संकट ग्रस्त भविष्य और उसका समाधान

December 1974

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

राष्ट्रसंघ द्वारा आयोजित एक विचार गोष्ठी में संसार के 25 प्रमुख विचारकों और विशेषज्ञों ने वेनिस में एकत्रित होकर सन् 2000 तक घटित हो सकने वाली महत्वपूर्ण संभावनाओं पर गम्भीरतापूर्वक विचार विमर्श किया। जिसका विवरण ‘स्प्रिंग वर्लेग‘ पत्रिका में और यूनेस्को बुलेटिन से प्रकाशित हुआ हैं। कहा गया है कि —

(1) अगले बीस वर्षों में अमीर देशों की सम्पन्नता और गरीब देशों की दरिद्रता इस अवधि में द्रुतगति से बढ़ेगी। फलस्वरूप दोनों के बीच खाई बढ़ती चली जायगी और गरीब देश सम्पन्न राष्ट्रों के विरुद्ध आन्दोलन आरम्भ करेंगे।

(2) जनसंख्या की विभीषिका को सर्वत्र समझा जायगा और मानवी बुद्धि अपनी दूरदर्शिता का परिचय देकर अन्धाधुन्ध प्रजनन को स्वयं रोक देगी। बच्चे बढ़ने के दुष्परिणाम हर मनुष्य अपनी व्यक्ति गत असुविधा बढ़ने के रूप में भी अनुभव करेगा और सार्वजनिक अहित भी उसके सामने होगा।

(3) पानी की कमी बढ़ती जायगी उसका समाधान समुद्र जल का मीठा बनाना ही रह जायगा। इसलिए विज्ञान का अगले दिनों यही प्रमुख लक्ष्य होगा।

(4) ऊर्जा को अधिक मात्रा में संग्रह करके रख सकने की तरीका ढूंढ़ लिया जाएगा ताकि बिजली भंडारों से सुविधानुसार शक्ति को खर्च किया जाता रहे।

(5) विश्व सरकार बनाने और विश्व नागरिकता की भावना विकसित करने के लिए अधिक प्रयत्न होंगे।

(6) शिक्षा −प्रणाली में असाधारण परिवर्तन होंगे।

(7) स्वसंचालित यन्त्रों वाले देशों में श्रमिकों को सप्ताह में 25 घण्टे ही काम दिया जा सकेगा।

(8) वायु प्रदूषण,जल प्रदूषण एवं अस्त्र प्रतिद्वन्दता पर नियन्त्रण करने के सार्वभौम प्रयत्नों का प्रचलन।

विशेषज्ञों की राय यह है कि यह संभावनाएँ स्पष्ट हैं। वर्तमान परिस्थितियाँ का तकाजा यह कदम उठाने के लिए मनुष्य को विवश कर देगा और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए उसे यह कदम उठाने ही पड़ेंगे।

वर्तमान परिस्थितियों के फलितार्थों की दृष्टि से उपरोक्त संभावनाएं कल्पना की उड़ान नहीं वरन् यथार्थ रोक्त सम्भावनाएँ कल्पना की उड़ान नहीं वरन् यथार्थ सम्भावनाएँ ही समझ में आती है महाविनाश का विकल्प यही हो सकता है कि समय रहते समस्याओं के समाधान ढूँढ़ निकाले जाँय। बढ़ती हुई आबादी एवं बढ़ती हुई वैज्ञानिक प्रगति ने असंख्य समस्याओं को जन्म दिया है। उनके कारण एक ओर संसार को अधिक वैभववान बनने का अवसर है वहाँ यह भी संकट है कि यदि उन्हें सुनियोजित न किया गया तो यही बढ़ोत्तरी महाविनाश का कारण बनेगी। उपभोग्य सामग्री के अभाव में बढ़ी हुई जनसंख्या बेमौत मरेगी। दूसरी ओर विज्ञान के विनाश के साधन में प्रयोग कर,कोई भी सिर फिरा आदमी उनका दुरुपयोग करके मानवी अस्तित्व को सदा के लिए समाप्त कर सकता है।

बड़े कारण दो हैं। पर इनके कारण उत्पन्न होने वाली समस्याएँ अगणित है। जिनने समस्त मानव जाति को उद्विग्न संत्रस्त कर रखा है। इन दोनों का कारण है मानवी दुर्बुद्धि− अदूरदर्शिता। दाम्पत्य जीवन का उच्च स्तरीय आनन्द लेते हुए ही जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सकता है और वैज्ञानिक प्रगति से −संसार से दरिद्रता, अशिक्षा एवं पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है। यदि मानवी दुर्बुद्धि रोका जा सके और उसका स्थान सद्भावना को−विवेकशीलता को −मिल सके तो उलझी हुई गुत्थियाँ सुलझ सकती है विवेकशीलता को मिल सके तो उलझी हुई गुत्थियाँ सुलझ सकती है और वे सारा चिन्ताएँ दूर हो सकती हैं जिनके कारण राष्ट्रसंघ के सदस्य चिन्तातुर है और तरह तरह के उपाय सोच रहे हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118