दीपक का तेल चुक चला और बत्ती लगभग जल गई। सूर्योदय पर उसने सन्तोष व्यक्त किया और भगवान् भास्कर को शिर नवाया और कहा−देव, अब मैं अपना तुच्छ अस्तित्व समाप्त करके विदा होता हूँ आप अपने प्रबल पराक्रम से संसार में प्रचण्ड आलोक का वितरण करना।
सूर्य की आँखों डबाडब आई उनने एक स्नेह भरे चुम्बन के साथ दीपक को विदाई देते हुए कहा−वत्स तुम्हारे छोटे से अस्तित्व को मेरा शत−शत प्रणाम। जिसने जलन को अपनाया और यह सिद्ध किया कि प्रकाश कभी पराजित नहीं होता।