अनन्त संभावनाओं से युक्त मानवी सत्ता

December 1974

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बीज में वृक्ष की समस्त सम्भावनाएँ छिपी पड़ी हैं। सामान्य स्थिति में वे दिखाई नहीं पड़ती, पर जैसे ही बीज के उगने की परिस्थितियाँ प्राप्त होती हैं वैसे ही यह तथ्य अधिकाधिक प्रकट हो जाता है। पौधा उगता है—बढ़ता और वृक्ष बनता है। उससे छाया, लकड़ी, पत्र, पुष्प, फल आदि के ऐसे अनेक अनुदान मिलने लगते है, जो अविकसित बीज से नहीं मिल सकते थे।

मनुष्य की सत्ता एक बीज है, जिसमें विकास की वे सभी सम्भावनाएँ विद्यमान हैं जो अब तक उत्पन्न हुए मनुष्यों में से किसी को भी प्राप्त हो चुकी है। प्रत्येक व्यक्ति की मूलसत्ता समान स्तर की है; अन्तर केवल प्रयास एवं परिस्थितियों का है; यदि अवसर मिले, तो प्रत्येक व्यक्ति उतना ही ऊँचा उठ सकता है, जितना कि इस संसार का कोई व्यक्ति कभी भी आगे बढ़ सका। भूतकाल में जो हो चुका है, वह शक्य सिद्ध हो चुका। सुनिश्चित सिद्धि तक उपयुक्त साधना पर पहुँचने में कोई सन्देह नहीं किया जा सकता। बात आगे की सोची जा सकती हैं। जो भूतकाल में नहीं हो सका, वह भी भविष्य में हो सकता है। मनुष्य की सम्भावनाएँ अनन्त हैं। भूत से भी अधिक शानदार भविष्य हो सकता है, इसकी आशा की जा सकती है—की जानी चाहिए।

मनुष्य की अपनी सत्ता में अनन्त सामर्थ्य और महान सम्भावनाएँ छिपी पड़ी हैं। उन्हें समझने और विकसित करने के लिए सही रीति से—सही दिशा में अथक एवं अनवरत प्रयास करना—समस्त सिद्धियों का राज मार्ग है, ऐसी सिद्धियों का, जो उसकी प्रत्येक अपूर्णता को पूर्णता में परिणत कर सकती हैं।


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