सपनों में सन्निहित जीवन सत्य

June 1978

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

  'दि अण्डर स्टैडिग आँफ ड्रीम एण्ड देयर एन्फलूएन्सेस ऑन दि हिस्ट्री ऑफ मैन ,'हाथर्न बुक्स  न्यूयार्क ' द्वारा  प्रकाशित पुस्तक में एडाल्फ़ हिटलर के स्वप्न का जिक्र है, जो उसने फ्रासीसी मोंर्चे के समय 1971 में देखा था | उसने देखा कि उसके आसपास की मिट्टी भर-भरा कर बैठ गई है, वह तथा उसके साथी पिघले हुऐ लोहे में दब गये है | हिटलर बचकर भाग निकले ; किन्तु तभी बम विस्फोट होता हैं ;उसी के साथ हिटलर की नींद टूट ग़यी | हिटलर अभी उठकर खडें ही हुये थे कि सचमुच एक तेज धमाका हुआ, जिससे आस-पास की मिट्टी भर-भरा  कर ठह पडी ओंर खादकों में छिपे उसके तमाम सैनिक़ बन्दूकों सहित दब-कर मर गये| स्वप्न और द्रस्य का यह सादृश्य हिटलर आजीवन नही भूले|

  स्वप्नों में भविष्य के इस प्रकार के दर्शन की समीक्षा करने बैठते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि चेतना मनुष्य शरीर में रहती है। वह विश्व- ब्रह्माण्ड के विस्तार जितनी असीम है; और उसके द्वारा हम बीज रूप से विद्यमान अदृश्य के वास्तविक दृश्य, चलचित्र की भांति देख और समझ सकते हैं। यह बात चेतना के स्तर पर आधारित है; इसीलिये भारतीय मनीषी भौतिक जगत के विकास की अपेक्षा अतीन्द्रिय चेतना के विकास पर अधिक बल देते हैं। हिन्दू धर्म और दर्शन का समस्त कलेवर इसी तथ्य पर आधारित रहा है ;और उसका सदियों से लाभ लिया जाता रहा है।

“बुस्साद साल के खुसखी महीने के छठवें दिन गुरुवार की रात मैंने सपना देखा कि एक खूबसूरत जवान से मैं मजाक कर रहा हूँ। उस समय मुझे भीतर ही भीतर यह भी आश्चर्य हो रहा था कि मैं किसी से मजाक का आदी नहीं हूँ ; फिर ऐसा क्यों कर रहा हूँ |तभी उस जवान ने निर्वस्त्र होकर दिखाया कि वह तो औरत है। मुझे उस घड़ी अहसास हुआ कि मराठे औरत वेष में हैं। मुझे लगा कि मैंने इसी से मजाक किया। उसी साल के उसी महीने के आठवें रोज मैंने मराठों पर हमला किया तो वे औरतों की तरह भाग निकले और मेरे स्वप्न का एहसास पक्का हो गया।” इस तरह सैकड़ों स्वप्न टीपू की मूल 'नोंध' किताब में हैं उनकी हकीकत के वाक्ये भी हैं। यह सब एकाग्रता द्वारा चित्त की प्रखरता के लाभों की ओर भी संकेत करते हैं। मन को किसी एक ध्येय की ओर लगाया जा सके, तो उस सम्बन्ध की अनेक जानकारियां स्वतः ही मिलती चली जाती हैं।

अपने स्वप्नों पर टीपू सुल्तान को आश्चर्य हुआ करता था; सो वह प्रतिदिन अपने स्वप्न डायरी में नोट किया करता था| उसके सच हुये स्वप्नों के कुछ विवरण इस प्रकार हैं।

“शनिवार 24 तारीख रात को मैंने सपना देखा – एक वृद्ध पुरुष  काँच का एक पत्थर लिये मेरे पास आये हैं और वह पत्थर मेरे हाथ में देकर कहते हैं–- सेलम के पास जो पहाड़ी है; उसमें इस काँच की खान है ,यह काँच मैं वहीं से लाया हूँ। इतना सुनते-सुनते मेरी नींद खुल गई।”

टीपू सुल्तान ने अपने एक विश्वास- पात्र को सेलम भेजकर पता लगवाया, तो ज्ञात हुआ कि सचमुच उस पहाड़ी पर काँच का भण्डार भरा पड़ा है। इन घटनाओं से इस बात की भी पुष्टि होती है कि समीपवर्ती लोगों को जिस तरह बातचीत और भौतिक आदान-प्रदान के द्वारा प्रभावित और लाभान्वित किया जा सकता है , उसी तरह चेतना के विकास के द्वारा बिना साधना भी आदान-प्रदान के सूत्र खुले हुए हैं। 

  वापी( गुजरात) के पास सलवास नाम का एक गाँव है | वहाँ बाबूलाल शाह नाम के एक प्रतिष्ठित के व्यापारी है | सन् 1973 की घटना है–उनका पुत्र जयन्ती हैदराबाद मेंडिकल काॅलेज का छात्र था | एक रात वह सिनेमा  देख़कर  लौट रहा था ;तभी कुछ डाकुओं ने उसका अपहरण कर लिया और बाबूलाल शाह को पत्र लिख़ा  – यदि बच्चे को जीवित देखना चाहते हैं ,तो अमुक स्थान पर 50 हजार रूपये पहुँचाने की व्यवस्था करे | " श्री शाहजी बहुत दू:खी हुये और मित्रोँ की सलाह से वे एक सन्त के पास गये और आप बीती सुनाकर बच्चे की जीवन- रक्षा की प्रार्थना की | स्वामी जी  ने उन्हें आश्वस्त किया और कहा- तुम  लोग जाओ | जयन्ती 19 जुलाई को स्वत: घर पहुँच जायेगा |

    जिस दिन स्वामी जी ने आश्वस्त दिया ,वह 17 जुलाई थी | उस रात डकैत जयन्ती को लेकर एक गुफा में पहुँचे | जयन्ती बेहद घबड़ाया हुआ था,साथ ही दस दिन का थका हुआ था | तीन बन्दुकधारी डकैतों के बीच उसका भी बिस्तर लगाया गया | थका होने कारण जयन्ती को नींद भी  टूट गई ;पर उसकी उठने की हिम्मत न हुई| सहसी अवस्था में फिर नींद आ गई , तब उसने फिर वैसा ही स्वप्न देखा | इस बार उसे विस्वसा हो गया कि कोई शक्ति उसके साथ है और उसकी मदद कर रही है | उसने आँखे घुमाकर देखा,सचमुक डकैत गहरी नींद में सो रहे थे| जयन्ती उठकर गुफा के बाहर  आया और वहाँ से भाग निकला| सीधे स्टेशन पहुँचा | गाडी बिलकुल तैयर थी| उसमें  सवार होकर वह ठीक  19 जुलाई को घर आ गया | इस स्वपन ने न केवल बालक जयन्ती की जीवन-रक्षा की : अपितु उसे विस्वसा भी हो गया कि अतिन्द्रिय जगत वस्तुत:दिव्य आत्माओं का निवास स्थल है | उस आश्रय स्थल पर पहुँचकर न केवल अपनी आत्मिक क्षमतायें प्रखर की जा सकती हैं;अपितु उच्च आत्माओं का स्नेह सन्निध्य भी पाया जा सकता है |

   स्वप्न सभी सत्य होते हों, यह बात नहीं। अनेक स्वप्न ऐसे होते हैं ,जो केवल अपनी शारीरिक और मानसिक स्थिति का संकेत करते हैं | जिस तरह वैद्य, नाड़ी, और लक्षणों को देखकर रोग और बीमारी का पता लगा लेते हैं। उसी तरह इन समझ में आने वाले स्वप्नों से शरीर और मनोजगत की अपनी स्थिति का अध्ययन शीशे की भाँति किया और उन्हें सुधारा जा सकता है। फ्रायड मनोविज्ञान में स्वप्नों की समीक्षा को इसी रूप में लिया जा सकता है।

          स्वप्नों का, स्थान विशेष से भी सम्बन्ध होता है। इस सम्बन्ध में डॉ. फिशर द्वारा उल्लेखित एक स्त्री का स्वप्न बहुत महत्व रखता है। वह स्त्री जब एक विशेष स्थान पर सोती ,तो उसे सदैव यही स्वप्न आता कि कोई व्यक्ति एक हाथ में छुरी लिये दूसरे से उसकी गर्दन दबोच रहा है। पता लगाने पर ज्ञात हुआ कि उस स्थान पर सचमुच ही एक व्यक्ति ने एक युवती का इतना गला दबाया था, जिससे वह लगभग मौत के समीप जा पहुँची थी। स्थान विशेष में मानव विद्युत के कम्पन चिरकाल तक बने रहते हैं। कब्रिस्तान की भयानकता और देव-मंदिरों की पवित्रता इसके साक्ष्य के रूप में लिये जा सकते हैं। 

   16 फरवरी 1975 के धर्मयुग के अंक में स्वपनों की समीक्षा करते हुये एक अंधे का उदाहरण दिया गया है | अन्धे पुछा गया कि क्या तुम्हेँ स्वप्न दिखाई देते है? इस पर उसने उत्तर दिया मुझे खुली आखों से भी जो वस्तुयें दिखाई नहीं देती , वह स्वप्न में दिखाई देती हैं |इससे फ्रायड की इस धारणा का खण्डन होता है कि मनुष्य दिन भर जो देखता और सोचताविचारता है, वही दृश्य मस्तिष्क के अन्तराल में बस जाते और स्वपन के रुप में दिखाई देने लगते हैं | निश्चय ही वह तथ्य यह बताया हैं| कि स्वपनों का समबन्ध, काल की सीमा से परे अतीन्द्रिय जगत से है; अर्थात् चिरकाल से चले आ रहे भूत से लेकर अन्तत काल तक चलने वाले भविष्य जिस अतिर्न्दिय चेतना से सन्नहित हैं , स्वप्नकाल में मानवीय चेतना उसका स्पर्श करने लगती है| इसका एक स्पष्ट उदाहरण भी इसी अंक में एक बालक द्वारा देखे गये स्वप्न की समीक्षा से है |बच्चे से पहले न तो कश्मीर देखा  था, न नैनीताल ; किन्तु उसने बताया मैंने हरा -भरा मैदान , कल-कल करती नदियाँ , ऊँचे बर्फ़ीले पर्वत शिखर देखे ,कुछ ही क्षणॉ में पट - परिवर्तन हुआ और मेरे सामने जिस मैदान का दृश्य था, वह मेरे विद्यालय का था| मेरे अध्यापक महोदय हाथ में डंडा लिये मेरी ओर बढ़ रहे थे; तभी मेरी नींद टूट गई |  | इससे एक बात स्वपनों की क्रमिक गहराई का भी बोध होता है | स्पर्श या निंद्रा जितनी प्रगाढ  होगी ,स्वप्न उतने ही सार्थक , सत्य और मार्मिक होंगे | सामायिक स्वपन उथले स्तर पर अर्थात्  जागृत अवस्था के करीब होते प्रतीत होते हैं , पर यह तभी सम्भव हैं , जब अपना अंत:करण पवित्र और निर्मल हो | निदाई  किये हुऐ खेतों की फसल में एक ही तरह के पौधे दिखाई देते हैं , वे अच्छी तरह विकसित होते और फलते-फूलते भी हैं; पर यदि खेत खरपतवार से भरा हुआ हो,तो उसमें क्या फसल बोई गई हैं, न तो इसी बात का पता चल पाता है और न ही उस खेत के पौधे ताकतवर होते हैं | ये कमजोर पौधे कैसी फसल देंगे , इसका भी सहज ही अनुमान किया जा सकता है| मन जितना अधिक उच्च-चिन्तन,उच्च संस्कारों से ओत -प्रोत ,, शान्त और निर्मल होगा,स्वप्न उतने ही स्पष्ट और सार्थक होंगे |

बृहदारण्यक में जागृति, सुषुप्ति की तरह स्वप्न को मन की तीसरी अवस्था बताया गया है। जब मन सो जाता है ,तो वह अपने ही संकल्प- विकल्प से अभीष्ट वस्तुओं के निर्माण की क्षमता से ओत-प्रोत होता है। सुख-दुःख की सामान्य परिस्थिति भी जागृत जगत की तरह ही उस स्थिति में भी जुड़ी रहती है। जिस तरह जागृत में जीवन के संस्कार उसे आत्मिक प्रसन्नता और आह्लाद प्रदान करते और निश्चिन्त भविष्य की रूप रेखा बनाते रहते हैं, उसी तरह संयत और पवित्र मन में भी जो स्वप्न आयेंगे, वे भविष्य की उज्ज्वल सम्भावनाओं के प्रतीक होंगे।

      भगवान महावीर के जन्म से पूर्व रानी मिशला ने 14 मार्मिक स्वप्न देखे थे। प्रथम में हाथी, द्वितीय में बैल, तृतीय में सिंह, चतुर्थ में लक्ष्मी, पंचम में  सुवासित पुष्पों की माला, पष्टम में पूर्ण चन्द्र, सप्तम में सूर्यदर्शन, अष्टम में जल भरे मंगल कलश, नवम में नीले स्वच्छ जल वाला सरोवर, दशम में लहलहाता सागर, एकादश में सिंहासन, द्वादश में देव विमान, त्रयोदश में रत्नराशि और चतुर्दश में तेजस्वी अग्नि।

  स्वप्न का फलितार्थ मर्मज्ञों ने इस प्रकार किया-हाथी सहायक साथी धैर्य, मर्यादा और बड़प्पन का प्रतीक है| उसके पेट में प्रविष्ट होने का तात्पर्य– प्रलम्ब बाहु पुत्र जन्म का द्योतक है| वह महान् धर्मात्मा, अनन्त शक्ति का स्वामी, मोक्ष प्राप्त करने वाला, यशस्वी, अनासक्त ज्ञानी, सुख-शान्ति का उपदेष्टा, महान् गुणों वाला, शांत और गम्भीर, त्रिकालज्ञ, देवात्मा और महान् होगा। भगवान महावीर का जीवन इस स्वप्न का पर्याय था, इसमें सन्देह नहीं। उपरोक्त सभी प्रतीकों का अर्थ मर्मज्ञों ने उन-उन वस्तुओं के गुण प्रभाव आदि की दृष्टि से निकाला जो उपयुक्त ही सिद्ध हुआ। अपने स्वप्नों की समीक्षा करते समय देखी गई वस्तुओं की उपयोगिता ,उनकी महत्ता और गुणों के विश्लेषण के रूप में किया जा सके , तो बहुत सारे अस्पष्ट स्वप्नों के अर्थ भी निकाल सकते और उनसे अपने जीवन को सँवार सकते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118