एक साधक था (kahani)

June 1978

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एक साधक था |   साधना करते-करते उसे पानी पर चलने की एवं मनचाही वस्तु प्राप्त करने की सिद्धि प्राप्त हो गई। वह गुरु के पास दौड़ा-दौड़ा गया व बोला – “महाराज मैं पानी पर चल सकता हूँ तथा जो चाहूँ , –वह वस्तु प्राप्त कर सकता हूँ।”

महात्मा बोले – “यह कोई बड़ी बात नहीं है| ” पानी पर ले जाने का काम तो मल्लाह भी कुछ पैसे लेकर कर देते हैं और जहाँ तक चीजें बनाने का प्रश्न है – मामूली से जादूगर भी रुपया, फल बनाते रहते हैं! क्या इतनी सारी तपस्या व साधना का उद्देश्य इस तरह की तुच्छ शक्तियों की प्राप्ति के लिए ही की थी या केवल भगवद् प्राप्ति – आनन्द के लिए।

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