Quotation

December 1974

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जब जिन्दगी के कगारों की हरियाली सूख जाय-प्रकाश के बुझने पर गहरी अँधियारी छा जाय—घनिष्ट मित्र और स्वजन मुँह मोड़कर चले जाँय—आसमान की सारी नाराजी मेरी तकदीर पर बरसने लगे—तो हे मेरे प्रभु, तुम इतना तो अनुग्रह करना ही कि मेरे होठों पर मुसकराहट की उजली रेखाएँ धूमिल न होने पायें; मुख पर खिन्नता की कलुषता चढ़ती न आये।

—महाकवि नागोची


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles