैसे का प्रबन्ध साधक ही मिलजुल कर लें।

   ता. 17 जून को आयोजन की विवरण तथा जिन-जिन लोगों ने इस पुण्य आयोजन में भाग लिया हो उन सबको सूची भेज दी जाय, उन्हें आशीर्वाद पत्र शान्ति कुज्ज हरिद्वार से भेजे जायेंगे। आशा की गई है कि प्रत्येक गायत्री- उपासक इस आयोजन को सफल बनाने में सहयोग देकर अपनी भावभरी श्रद्धा का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करेगा।

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